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जयललिता के साथ क्या घटा कि उन्होंने CM बनने की कसम ले ली

जयललिता के फिल्मी करियर की शुरुआत कैसे हुई, उनकी मुलाकात MGR से कैसे हुई, जयललिता को ना चाहते हुए भी राजनीति में कदम क्यों रखना पड़ा, क्यों उनके गुरु MGR  ने उनसे बात करना बंद कर दिया था और कौन सी घटना ने उन्हें सीएम बनने की शपथ लेने पर मजबूर कर दिया, सुनिए 'नामी गिरामी' में.

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naami girami
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ये वो वक्त था जब मद्रास को तमिलनाडु बने 28 बरस का समय बीत चुका था. प्रदेश में सत्ता के समीकरण बदलने वाले थे. कुछ चेहरों का उभार होना था. पुरूषों के दबदबे से भरी तमिलनाडु असेंबली से एक महिला के हाथों होने को थी. 25 मार्च 1989. सत्ता पक्ष की बेंच से मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि बजट पेश करने वाले थे, वो कुछ कहते इससे पहले तमिलनाडु कांग्रेस कमेटी के नेता अननथंन अपनी जगह से खड़े हुए ज़ोर से चिल्लाते हुए बोले- करुणानिधि जी आपकी पुलिस ने संविधान की मर्यादा का उल्लंघन किया है. विपक्ष की नेता पर ग़लत तरीके से एक्शन लिया है. हम ये बर्दाश्त नहीं करेंगे. अननथंन के जोशीले प्रतिरोध ने विधानसभा की कार्यवाही में गर्मी ला दी.  

इस शोर में नेता प्रतिपक्ष की आवाज़ सबसे बुलंद थी वो बोलीं- करुणानिधि जी आपकी सरकार ने मेरा फोन टैप किया, मेरे ऊपर ग़लत तरीके से एक्शन लिया. ये इस सभा का अपमान है. आपको और आपके मंत्रियों को इस्तीफा दे देना चाहिए. माहौल को बिगड़ता देख स्पीकर P.H Pandian ने सभी को शांत होने का आग्रह किया और कहा- बेहतर होगा कि आज चर्चा बजट पर हो जिसके लिए हम आज उपस्थित हैं. आग्रह को दरकिनार कर नेता प्रतिपक्ष फिर बोलीं-  हमें ये मान्य नहीं कि ऐसा व्यक्ति जो क्रिमिनल एक्ट में संलग्न हो बजट पेश करे. हम इसका विरोध करते हैं.  

अब तक विधानसभा में धक्का मुक्की शुरू हो चली थी. नेता अपनी कुर्सियां छोड़ एक दूसरे को झिंझोड़ रहे थे. इस बीच देखा गया कि किसी ने सीएम करुणानिधि को धक्का दे दिया. वो ज़मीन पर जा गिरे. विधानसभा में सूबे के सीएम को फर्श पर गिरा देख सत्तारूढ़ द्रमुक के विधायक हत्थे से उखड़ गए. वो बदला लेने विपक्षियों की तरफ बढ़े. उनके सामने नेता प्रतिपक्ष थीं. किसी ने उनकी चोटी पकड़ी और घसीटना शुरू कर दिया. दूसरे ने साड़ी पकड़ कर खींचा. बदहवास से विधायकों के हाथ जो आ रहा था एक दूसरे को वही फेंक कर मार रहे थे. माइक भी बेंचों पर नहीं हवा में थे.  कड़ी मशक्कत से विपक्ष के नेताओं ने नेता विपक्ष को भीड़ से निकाला. उलझे बाल, बेतरतीब साड़ी और गालों पर ढुलक आए आंसुओं को पोंछतीं वो असेंबली से निकलीं और गुस्से में बोलीं- मैं ये दिन भूलूंगी नहीं. आज जो मेरे साथ हुआ है मैं उसका जवाब दूंगी और अगली बार इस असेंबली में कदम मुख्यमंत्री की हैसियत से ही रखूंगी.. मैं जयललिता ये शपथ लेती हूँ.

