कहते हैं कि इस दुनिया से जाने वाला दोबारा लौटकर नहीं आता, लेकिन कम से कम इंसानों के जैसे दूसरे तो यहां रह जाते हैं. लेकिन नॉदर्न सफेद गैंडो की नस्ल में अब सिर्फ दो ही जीव बचे हैं. विलुप्त होती प्रजातियों में अब इनके जाने के बाद शायद ही वन्य जीवन से प्रेम करने वाले इनकी नस्ल को देख सकें. आइए जानते हैं इनके बारे में खास बातें, साथ ही ये भी कि ये कैसा जीवन जी रहे हैं.
सूडान उत्तरी सफेद गैंडे की नस्ल का अंतिम नर था, उसके जाने के बाद धरती पर अब नाजिन-फातू की जोड़ी बची है. ये मादा उत्तरी सफेद राइनो यानी गैंडे की अंतिम मादा हैं. अब इन दोनों को बेहद सुरक्षित माहौल में रखा जा रहा है, इनकी केयर किसी सेलिब्रिटी से कम नहीं होती.
न्यूयॉर्क टाइम्स मैगजीन ने इन दोनों मां-बेटी गैंडे से मुलाकात का पूरा ब्यौरा पब्लिश किया है. इसमें बताया गया है कि कैसे 45 साल के इकलौते नॉदर्न व्हाइट राइनो की मौत के बाद ये दोनों पैतृक स्थान केन्या के जंगलोंं मे रह रहे हैं. यहां इन्हें पूरी देखरेख और प्राकृतिक माहौल में 24 घंटे की निगरानी में रखा जा रहा है.
रिपोर्ट के मुताबिक अपने जीवन के अंतिम वर्षों में, सूडान (गेंडा) एक ग्लोबल सेलिब्रिटी या यूं कहें कि एक संरक्षण आइकन बन गया था. वह 24/7 सशस्त्र रक्षकों के संरक्षण में पूर्व राष्ट्रपति की तरह रहता था. उसे देखने के लिए हर जगह से पर्यटक आते थे. एक तरह से सूडान एक आदर्श राजदूत था. उसका वजन दो टन से अधिक था, लेकिन उसका स्वभाव काफी सरल था. वो लोगों को उसे छूने देता था और उनसे स्नैक्स ले लेता था. गाजर, उसके बड़े बॉक्सी मुंह में जकड़ी हुई, एक छोटे नारंगी टूथपिक की तरह दिखती थी. पर्यटक भावुक हो जाते थे, उन्हें पता था कि वो एक विलक्षण प्राणी पर हाथ रख रहे हैं, जो कि एक ऐसा विशालकाय प्राणी है, जो धीरे-धीरे हर दिन विलुप्त होने की दिशा में जा रहा है. कई लोग अपनी कारों में वापस आकर रो पड़ते थे.
बताते हैं कि साल 2009 में जब नाजिन और फातू पहली बार अफ्रीका आए, तो वे हर चीज से डरे हुए थे. जब तेज हवा चलती तो वो ऐसा महसूस करते कि वे उड़ रहे. हर उस खरगोश को देखकर कूद जाते जो झाड़ी से अचानक बाहर निकलता था. उनका जन्म और पालन-पोषण एक चिड़ियाघर के शांत और सीमित माहौल में हुआ था.
इनमे से मां का जन्म 1989 में और बेटी का जन्म 2000 में हुआ था. भले ही इनके पूर्वज अफ्रीका के थे, लेकिन ये विशेष जीव नहीं थे. वे चेक गणराज्य में, मानव निर्मित बाड़ों में, मनुष्यों से घिरे कटी हुई घास खाकर बड़े हुए. पहले कभी उन्हें पता नहीं था कि जंगली गैंडे कैसे होते हैं. फिलहाल वो जंगल के माहौल के आदी हो रहे हैं. इनका रंग हल्का ग्रे है. व्हाइट कहे जाने के पीछे बताया जाता है कि पहले इनकी प्रजाति अपने आकार के चलते वाइड राइनो कही जाती थी लेकिन इंग्लिश उच्चारण में इन्हें व्हाइट कहा जाने लगा.
सूडान की मृत्यु के ठीक एक साल बाद मई 2019 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका ने एक एपोकैलिप्टिक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें सामूहिक रूप से विलुप्त हो रही जैव व पौध प्रजातियाों का ब्यौरा छापा था. रिपोर्ट के अनुसार एक मिलियन पौधे और जानवरों की प्रजातियां विलुप्त होने की कगार हैं. इस रिपोर्ट के साथ यह चेतावनी भी दी कि ये सभी विनाश के जोखिम में थे. जाहिर है बड़े पैमाने पर विलुप्ति एक डरावना सच है सही मायने में ये वो आपदा है जो तमाम आपदाओं का कारण है.