आज 2 अक्टूबर यानी गांधी जयंती है और हर कोई अलग-अलग तरीके से गांधी को याद कर रहा है. महात्मा गांधी की आत्मकथा से परिचित लोग अवश्य ही जानते होंगे कि जब बापू स्कूली बच्चे थे तब उन्हें शारीरिक अभ्यास बिल्कुल पसंद नहीं था. लेकिन क्रिकेट के प्रति उनके अनुराग के बारे में लोगों को कम ही मालूम है.
'महात्मा ऑन द पीच: गांधी एंड क्रिक्रेट इन इंडिया' नाम की एक पुस्तक इस बारे में बताती है कि कैसे राष्ट्रपिता इस ब्रिटिश खेल का आनंद लेते थे और उसे उन्होंने गले लगाया जो बाद में भारत के राष्ट्रीय तानाबाने से जुड़ गया. कौशिक बंदोपाध्याय की यह पुस्तक महात्मा गांधी के जुनून का बयां करती हैं. उनके बचपन के एक मित्र के हिसाब से वह न केवल क्रिक्रेट उत्साही थे बल्कि उन पर धुन सवार रहता था.
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हाईस्कूल में गांधीजी के सहपाठी रतीलाल गेलाभाई मेहता ने उन्हें शानदार क्रिक्रेटर करार देते हुए कहा, 'कई बार हमने साथ क्रिक्रेट खेला है और मुझे याद है कि वह बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में ही अच्छे थे. वैसे उन्हें स्कूल में शारीरिक अभ्यास पसंद नहीं था.'
उन्होंने एक और रोचक प्रसंग सुनाया. उन्होंने कहा, 'एक बार हम दोनों एक क्रिक्रेट मैच देख रहे थे. उन दिनों राजकोट सिटी और राजकोट सदर की टीमों में जोरदार टक्कर होती थी. उन्होंने कहा, 'मैच में एक अहम मोड़ पर, गांधीजी ने कुछ सोचकर कहा कि फलां खिलाड़ी आउट होगा और वाकई वह आउट हो गया.'
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यह पुस्तक बचपन में गांधीजी की इस खेल के प्रति जुनून से शुरू होती है और भारत में क्रिक्रेट के विकास की गाथा बताती है. हालांकि पुस्तक में खासकर स्कूली दिनों के बाद के जीवन में गांधीजी के क्रिक्रेट संबंधी सफर के बारे में बताया गया है.