भारत के केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली के इतिहास में 11 अगस्त का दिन बेहद खास है. साल 1961 में इसी दिन यह भारतीय गणराज्य का हिस्सा बना और इसे केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया. वैसे दादरा और नगर हवेली क्षेत्र लंबे संघर्ष के बाद 2 अगस्त 1954 को ही पुर्तगाली शासकों के शासन से आजाद हो गए और फिर 1961 तक यहां की जनता ने अपना शासन चलाया. 1954 से लेकर 1961 तक इस क्षेत्र पर सिटिजन काउंसिल जिसे वरिष्ठ पंचायत कहा जाता था, ने फ्री दादरा नगर हवेली में शासन किया और फिर 7 साल बाद 1961 में यह भारतीय गणराज्य का हिस्सा बन गया. भारत में इसके विलय का इतिहास काफी रोचक है, कैसे लंबे संघर्ष के बाद यहां के लोगों को आजादी मिली, आइए जानें इतिहास..
पहले गोवा के साथ था केंद्र शासित प्रदेश
साल 2019 दिसंबर में केंद्र सरकार ने दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव (मर्जर ऑफ यूनियन टेरिरिज) बिल 2019 के जरिए दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव को मिलाकर एक केंद्र शासित प्रदेश कर दिया. पहले ये दोनों अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में स्थापित थे. दादरा और नगर हवेली तथा दमन एवं दीव दोनों ही केंद्र शासित प्रदेश लंबे समय तक पुर्तगालियों के अधीन थे. दमन और दीव 1961 से 1987 तक गोवा, दमन और दीव संयुक्त रूप से केंद्र शासित प्रदेश था. लेकिन 1987 में, जब गोवा को राज्य का दर्जा मिला तो दमन और दीव एक अलग केंद्र शासित प्रदेश बन गया.
इसी तरह दादरा और नगर हवेली पर जून, 1783 से ही पुर्तगालियों का कब्जा था. दादरा नगर हवेली 491 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है जिसके उत्तर की तरफ गुजरात और दक्षिण की तरफ महाराष्ट्र है. दादरा नगर हवेली में 72 गांव हैं और यहां की राजधानी सिलवासा है. इस क्षेत्र का करीब 40 फीसदी इलाका जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है. 2001 की जनगणना के अनुसार यहां की आबादी 2.20 लाख है और इसमें 62.24 फ़ीसदी हिस्सा आदिवासियों का है. गुजरात के सह्याद्री पर्वत से निकल कर अरब सागर की तरफ बहने वाली दमनगंगा नदी क्षेत्र में सिंचाई का मुख्य स्रोत है.
दादरा और नगर हवेली का इतिहास
दादरा और नगर हवेली का इतिहास राजपूत राजाओं द्वारा क्षेत्र के कोली सरदारों की हार के साथ शुरू होता है. सन 1262 में राजस्थान के रामसिंह नामक एक राजपूत राजकुमार ने स्वयं को रामनगर के शासक के रूप में स्थापित किया, जो वर्तमान में धरमपुर है जिसमें 8 परगना (गांवों का एक समूह) शामिल किया और महाराणा की उपाधि धारण की. नगर हवेली इन्हीं परगनाओं में से एक था, और इसकी राजधानी सिलवासा थी.
1360 में राणा धर्मशाह प्रथम ने अपनी राजधानी को नगर हवेली से नगर फतेहपुर स्थानांतरित कर दिया. लेकिन इस बीच क्षेत्र में मराठा शक्ति के उदय के साथ, मराठा शासक शिवाजी ने रामनगर को एक महत्वपूर्ण इलाके के रूप में देखा और उन्होंने इस क्षेत्र पर कब्जा कर लिया, लेकिन सोमशाह राणा ने 1690 में इस पर फिर से कब्जा कर लिया.
पुर्तगालियों के अधीन क्षेत्र
6 मई 1739 को वसाई संधि के बाद वसाई और आसपास के प्रदेश मराठा शासन के अधीन आ गए. इसके तुरंत बाद, मराठों ने रामनगर पर कब्जा कर लिया लेकिन शासक रामदेव को कुछ शर्तों के साथ छोड़ दिया. मराठों ने नागर हवेली और दो अन्य परगनाओं से राजस्व एकत्र करने के अधिकार प्राप्त कर लिए, जिसे चौथाई के नाम से जाना जाता है. रामदेव के पुत्र धरमदेव के समय मराठाओं के साथ हुए करार का उल्लंघन शुरू कर दिया गया और जिससे नाराज मराठों ने नागर हवेली और आसपास के क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.
