Desmund Tutu: दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष के प्रणेता और सामाजिक कार्यकर्ता डेसमंड टूटू का 90 वर्ष की आयु में निधन हो गया है. दुनियाभर में उन्हें अपने राष्ट्र के नैतिक विवेक (moral conscience of his nation) के नाम से जाना जाता है. 1990 के दशक के अंत में टूटू को प्रोस्टेट कैंसर का पता चला था और हाल के वर्षों में उन्हें इलाज से जुड़े संक्रमणों के चलते कई बार अस्पताल जाना पड़ा था.
आर्कबिशप डेसमंड टूटू का जन्म जोहान्सबर्ग से 100 मील (160 किमी) दूर एक शहर क्लार्कडॉर्प में हुआ था. एक प्रधानाध्यापक और एक घरेलू नौकर के घर जन्मे डेसमंड, एंग्लिकन पुजारी बनने से पहले एक शिक्षक बने. प्रीस्ट बनने के बाद वह काफी घूमे. उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी से धर्मशास्त्र में MA किया. 1970 के दशक के मध्य में वे आजादी के आंदोलन में सक्रिय हुए. हालांकि, संघर्ष खत्म होने के बाद भी इनकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ती रही.
उत्साही, भावनात्मक, करिश्माई और अत्यधिक मुखर टूटू ने 1984 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता. 1986 में उन्हें केपटाउन का आर्कबिशप नियुक्त किया गया, जो उनकी मातृभूमि में एंग्लिकन चर्च का प्रभावी प्रमुख था. दक्षिण अफ्रीका में उन्हें रंगभेदी शासन के समर्थकों द्वारा घृणा की नज़र से देखा गया. उन्हें एक आंदोलनकारी और देशद्रोही के रूप में भी देखा गया.
टूटू ने हमेशा अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस (ANC) से अपनी दूरी बनाए रखी. यही वह पार्टी थी जिसने आजादी के आंदोलन का नेतृत्व किया और अब दक्षिण अफ्रीका में 20 से अधिक वर्षों से सत्ता में है. उन्होंने अपने इतिहास के सशस्त्र संघर्ष और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं का बिना शर्त समर्थन करने से इनकार कर दिया. हालांकि, टूटू ने मंडेला के एक बहुजातीय समाज के दृष्टिकोण का समर्थन किया, जिसमें सभी समुदाय बिना किसी द्वेष या भेदभाव के एक साथ रहते हैं. इसके लिए उन्होंने रेनबो नेशन (Rainbow Nation) शब्द का भी इस्तेमाल किया.
1994 में देश के पहले स्वतंत्र चुनावों के बाद, नेलसन मंडेला स्वतंत्र दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने. उन्होंने टूटू को रंगभेद-युग के मानवाधिकारों के हनन में विषयों पर बने आयोग (TRC) की अध्यक्षता करने के लिए कहा. अपने इतिहास पर लगे गहरे ऐतिहासिक घावों को ठीक करने के लिए एक अग्रणी प्रयास के रूप में दुनिया भर में उनकी सराहना की गई थी. हालांकि, उनके लिए यह अनुभव बेहद दर्दनाक रहा. श्वेत दक्षिणपंथ, कुछ मुख्यधारा के उदारवादियों और ANC की क्रूर आलोचना से वह दुखी रहे.
1990 के दशक के अंत में, प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित टूटू ने अपनी 60 साल की पत्नी, चार बच्चों और पोते-पोतियों के साथ अधिक समय बिताना शुरू किया. उन्होंने ANC की आलोचना करना जारी रखा और अपनी बीमारी के बावजूद, वैश्विक मामलों पर अपनी राय रखते रहे.
2015 में, उन्होंने वैश्विक नेताओं से 35 वर्षों के भीतर अक्षय ऊर्जा पर चलने वाली दुनिया बनाने का आग्रह करते हुए एक याचिका शुरू की, जिसे वैश्विक स्तर पर 300,000 से अधिक लोगों का समर्थन प्राप्त हुआ. इसमें जलवायु परिवर्तन को "हमारे समय की सबसे बड़ी नैतिक चुनौतियों में से एक" कहा गया था. उन्होंने युगांडा में होमोफोबिक कानून के खिलाफ भी बात की और 'असिस्टेट डेथ' के तर्क के भी पक्षधर रहे.