 



बचपन के शुरुआती सालों में जयललिता नाना-नानी और मौसी के साथ बैंगलोर रहती थीं. जब वो  11 साल की हुईं तो उनकी मौसी की शादी हो गई जिसके बाद वो मद्रास अपनी मां संध्या के पास लौट आयीं. संध्या तमिल फिल्मों में कैरेक्टर रोल किया करती थीं. उनका मन था कि जया क्लासिकल डांस सीखे साथ ही अपनी पढ़ाई भी जारी रखे. कभी अगर जया संध्या का मेकअप इस्तेमाल करतीं तो वो बिफर उठतीं और कहतीं इससे दूर रहो और पढ़ाई पर ध्यान दो. लेकिन एक घटना के बाद सब बदल गया. कर्नाटक के होटल वुडलैंड में कर्नन फिल्म की सक्सेस पार्टी चल रही थी. फिल्म का हिस्सा रहीं संध्या भी जयललिता के साथ वहां पहुंचीं. पार्टी खत्म होने के बाद संध्या जया को लेकर वहां से निकल रही थीं कि तभी प्रड्यूसर बी.आर पंथुलु ने आवाज़ लगाई.  

पंथुलू ने कहा कि वो कुछ ही हफ्तों में कल्यान कुमार के साथ एक कन्नड़ फिल्म बनाने जा रहे हैं... छीन्नादा गोम्बे.. और वो चाहते हैं कि जया उनकी फिल्म की हिरोईन हो. संध्या इसके लिए राज़ी नहीं थी. दो महीने में ही जया की क्लासेस शुरू होनी थी. पंथुलु ने आश्वासन दिया कि फिल्म दो महीने में पूरी हो जाएगी. सोच विचार कर संध्या ने हां कर दी. उन्हें लग रहा था कि हायर स्टडी का सपना देख रही जया इसका विरोध करेंगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. जया मान गईं. ये फ़िल्मी परदे पर जया की शुरुआत थी. इसे अपनी पहली और आख़िरी फिल्म मान रही जया गफलत में थी क्योंकि किस्मत को तो कुछ और ही मंज़ूर था. नामी गिरामी में सुनने के क्लिक करें.


तमिल फिल्म इंस्ट्री के प्रख्यात डायरेक्टर श्रीधर अपनी अगली फिल्म वेन्निरा आदिय के लिए जया को साइन करना चाहते थे. मां ने भी हामी भर दी लेकिन अब जया ने विरोध करना शुरू कर दिया और गुस्से में घर को सिर पर उठा लिया. आजतक रेडियो में हमारी साथी खुशबू ये किस्सा बताती हैं.

जब जया के पास श्रीधर की फिल्म का ऑफर आया तो उसी वक्त उन्हें उनकी स्टडी के लिए स्कॉलरशिप मिली थी और वो पढ़ाई पर करना चाहती थीं ना कि फिल्मों पर. लेकिन मां का दबाव था कि इतने बड़े डायरेक्टर के साथ काम करने का मौका बार बार नहीं मिलता. गुस्साई जया ने फिर घरों की कई चीज़ें तोड़ डाली, विरोध जताया मगर हुआ वही जो मां ने चाहती थीं. जया को स्कॉलरशिप छोड़ फिल्म को चुनना पड़ा.

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दो-तीन फिल्मों के बाद से ही तमिल सिनेमा में जय ललिता का सिक्का चलने लगा और इस सफलता में उनके सारथी बने एक्टर एम.जी रामाचंद्रन. दोनों की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर गदर काट रही थी. एक रोज़ एमजीआर ने अपने मित्र और प्रड्यूसर A. V. Meiyappan को तलब किया और कहा- AVM.. मैं चाहता हूँ कि मेरी आने वाली ज्यादातर फिल्में जयललिता के साथ ही हों. एमजीआर की इस बात से एवीएम असहमत थे. उन्होंने खुल कर इसे ज़ाहिर भी कर दिया. नाराज़ एमजीआर ने एवीएम प्रोडक्शन से जुड़ी हर फिल्म को डिले करनी शुरू कर दी. इससे AVM का प्रोडक्शन कास्ट बढ़ता चला गया.

 एमजीआर के बदले रुख से परेशान एवीएम ने तय किया कि उनकी फिल्मों में जयललिता की वापसी होगी. कहते हैं कि एमजीआर जयललिता को लेकर काफी सेंसेटिव थे मगर दावा ये भी है कि वो हमेशा जया के जीवन को कंट्रोल किया करते थे जिससे जया परेशान रहतीं. नामी गिरामी में सुनने के क्लिक करें.
 
