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इतिहास

60 साल बाद उठाई पिस्‍टल, फिर लगाए एक के बाद एक निशाने, ऐसी थीं चंद्रो दादी

दादी चंद्रो तोमर का नि‍धन
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उत्‍तर प्रदेश के बागपत में जन्‍मी चंद्रो तोमर उर्फ शूटर दादी हमेशा देश की करोड़ों महिलाओं के लिए नजीर बनेंगी. वो बागपत के जौहड़ी गांव की रहने वाली थीं. कोरोना से जूझ रहीं दादी चंद्रो तोमर ने शुक्रवार को अंति‍म सांस ली. चंद्रो तोमर के बारे में जानिए ये खास बातें...

चंदो दादी का नि‍धन
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दादी चंद्रो तोमर की सफलता की कहानी उनकी देवरानी प्रकाशी तोमर से जुड़ी है. उनके जज्‍बे की कहानी करोड़ों मह‍िलाओं को प्रेर‍ित करने वाली है. 65 वर्ष की उम्र में अपने हाथों में पिस्तौल उठाने वाली दादी चंद्रो तोमर ने निशानेबाजी के क्षेत्र में झंडे गाड़ दिए. उनकी देवरानी और उनके किस्‍से पश्‍च‍िमी यूपी ही नहीं देशभर में कहे जाते हैं.

चंदो दादी का नि‍धन
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चंद्रो दादी का एक क‍िस्‍सा बहुत चर्चा में आया जो उन्‍होंने खुद मीडिया से साझा क‍िया था. वो ये था जब साल 1999 में उनकी पोती शेफाली तोमर ने शूटिंग सीखनी शुरू की. इसके लिए उसने जौहड़ी राइफल क्लब में एडमिशन लिया. बता दें क‍ि ये क्लब लड़कों का था इसलिए शेफाली वहां अकेले जाने से हिचक रही थीं. अपनी पोती को हौसला देने उनकी दादी चंद्रो क्‍लब में साथ पहुंच गईं. वहां शेफाली पहुंच तो गईं लेकिन पिस्तौल में छर्रे नहीं डाल पा रही थीं. 

 

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चंदो दादी का नि‍धन
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पोती को परेशान देखकर उसे सिखाने के लिए दादी चंद्रो ने उसमें कॉन्‍फिडेंस के साथ छर्रे डाले और शूटिंग पोजिशन लेकर सामने लक्ष्य पर निशाना लगा दिया. उसी दिन उन्होंने एक के बाद दस लक्ष्य भेदे. शूटिंग में उसे Bull's eye कहते हैं. इसी बुल्‍स आई पर पिछले साल बॉलीवुड में एक फिल्‍म भी बनी. जिसमें तापसी पन्‍नू और भूमि पेडनेकर ने मुख्‍य किरदार निभाया.

चंदो दादी का नि‍धन
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उनकी निजी जिन्‍दगी की बात करें तो शादी 14 साल की उम्र में  हो गई थी. शादी के बाद वह गांव आई जहां उनका ससुराल था. 22 साल की उम्र में बेटा हुआ. इसके बाद एक बेटा और तीन बेटियां और हुए. हालातों के सामने वो कभी स्कूल तक नहीं गईं लेकिन अंग्रेजी सीखने का शुरू से शौक था.

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उम्र के छठवें दशक में उनके करियर बनाने के पीछे संघर्ष की लंबी कहानी है. वो हरियाणा के जिस तरह के ग्रामीण माहौल में रहीं, वहां औरतों को उतनी छूट नहीं थी वो शूटिंग जैसा करियर बना पातीं. लेकिन पोती के साथ हुई छोटी शुरुआत ने उन्‍हें एक बड़े मुकाम तक पहुंचा दिया. 

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