नादिर शाह अफ़्शार का एक नाम नादिर कुली बेग फारसी शाह था. उसने सदियों के बाद ईरानी प्रभुता स्थापित की थी. उसने अपना जीवन दासता से शुरू किया था और फारस का शाह ही नहीं बना बल्कि उसने उस समय ईरानी साम्राज्य के सबल शत्रु उस्मानी साम्राज्य और रूसी साम्राज्य को ईरानी क्षेत्रों से बाहर निकाला.
उसने अफशरी वंश की स्थापना की थी और उसका उदय उस समय हुआ जब ईरान में पश्चिम से उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन) का आक्रमण हो रहा था. उसी समय पूरब से अफगानों ने सफावी राजधानी इस्फहान पर अधिकार कर लिया था. उत्तर से रूस भी फारस में साम्राज्य विस्तार की योजना बना रहा था. इस परिस्थिति में भी उसने अपनी सेना संगठित की और अपने सैन्य अभियानों की वजह से उसे फारस का नेपोलियन या एशिया का अंतिम महान सेनानायक जैसी उपाधियों से सम्मानित किया गया.
वो कभी भारत विजय के अभियान पर भी निकला था. तब दिल्ली की सत्ता पर आसीन मुगल बादशाह मुहम्मद शाह आलम को हराने के बाद उसने वहां से अपार दौलत इकट्ठा की जिसमें कोहिनूर हीरा भी शामिल था. इसके बाद वो अपार शक्तिशाली बन गया. काबुल पर कब्जा करने के बाद उसने दिल्ली पर आक्रमण किया.
करनाल में मुगल राजा मोहम्मद शाह और नादिर की सेना के बीच लड़ाई हुई. इसमें नादिर की सेना मुगलों के मुकाबले छोटी थी पर अपने बारूदी अस्त्रों के कारण फारसी सेना जीत गई. वो मार्च 1739 में दिल्ली पहुंचने पर यह अफवाह फैली कि नादिर शाह मारा गया. इससे दिल्ली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्ल शुरू हो गया.
उसने इसका बदला लेने के लिए दिल्ली में भयानक खूनखराबा किया और एक दिन में करीब 2000 लोग मार दिए गए. इसे नादिर शाह का बड़ा कत्लेआम कहकर इतिहास में दर्ज किया गया. इसमें मोहम्मद शाह ने हार मानी और अकूत दौलत और सिंधु नदी के पश्चिम की सारी भूमि भी नादिर शाह को दान में दे दी. हीरे जवाहरात का एक ज़खीरा भी उसे भेंट किया गया जिसमें कोहेनूर, दरिया-नूर और ताज-ए-मह हीरे भी शामिल थे जिनकी एक अपनी खूनी कहानी है.
नादिर को जो सम्पदा मिली वो उस समय करीब 70 करोड़ रुपयों की थी. नादिर ने दिल्ली में साम्राज्य विस्तार का लक्ष्य नहीं रखा था. उसका उद्देश्य अपनी सेना के लिए आवश्यक धनराशि इकठ्ठा करनी थी जो उसे मिल गई थी. कहा जाता है कि दिल्ली से लौटने पर उसके पास इतना धन हो गया था कि अगले तीन वर्षों तक उसने जनता से कर नहीं लिया था.