सन 1772 में मराठा सेनाओं द्वारा पुर्तगालियों को नुकसान पहुंचाने के लिए क्षतिपूर्ति के रूप में 17 दिसंबर 1779 को मित्रता संधि के आधार पर नागर हवेली का क्षेत्र पुर्तगालियों को गिफ्ट कर दिया गया. इस संधि के तहत पुर्तगालियों को नगर हवेली के 72 गांवों से राजस्व इकट्ठा करने की अनुमति मिल गई. फिर, 1785 में पुर्तगालियों ने दादरा को खरीद लिया, और इसे पुर्तगाली भारत के साम्राज्य में शामिल कर लिया गया.
मुक्ति संग्राम
सन 1818 में, तीसरे एंग्लो-मराठा युद्ध में ब्रिटिश सेना ने मराठाओं को हरा दिया था, और इसके बाद पुर्तगाली दादरा और नगर हवेली के प्रभावी शासक बन गए.
पुर्तगालियों ने 1954 तक यहां पर शासन किया लेकिन इसी साल दादरा और नगर हवेली पर भारतीय संघ के समर्थकों ने कब्जा कर लिया.
अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिल गई, लेकिन दादरा और नगर हवेली समेत कुछ क्षेत्रों पर पुर्तगालियों का शासन था. दादरा और नगर हवेली के लोगों ने यूनाइटेड फ्रंट ऑफ गोवांस (UFG), नेशनल मूवमेंट लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (NMLO) और आजाद गोमांतक दल जैसे संगठनों के स्वयंसेवकों की मदद से पुर्तगाली शासन से निजात पाई और 1954 में यह क्षेत्र भारत में शामिल हो गया.
भारत में विलय
भारत में अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की लड़ाई जोर पकड़ने के साथ ही यहां पर भी पुर्तगालियों के खिलाफ आजादी की जंग अपने चरम पर पहुंच गई थी. भारत को आजादी मिली लेकिन अंग्रेजों की तरह पुर्तगालियों ने अपने कब्जे वाले क्षेत्रों को नहीं छोड़ा. फिर इसको लेकर संघर्ष तेज होता चला गया. आत्माराम नरसिंह करमालकर, पुर्तगाली बैंक में अधिकारी थे, जिन्हें अप्पासाहेब करमलकर के नाम से भी जाना जाता था, जो अप्रत्यक्ष रूप से गोवा में मुक्ति संग्राम में शामिल रहे. संघर्ष के दौरान उन्होंने महसूस किया कि गोवा को मुक्त कराने के लिए दादरा नगर हवेली को भी आजाद कराया जाना चाहिए. फिर उन्हें स्थानीय नेताओं से मुलाकात की और यहां पर भी संघर्ष जोर पकड़ने लगा.
थाने पर महज तीन पुलिसकर्मी मौजूद थे और जिसमें एक पर चाकू से हमला किया गया और अन्य दो को कब्जे में ले लिया गया. इसके बाद वहां पर तिरंगा फहरा दिया गया और भारतीय राष्ट्रगान गाया गया. दादरा को 'दादरा का मुक्त क्षेत्र' घोषित कर दिया गया. इसी तरह 28 जुलाई को नरोली में भी पुलिस थाने पर हमला कर क्षेत्र से पुर्तगाली शासन से मुक्त करा लिया गया. 1 अगस्त को पिपिरिया पुलिस थाने को भी आजाद करा लिया गया.
इसी बीच 1 अगस्त की रात स्वयंसेवकों ने सिलवासा पर कब्जा करने के लिए 3 गुट बनाए और रात में ही सिलवासा पुलिस चौकी पर पहुंच गए. पुलिस चौकी पर तीन ओर से निगरानी की जा रही थी, लेकिन अचानक हमला बोलने से पुलिसकर्मियों को आत्मसमर्पण करना पड़ा और रातभर स्वयंसेवक पुलिस चौकी पर ही बने रहे.
2 अगस्त, 1954 की सुबह आजादी के समर्थक पुर्तगाली शासन खत्म कराने के लिए सिलवासा पहुंच गए, और फिर दादरा और नगर हवेली को आजाद करा लिया. तब बुजुर्ग नेता सेनहर लुइस डी गामा ने वहां तिरंगा लहराया और भारतीय राष्ट्रगान को गाकर दादरा और नगर हवेली को भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनने का ऐलान किया. भारत के संविधान के 10वें संशोधन को दादरा और नगर हवेली को एक संघ राज्य क्षेत्र के रूप में शामिल करने के लिए पारित किया गया था और यह 11 अगस्त 1961 को प्रभावी हो गया.