आज से 199 साल पहले 1822 में दुनिया के पहले स्वामी नारायण मंदिर का अहमदाबाद में उद्घाटन हुआ था. बता दें कि अहमदाबाद में स्थित यह मंदिर स्वामीनारायण संप्रदाय का पहला मंदिर है. बताते हैं कि जब यह बन रहा था तो अंग्रेज इस मंदिर को देख बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस मंदिर का विस्तार करने के लिए और भूमि दे दी.
तब स्वामी नारायण संप्रदाय के लोगों ने उनका आभार प्रकट करने के लिए इसके वास्तुशिल्प में औपनिवेशिक शैली का प्रयोग किया. यह पूरी इमारत ईंटों से बनी है. मंदिर में बर्मा टीक से नक्काशी की गई है और हर मेहराब को चमकीले रंगों से रंगा गया है.
मंदिर में हर स्तंभ में लकड़ी की नक्काशी है. ऐसा कहा जाता है कि खुद स्वामी नारायणजी ने श्री नरनारायण देव की मूर्तियां यहां स्थापित की थीं. इसमें हनुमानजी और गणेशजी की विशाल व बहुत ही सुंदर मूर्तियां प्रवेश करते ही दोनों ओर स्थापित हैं. यहां पास स्थित हवेली में महिलाओं के लिए एक विशेष खंड है. यहां केवल महिलाओं के लिए समारोह और शिक्षण सत्र आयोजित किए जाते हैं. मंदिर में पांच बार पूजा होती है और इतनी ही बार भगवान के वस्त्र बदले जाते हैं.
कौन हैं श्री स्वामी नारायण ?
भगवान श्री स्वामी नारायण को सर्व अवतारों का अवतारी माना जाता है. 3 अप्रैल 1781 (चैत्र शुक्ल 9, वि.संवत 1837) को अयोध्या के पास गोण्डा जिले के छपिया ग्राम में उनका पृथ्वी पर अवतरण हुआ था. उनके पिता श्री हरिप्रसाद व माता भक्तिदेवी ने उनका नाम घनश्याम रखा था. बताते हैं कि बालक के हाथ में पद्म और पैर से बज्र, ऊर्ध्वरेखा तथा कमल का चिन्ह देखकर ज्योतिषियों ने कह दिया कि यह बालक लाखों लोगों के जीवन को सही दिशा देगा.
पांच वर्ष की आयु में उन्हें अक्षर ज्ञान दिया गया. आठ वर्ष में जनेऊ संस्कार के बाद बाल्य काल में ही उन्होंने अनेक शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था. जब वह केवल 11 वर्ष के थे तो माता-पिता के देहांत के बाद लोगों के कल्याण के लिए घर छोड़कर चले गए. अगले सात साल तक पूरे देश की परिक्रमा की. इसके बाद लोग उन्हें नीलकंठवर्णी कहने लगे. इस दौरान उन्होंने गोपालयोगी से अष्टांग योग सीखा. वे उत्तर में हिमालय, दक्षिण में कांची, श्रीरंगपुर, रामेश्वरम् आदि तक गए. इसके बाद पंढरपुर व नासिक होते हुए वे गुजरात आ गए.
एक लंबे साधना काल में भगवान स्वामिनारायण जी ने जो नियम बनाये, वे स्वयं भी उनका कठोरता से पालन करते थे. उन्होंने यज्ञ में हिंसा, बलिप्रथा, सतीप्रथा, कन्या हत्या, भूत बाधा जैसी कुरीतियों को बंद कराया. उनका कार्यक्षेत्र मूल तौर पर गुजरात रहा. प्राकृतिक आपदा आने पर वे बिना भेदभाव के सबकी सहायता करते थे.
इस सेवाभाव को देखकर लोग उन्हें भगवान के अवतारी मानने लगे. भगवान स्वामिनारायण जी ने अनेक मंदिरों का निर्माण कराया, इनके निर्माण के समय वे स्वयं सबके साथ श्रमदान करते थे. भगवान स्वामिनारायण ने अपने कार्यकाल में अहमदाबाद (गुजरात), मूली, भूज, जेतलपुर, धोलका, वडताल, गढ़डा, धोलेरा और जूनागढ़ में भव्य शिखरबध्द मंदिरों का निर्माण किया. आज भी ये मंदिर स्थापत्य कला का नमूना हैं.