1969 विधानसभा चुनाव के नतीजे आए. राज्य में फिर से डीएमके की सरकार बनी. पहली बार करुणानिधि को मुख्यमंत्री मिला लेकिन सब मानते थे कि इसमें एमजीआर का भी बड़ा रोल था. इसका एहसास खुद उनको भी था. रैलियों में एमजीआर को सुनने के बाद भीड़ छंट जाती और करुणानिधि के लिए लोग नहीं रुकते थे. ये नज़ारा सबने देखा. इससे एमजीआर को और भी ज़्यादा लगने लगा कि उनकी अपील लोगों में ठीक ठाक है. ये सब देख करुणानिधि भी रहे थे. धीरे-धीरे उन्होंने एमजीआर को किनारे करना शुरू किया. पार्टी मीटिंग में एमजीआर को नहीं बुलाया जाता. उन्हें राजनीति छोड़ एक्टिंग पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी जाने लगी. करुणानिधि के  व्यवहार में आए इस परिवर्तन से आहत एमजीआर एक दिन डीएमके ऑफिस पहुंचे और दो टूक मंत्री पद मांग लिया. एमजीआर से खार खाए बैठे करुणानिधि ने प्रस्ताव ठुकराने में चंद सेकेंड लगाए. यदि करुणानिधि को भविष्य का ज़रा सा भी अंदाज़ा होता तो शायद वो ऐसा ना करते लेकिन उनके इनकार ने तमिलनाडु की राजनीति में शक्ति का एक और ध्रुव पैदा कर दिया. एमजीआर ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. भ्रष्टाचार के आरोप लगाए. करुणानिधि भी सहने करने के मूड में नहीं थे. एमजीआर को पार्टी से बाहर कर दिया गया. इसके ठीक दो हफ्ते बाद जन्म हुआ AIDMK का जिसका झंडा थामे एमजीआर तमिलनाडु की राजनीति में पूरी तरह कूद गए. उनका साथ दे रही थीं जयललिता. नामी गिरामी में सुनने के क्लिक करें.

करुणानिधि एमजीआर को दूसरी मर्तबा राज्य का मुख्यमंत्री बनने से नहीं रोक  सके. जयललिता ने भी फिल्मों के साथ राजनीति साधना सीख लिया था. उनके लिए पार्टी में एक स्पेशल पोस्ट बनाई गई.. प्रोपेगेंडा मिनिस्टर. वो पार्टी से जुड़ी स्ट्रैटेजी तैयार करतीं. प्रचार संभालतीं. मगर फिल्मी सफर से लेकर राजनीतिक सफर तक एमजीआर का साथ दे रहे एवीएम को ये रास नहीं आ रहा था. वो नहीं चाहते थे कि एमजीआर से उनकी करीबी के बीच जयललिता जगह बनाएं. इस बीच पांच अक्टूबर 1984 को एमजीआर की तबीयत बिगड़ गई. हड़बड़ी में उन्हें अपोलो अस्पताल भर्ती कराया गया. मालूम चला कि किडनी ने काम करना बंद कर दिया है. स्थिति गंभीर थी डॉक्टर की सलाह पर उन्हें इलाज के लिए अमेरिका भेज दिया गया. एमजीआर देश और पार्टी से दूर थे. जयललिता उस वक्त तक राज्यसभा एमपी बन चुकी थीं और पार्टी में प्रभावी भी थीं. उधर एवीएम ने सोचा कि ये वक्त जयललिता को हाशिये पर पहुंचाने के लिहाज़ से उत्तम है. दिल्ली में राज्यसभा सेशन अटेंड करके लौट रहीं जयललिता को ख़बर लगी कि तमिलनाडु हाउस के वीआईपी रूम में उनके घुसने पर पाबंदी लगा दी गई है, साथ ही पार्टी में डिप्टी मिनिस्टर की पोस्ट भी छीन ली गयी है. घबराई जयललिता ने तुरंत प्रेस कांफ्रेंस बुलाई और पार्टी के लोगों पर आरोप लगाते हुए कहा- मुझे लग रहा है कि एमजीआर अभी मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं और इसी का फायदा उठा कर पार्टी के लोग मुझ पर व्यक्तिगत हमले कर रहे हैं. उस पार्टी को दूषित किया जा रहा है जिसे मैंने और एमजीआर ने मिल कर खड़ा किया है.

