लाइट, तसरी कसम और मैला आंचल जैसे ऐतिहासिक कृतियों से हिंदी साहित्य को सजाने वाले फणीश्वरनाथ रेणु की आज जयंती है. उनका जन्म 4 मार्च 1921 में हुआ था. वे एक सुप्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार थे. जिन्होंने साहित्य की दुनिया को एक से बढ़कर एक रचनाएं दी.
आइए जानते हैं उनके बारे में कुछ खास बातें...
- हिन्दी कथा साहित्य के रचनाकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को बिहार के पूर्णिया जिला के 'औराही हिंगना' गांव में हुआ था. वे लोगों के बीच रेणु के नाम से चर्चित थे. उन्होंने भारत के स्वाधीनता संघर्ष में भाग लिया था. उनके पिता कांग्रेसी थे इसलिए उनका बचपन आजादी की लड़ाई को देखते समझते बीता.
रेणु ने स्वंय लिखा है - पिताजी किसान थे और इलाके के स्वराज-आंदोलन के प्रमुख कार्यकर्ता. खादी पहनते थे, घर में चरखा चलता था. स्वाधीनता संघर्ष की चेतना रेणु में उनके पारिवारिक वातावरण से आई थी. वहीं वे भी बचपन और किशोरावस्था में ही देश की आजादी की लड़ाई से जुड़ गए थे. आजादी के आंदोलन से लेकर हिंदी साहित्य में अपनी लेखनी से उन्होंने तूफान पैदा कर दिया था.
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जब किया लिखना शुरू
फणीश्वरनाथ रेणु ने साल 1936 के आसपास से कहानी लेखन की शुरुआत की थी. उस समय कुछ कहानियां प्रकाशित भी हुई थीं, लेकिन वे किशोर रेणु की अपरिपक्व कहानियां थी. साल 1942 के आंदोलन में गिरफ्तार होने के बाद जब वे 1944 में जेल से मुक्त हुए, तब घर लौटने पर उन्होंने 'बटबाबा' नामक पहली कहानी लिखी. 'बटबाबा' 'साप्ताहिक विश्वमित्र' के 27 अगस्त 1944 के अंक में प्रकाशित हुई.
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वहीं उनकी दूसरी कहानी 'पहलवान की ढोलक' 11 दिसम्बर 1944 को 'साप्ताहिक विश्वमित्र' में छ्पी. साल 1972 में उन्होंने अपनी अंतिम कहानी 'भित्तिचित्र की मयूरी' लिखी. वहीं उन्हें जितनी प्रशंसा उपन्यासों से मिली, उतनी ही प्रशंसा उनकी कहानियों से भी मिली. 'ठुमरी', 'अगिनखोर', 'आदिम रात्रि की महक', 'एक श्रावणी दोपहरी की धूप', 'अच्छे आदमी', 'सम्पूर्ण कहानियां', आदि उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं.
उनकी लिखी हुई कहानी पर बनी फिल्म
फिल्म 'तीसरी कसम' का पोस्टरउनकी कहानी 'मारे गए गुलफाम' पर आधारित हैं. फिल्म 'तीसरी कसम' के बाद वे काफी लोकप्रिय हो गये थे. आज भी 'तीसरी कसम' फिल्म हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर मानी जाती है.
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रेणु की कुल 26 पुस्तकें हैं. इन पुस्तकों में संकलित रचनाओं के अलावा भी काफी रचनाएं हैं जो संकलित नहीं हो पाई, कई अप्रकाशित आधी अधूरी रचनाएं हैं. बता दें, उन्हें हिंदी के साथ बांग्ला और नेपाली भाषाओं पर भी उनकी अच्छी पकड़ थी.