98 साल के मार्शल ऑफ इंडियन एयरफोर्स अर्जन सिंह का निधन आज ही के रोज 16 सितंबर 2017 को हुआ था. वो भारत के ऐसे तीसरे अफसर थे जिन्हें राष्ट्रपति भवन में सेना का दुर्लभ सम्मान मिला था.
2002 में 85 वर्ष की आयु में उन्हें मार्शल ऑफ एयरफ़ोर्स का सम्मान दिया गया था. सम्मान के लिए राष्ट्रपति भवन में तब खास समारोह हुआ था. अर्जन सिंह ने 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में निर्णायक भूमिका निभाई थी.
अर्जन सिंह का जन्म 15 अप्रैल 1919 को लायलपुर (अब पाकिस्तान) में हुआ था. उन्होंने 1944 में इम्फाल अभियान में स्क्वाड्रन लीडर के तौर पर अपनी स्क्वाड्रन का नेतृत्व किया था. 15 अगस्त 1947 को उन्होंने लाल किले के ऊपर फ्लाई-पास्ट का नेतृत्व किया था. आजादी के बाद पहली बार लड़ाई में उतरी भारतीय वायुसेना की कमान अर्जन सिंह के हाथ में थी. पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत में उनकी भूमिका बहुत बड़ी थी.
बता दें, अर्जन सिंह को जो सर्वोच्च सम्मान मिला, वो अब तक सेना में केवल 3 अफसरों को ही मिला है. सेम मानेकशॉ को ये सम्मान दिया गया था. उन्हीं की तरह केएम करियप्पा को भी ये सम्मान दिया गया. फिर एयरफोर्स में अर्जन सिंह को ये सम्मान मिला. अर्जन सिंह के सम्मान में पश्चिम बंगाल के पानागढ़ एयरबेस को ‘अर्जन सिंह एयरबेस’ का नाम दिया गया है.
आपको बता दें, ये ऐसा रैंक है, जो आजीवन के लिए होता है. रिटायरमेंट से इसका कोई लेना-देना नहीं. मृत्यु होने तक इसी पद पर व्यक्ति बना रहता है. इस पद पर पहुंचे लोग पेंशन नहीं लेते क्योंकि जीवित रहने तक उन्हें पूरी सैलरी दी जाती है. अन्य आर्मी अफसरों की तरह, फील्ड मार्शल को किसी भी ऑफिशियल समारोह पर पूरी यूनिफॉर्म में आना होता है.
आपको बता दें, 1965 की लड़ाई में अर्जन सिंह ने भारतीय वायुसेना का नेतृत्व किया था. वो हमेशा अपने करियर में अजेय रहे. अर्जन सिंह को 19 वर्ष की उम्र में आरएएफ क्रैनवेल में एम्पायर पायलट प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के लिए चुना किया गया था. इसके बाद उन्होंने जो किया वह इतिहास है.
उड़ाए 60 विमान
सर्वोच्च रैंक हासिल करने के बाद भी सेवानिवृत्त होने से ठीक पहले तक अर्जन सिंह विमान उड़ाते रहे और कई दशकों के अपने सैन्य जीवन में उन्होंने 60 तरह के विमान उड़ाए, जिनमें द्वितीय विश्व युद्ध से पहले के तथा बाद में समसामयिक विमानों के साथ-साथ परिवहन विमान भी शामिल हैं.