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Shaheed Bhagat Singh: फांसी से ठीक पहले भगत सिंह ने लिखा वो खत... जो बन गया इंकलाब की आवाज़

Shaheed Bhagat Singh: आज ही के दिन, 1931 में भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने देश की आज़ादी का सपना दिल में बसाकर मुस्‍कुराते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया था. फांसी से कुछ घंटे पहले भगत सिंह अपने साथियों को अपना आखिरी खत लिख रहे थे. उनके दिल में फांसी के डर का एक कतरा भी नहीं था. था तो सिर्फ अपने देश की आज़ादी के लिए सबकुछ लुटा देने का जज्‍़बा.

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Martyr's Day 2022:
Martyr's Day 2022:

Shaheed Bhagat Singh Martyrs' Day 2022: 23 मार्च का दिन भारत के इतिहास में हमेशा अमर रहेगा. आज ही के दिन, 1931 में भगत सिंह, शिवराम राजगुरु और सुखदेव थापर ने देश की आज़ादी का सपना दिल में बसाकर मुस्‍कुराते हुए फांसी के फंदे को चूम लिया था. फांसी से कुछ घंटे पहले भगत सिंह अपने साथियों को अपना आखिरी खत लिख रहे थे. उनके दिल में फांसी के डर का एक कतरा भी नहीं था. था तो सिर्फ अपने देश की आज़ादी के लिए सबकुछ लुटा देने का जज्‍़बा. अंग्रेजी द्वारा फांसी पर लटकाये जाने के बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु हमेशा के लिए अमर हो गए और भगत सिंह का लिखा वो आखिरी खत देशवासियों के लिए इंकलाब की आवाज़ बन गया.

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क्‍या था भगत सिंह का आखिरी खत
जाहिर-सी बात है कि जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए, मैं इसे छिपाना भी नहीं चाहता. आज एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं. अब मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता. मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है. क्रांतिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है. इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता. 

आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं. यदि मैं फांसी से बच गया तो वे जाहिर हो जाएंगी और क्रांति का प्रतीक चिह्न मद्धम पड़ जाएगा, हो सकता है मिट ही जाए. लेकिन दिलेराना ढंग से हंसते-हंसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिन्दुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी. 

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हां, एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थीं, उनका 1000वां भाग भी पूरा नहीं कर सका अगर स्वतंत्र, जिंदा रहता तब शायद उन्हें पूरा करने का अवसर मिलता. इसके अलावा मेरे मन में कभी कोई लालच फांसी से बचे रहने का नहीं आया. मुझसे अधिक भाग्यशाली भला कौन होगा. आजकल मुझे स्वयं पर बहुत गर्व है. मुझे अब पूरी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है, कामना है कि ये और जल्दी आ जाए. तुम्हारा कॉमरेड, 
भगत सिंह

हंसते-हंसते चूमा फांसी का फंदा
जिस दिन तीनों क्रांतिवीरों को फांसी दी जानी थी, उस दिन भी वे मुस्‍कुरा रहे थे. तीनों ने आपस में एक दूसरे को गले लगयाा. जेल में बंद हर कैदी की आंखें उस दिन नम हो गई थीं. तीनों को फांसी से पहले नहलाया और वज़न किया गया. सजा के ऐलान के बाद भगत सिंह का वज़न बढ़ गया था. आखिर तीनों ने मुस्‍कुरा कर फंदे को चूमा और खुद को देश की आजादी के लिए न्‍यौछावर कर दिया.


 

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