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प्रेस कांफ्रेंस के बाद उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस के नेताओं से राजनीतिक संरक्षण की मांग की. जयललिता की उम्मीद के विपरीत उनकी छवि इस प्रकरण से खराब हुई. अफवाह फैल गई कि एमजीआर को मानसिक रूप से बीमार करार देकर और कांग्रेस से अपनी नजदीकियां बढ़ा कर जयललिता मुख्यमंत्री बन जाना चाहती हैं.  

पार्टी ने उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव प्रचार से दूर कर दिया. जब प्रधानमंत्री राजीव गांधी को ये मालूम हुआ तो गठबंधन के साथी के तौर पर AVM पर दबाव बनाया कि जयललिता को कैंपेनिंग में शामिल कर लें. ऐसा ही हुआ. एमजीआर के अमेरिका में होने के बावजूद वो लगातार तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बन गए. जनता में जयललिता का रसूख बढ़ गया. एमजीआर की मनचाही हो नहीं रही थी. तय हुआ कि एक बार एमजीआर स्वदेश वापसी करें तो जयललिता का पुख्ता इलाज किया जाएगा.  

करीब दो महीने बाद तमिलनाडु लौटे एमजीआर को रिपोर्ट दी गई कि पीठ पीछे जयललिता ने उन्हें मानसिक रूप से बीमार करार दिया था और ये भी कहा कि एआईएडीएमके सिर्फ एक व्यक्ति की पार्टी नहीं. एमजीआर को एवीएम ने जैसे समझाना चाहा था इस बार वैसे समझा लिया था. नतीजा ये हुआ कि एमजीआर जयललिता से मुलाकात करने से बचने लगे. उनके किसी करीबी को मंत्री नहीं बनाया गया. जयललिता को समझ आ गया कि उनके विरोधी इस खेल में बढ़त बना चुके हैं. जया ने चिट्ठी पत्री भी लिखी मगर जवाब नहीं आया.  

फिर किसी तरह एक दिन एमजीआर और जयललिता मिले. गिले शिकवे खत्म हुए। जयललिता की उनके पद पर बहाली हो गई. लग रहा था कि स्थिति सामान्य हो चुकी हैं लेकिन तभी राजीव गांधी को जयललिता की लिखी एक चिट्ठी ने पूरा मामला बिगाड़ दिया.

जया ने राजीव गांधी को चिट्ठी लिखते हुए एमजीआर की गिरती स्वास्थ्य के बारे में अपनी बात रखी थी और कहा था कि एमजीआर को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और जया को उनका उत्तराधिकारी बना देना चाहिए. राजीव गांधी को ये बात बड़ी अटपटी लगी क्योंकि जया एमजीआर की करीबी थी, एक प्रख्यात तमिल फिल्म इंडस्ट्री स्टार थी. वो नाराज़ हो गए और उन्होंने ये बात एमजीआर को बता दी जिसके बाद एमजीआर ने पार्टी के लोगों को जयललिता से मिलने तक के लिए मना कर दिया था

पार्टी में किनारे कर दी गईं जयललिता के लिए स्थिति अभी और बिगड़नी थी. उनके गुरु और राज्य के मुख्यमंत्री एमजीआर 24 दिसंबर 1987 को स्वर्गवासी हो गए. नामी गिरामी में सुनने के क्लिक करें.

कड़े संघर्ष के बाद नेता विपक्ष बनीं जयललिता के साथ असेंबली में हुई अभद्रता ने एक नया राजनीतिक मोड़ ले लिया था. बिखरे बाल, उलझी साड़ी और रोती शक्ल अख़बारों के पहले पन्ने पर जगह बना रही थी. इसने आगामी चुनाव के लिए जयललिता के पक्ष में माहौल बना दिया. 1989 में राजीव गांधी की हत्या तमिलनाडु में हो गई. कांग्रेस का गठबंधन जयललिता की पार्टी के साथ था. सहानुभूति की लहर चली तो केंद्र और राज्य दोनों जगह कांग्रेस सत्ता में आ गई. तमिलनाडु में AIADMK बड़ी पार्टी थी तो मुख्यमंत्री जयललिता बनीं. दो साल पहले असेंबली के बाहर जयललिता ने जो शपथ ली थी वो पूरी हो गई.  नामी गिरामी में सुनने के क्लिक करें.

