कर्नाटक के नये मुख्यमंत्री बसवराज के पिता एस.आर. बोम्मई 13 अगस्त, 1988 और 21 अप्रैल 1989 के बीच कर्नाटक में जनता दल सरकार के मुख्यमंत्री थे. संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत 21 अप्रैल, 1989 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई थी. उस दौरान राष्ट्रपति शासन लगाया गया था. बर्खास्तगी इस आधार पर की गई थी कि उस समय के कई पार्टी नेताओं द्वारा किए गए बड़े पैमाने पर दलबदल के बाद बोम्मई सरकार ने बहुमत खो दिया था.
इसी मामले में सबसे पहले तत्कालीन राज्यपाल पी. वेंकटसुब्बैया के समक्ष बोम्मई की ओर से जनता दल विधायक दल की ओर से पारित प्रस्ताव की एक प्रति प्रस्तुत करने के बावजूद राज्यपाल ने विधानसभा में उनके बहुमत का परीक्षण करने का अवसर देने से इनकार कर दिया था. बोम्मई तब राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट की शरण में चले गए थे. यही से इस केस की शुरुआत हुई थी.
राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करने के राज्यपाल के फैसले के खिलाफ बोम्मई पहले हाईकोर्ट गए थे जहां उनकी रिट याचिका को खारिज कर दिया गया. फिर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. जहां एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया जो आज भी विधानसभा में बहुमत परीक्षण के नाम पर नजीर बनकर सामने आया. उनका यही मामला एसआर बोम्मई केस के तौर पर काफी चर्चित हुआ है.
यह मामला त्रिशंकु विधानसभा के उदाहरण के तौर पर एक नजीर बन गया था. तब जब सरकार बनाने के लिए पार्टियों ने हाथापाई तक की थी. कोर्ट को भी इसका तार्किक निष्कर्ष निकलने में लगभग पांच साल लग गए. फिर 11 मार्च, 1994 को, सर्वोच्च न्यायालय की नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक आदेश जारी किया, जिसने एक तरह से प्रतिबंधों की वर्तनी द्वारा अनुच्छेद 356 के तहत राज्य सरकारों की मनमानी बर्खास्तगी को समाप्त कर दिया.
द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में निष्कर्ष निकाला कि राज्य सरकार को बर्खास्त करने की राष्ट्रपति की शक्ति पूर्ण नहीं है. फैसले में कहा गया कि राष्ट्रपति को अपनी घोषणा (अपना शासन लागू करना) संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित होने के बाद ही शक्ति का प्रयोग करना चाहिए. न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति केवल विधान सभा से संबंधित संविधान के प्रावधानों को निलंबित करके विधानसभा को निलंबित कर सकते हैं. अदालत ने ये भी कहा कि विधानसभा का विघटन निश्चित रूप से कोई मामला नहीं है. इसका सहारा केवल तभी लिया जाना चाहिए जब उद्घोषणा के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक हो.
एसआर बोम्मई बनाम यूनियन ऑफ इंडिया केस क्या है
इस मामले में हुए फैसले में एक विरोधी केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों की मनमानी बर्खास्तगी को समाप्त किया गया. इसीलिए ये फैसला एक रेफरेंस के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. कोर्ट ने फैसले में स्पष्ट किया कि विधानसभा एकमात्र ऐसा मंच है जहां सरकार के बहुमत का परीक्षण करना चाहिए, न कि राज्यपाल की व्यक्तिपरक राय यहां चलनी चाहिए जिसे अक्सर केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में जाना जाता है.
आज भी एस.आर. बोम्मई बनाम भारत गणराज्य केस का उल्लेख सविंधान के अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग को रोकने में संदर्भ में किया जाता है.इस ऐतिहासिक मामले पर सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने जो ऐतिहासिक फैसला दिया था उसने अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग पर रोक लगा दी थी. इस फैसले का केंद्र और राज्यों के बीच के संबंधों पर भारी प्रभाव पड़ा था.