देश की सबसे पुरानी और मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस आज से 135 साल पुरानी है. इस पार्टी का इतिहास आजादी के पूरे संघर्ष से जुड़ा हुआ है. साल 1885 में इसके गठन का श्रेय एलन ऑक्टेवियन ह्यूम को जाता है. ऐलन ह्यूम इस प्लानिंग के आर्किटेक्ट थे. दिमाग था वायसराय लॉर्ड डफरिन का. ह्यूम सिविल सर्विस में रह चुके थे. खासा दिमाग रखते थे. उन्होंने नींव रखी कांग्रेस की.
देश की आजादी के संघर्ष से जुड़े सबसे मशहूर और जाने-माने लोग इसी कांग्रेस का हिस्सा थे. गांधी-नेहरू से लेकर सरदार पटेल और राजेंद्र प्रसाद तक आजादी की लड़ाई में आम हिंदुस्तानियों की नुमाइंदगी करने वाली पार्टी ने देश को एकता के सूत्र में बांधने की कोशिश की थी.
एलेन ओक्टेवियन ह्यूम 1857 के गदर के वक्त इटावा के कलेक्टर थे. ह्यूम ने खुद ब्रटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और 1882 में पद से अवकाश लेकर कांग्रेस यूनियन का गठन किया. उन्हीं की अगुआई में बॉम्बे में पार्टी की पहली बैठक हुई थी. व्योमेश चंद्र बनर्जी इसके पहले अध्यक्ष बने. शुरुआती वर्षों में कांग्रेस पार्टी ने ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर भारत की समस्याओं को दूर करने की कोशिश की और इसने प्रांतीय विधायिकाओं में हिस्सा भी लिया लेकिन 1905 में बंगाल के विभाजन के बाद पार्टी का रुख कड़ा हुआ और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन शुरू हुए.
1905 तक कांग्रेस क्या करती है, क्या नहीं, ये कोई मुद्दा नहीं था. जैसे आज के रोटरी क्लब होते हैं, वैसा ही तब कांग्रेस का हाल था. दादाभाई नौरोजी और बदरुद्दीन तैयबजी जैसे नेता इसके साथ आ गए थे. मगर जनता के बीच इसका कोई असर नहीं था. तब कांग्रेस याचिकाएं देने में व्यस्त रहती थी. आवेदन पार्टी टाइप समझ लीजिए. अंग्रेजों से कृपा मांगने का अंदाज था उसका. फिर हुआ बंगाल विभाजन. कर्जन था वायसराय तब. उसने बंगाल को दो हिस्सों में बांटने का ऐलान किया. कांग्रेस ने पहली बार बगावती अंदाज दिखाया.
आजादी के बाद 1952 में देश के पहले चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई. 1977 तक देश पर केवल कांग्रेस का शासन था. इस साल हुए चुनाव में जनता पार्टी ने कांग्रेस की कुर्सी छीन ली. हालांकि तीन साल के अंदर ही 1980 में कांग्रेस वापस गद्दी पर काबिज हो गई. 1989 में कांग्रेस को फिर हार का सामना करना पड़ा. लेकिन 1991, 2004, 2009 में कांग्रेस ने दूसरी पार्टियों के साथ मिलकर केंद्र की सत्ता हासिल की.
आजादी के बाद कांग्रेस कई बार विभाजित हुई. करीब 50 नई पार्टियां इस संगठन से निकल कर बनीं. इनमें से कई निष्क्रिय हो गए तो कईयों का INC और जनता पार्टी में विलय हो गया. कांग्रेस का सबसे बड़ा विभाजन 1967 में हुआ जब इंदिरा गांधी ने अपनी अलग पार्टी बनाई जिसका नाम INC (R) रखा. 1971 के चुनाव के बाद चुनाव आयोग ने इसका नाम INC कर दिया.
इस तरह कांग्रेस में होता है संगठन का काम
ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी (AICC): राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी का काम देखना एआईसीसी की जिम्मेदारी होती है. राष्ट्रीय अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा पार्टी के महासचिव, खजांची, पार्टी की अनुशासन समिती के सदस्य और राज्यों के प्रभारी इसके सदस्य होते हैं.
प्रदेश कांग्रेस कमिटी (PCC): हर राज्य में कांग्रेस की ईकाई है जिसका काम स्थानीय और राज्य स्तर पर पार्टी के कामकाज को देखना होता है.
कांग्रेस संसदीय दल (CPP): राज्यसभा और लोकसभा में पार्टी के सांसद संसदीय दल का हिस्सा होते हैं.
कांग्रेस विधायक दल (CLP): राज्य स्तरीय इस ईकाई में राज्य की विधानसभा में पार्टी विधायक सीएलपी के सदस्य होते हैं. अगर किसी राज्य में कांग्रेस की सरकार है तो वहां का मुख्यमंत्री ही विधायक दल का नेता होता है.
युवाओं, छात्रों, महिलाओं, व्यापारियों के लिए पार्टी की अलग अलग विंग है- छात्रों के लिए नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI), युवाओं के लिए इंडियन यूथ कांग्रेस (IYC) है.