एक ओर जहां कांग्रेस के साथ तमिलनाडु सरकार का संतुलन बिगड़ रहा था, वहीं पार्टी में जी हुजूरी भी तेज थी. नेता अपने बाजू पर जयललिता के टेटू गुदवा रहे थे. जब तक जया का हेलीकॉप्टर आंखों से ओझल न होता तब तक पार्टी के नेता सिर झुकाए उनके सम्मान में खड़े रहते. असेंबली के स्पीकर सेदापट्टी मुथैया जया के सामने अपनी कुर्सी तक पर नहीं बैठते थे.

पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई जयललिता की बॉडी लैंग्वेज बदल रही थी. उनके भाषणों में सिर्फ मैं और मेरा झलकने लगा. अख़बारों और मैगजीनों में जयललिता को कठोर शासक बताया जाने लगा. पार्टी के कार्यकर्ता न्यूज़ चैनलों की कवरेज से नाराज़ होकर तोड़फोड़ करने पहुंच जाते. यहां तक कि असेंबली में जयललिता खुद न्यूज़ मैगज़ीन के एडिटरों के खिलाफ स्पीकर से कार्रवाई की मांग करने लगीं. उनकी सख्ती का शिकार विपक्ष भी हुआ. सार्वजनिक मंचों से सरकार की आलोचना करने पर पुलिस के हाथों गिरफ्तारी आम बात हो गई लेकिन वक्त हमेशा एक सा नहीं रहता. करुणानिधि के अच्छे दिन भी लौटे. विपक्ष में बैठीं जयललिता पर करप्शन के आरोप लगे और उन्हें खुद जेल जाना पड़ गया. नामी गिरामी में सुनने के क्लिक करें.

TANSI केस जयललिता के गले की फांस बना हुआ था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2001 का चुनाव जीतने के बावजूद चार महीने के भीतर उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी. मगर उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं थी. उनके समर्थक मानते थे कि अम्मा नहीं बल्कि करप्शन में उनके मंत्री लिप्त हैं. 2002 में फिर चुनाव हुए तो जयललिता ने अपनी लोकप्रियता का लोहा तीसरी बार मुख्यमंत्री बनकर मनवा लिया. 2006 में वो चुनाव हारीं लेकिन 2011 में फिर वापसी कर ली. जयललिता तमिलनाडु की सियासत का वो नाम बन चुकी थीं जिनके इर्द गिर्द राज्य की कहानी लिखी जा रही थी. पूरा देश उनकी और करुणानिधि की पॉलिटिकल राइवलरी का गवाह बन रहा था. 2016 में एक बड़ा हादसा दस्तक देने वाला था. तमिलनाडु से लेकर केंद्र तक अपनी पैठ जमा चुकी जयललिता के लिए सब ठीक ठाक चल रहा था. चिर प्रतिद्वंदी करुणानिधि ख़राब तबीयत के कारण खुद को राजनीति से दूर कर चुके थे. ऐसा लगने लगा था कि आने वाले दिनों में AIADMK और जयललिता का राज्य में एकछत्र राज होगा मगर 4 दिसंबर 2016 को न्यूज़ चैनलों पर जयललिता के मौत की ख़बर फ्लैश. दिल का दौरा पड़ने से जयललिता का देहांत हो गया. जीवन भर हंगामों के बीच रहीं जयललिता की मौत भी हंगामाखेज थी. आरोप लगा कि उनकी सहेली शशिकला का हाथ इस मौत में है. नामी गिरामी में सुनने के क्लिक करें.

तीन दशक से ज्यादा समय तक तमिलनाडु की राजनीति पर राज करने वाली जयललिता का जीवन उतार चढ़ाव से भरा रहा. उनका कहना था कि उन्हें न तो फिल्मों से लगाव था और न ही राजनीति से बावजूद इसके उनका जीवन इसी ओर अग्रसर रहा और आज भी उनके देहांत के बाद तमिलनाडु की राजनीति जयललिता के इर्द गिर्द ही घूम रही है.

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