1971 में दुनिया ने भारतीय नौसेना की ताकत देखी थी जिसका सबसे ज्यादा श्रेय आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) एयरक्राफ्ट कैरियर को जाता है. जो भारत का पहला एयरक्राफ्ट कैरियर है, जिसे 1943 में ब्रिटिश रॉयल नेवी के लिए HMS हरक्यूलिस के रूप में बनाया गया था. भारत-पाकिस्तान 1971 युद्ध में आईएनएस विक्रांत ने भारत की निर्णायक जीत में अहम भूमिका निभाई थी. युद्ध के समय पाकिस्तान का सबसे बड़ा डर आईएनएस विक्रांत ही था, जो बाद में सही साबित हुआ और उसे अपनी गाजी पनडुब्बी से हाथ धोना पड़ा था.
पाकिस्तान यह अच्छी तरह जानता था कि इस जंग में अकेला आईएनएस विक्रांत पूरे जंग की तस्वीर पलटकर रख सकता था इसलिए उसने आईएनएस विक्रांत को ध्वस्त करने का प्लान बनाया. उन्होंने अपने नेवल सबमरी पीएनएस गाजी को कराची से बंगाल की खाड़ी की तरफ रवाना किया. पाकिस्तान की यह सबमरीन समंदर में वह पानी के अंदर छिपते-छिपाते कई हजार किलोमीटर भारत का चक्कर काटकर ढाका तक पहुंच सकती थी और आईएनएस विक्रांत एयरक्राफ्ट कैरियर पर हमला कर सकती थी.
भारतीय नौसेना और रक्षा विशेषज्ञों को भी इस बात की भनक लग चुकी थी. सिग्नल इंटरसेप्ट से भारतीय नौसेना को सूचना मिली कि पाकिस्तान ने पीएनएस गाजी पनडुब्बी बंगाली की खाड़ी के ओर रवाना कर दी है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत ने पीएनएस गाजी को चकमा देने के लिए विक्रांत को विशाखापट्टनम पोर्ट से हटाकर उसकी जगह आईएनएस राजपूत को एक्टिव कर दिया था, लेकिन यह पूरा ऑपरेशन गुप्त रूप से किया गया. भ्रम पैदा करने के लिए आईएनएस विक्रांत के कॉल साइन आदि का इस्तेमाल किया है, जिससे दुश्मन सेना को यह जताया गया कि विक्रांत विशाखापट्टनम बंदरगाह पर ही है. आईएनएस राजपूत से लगातार वायरलैस मैसेज भेजे जाने लगे.
अब बारी दुश्मन पर सरप्राइज अटैक की थी. विक्रांत सेफ साइड था लेकिन अभी गाजी को सबक सिखाना बाकी था. तब शुरू हुआ भारतीय नौसेना का ऑपरेशन. जैसे ही बेखौफ पीएनस गाजी विशाखापट्टनम पहुंची तो आईएनएस राजपूत से सबमरीन पर हमला करने वाले दो डेप्थ चार्जर समंदर में गिरा दिए. पानी के अंदर एक बड़ा विस्फोट हुआ और गाजी समंदर की गहराई में समा गई. 1971 के युद्ध में भारत के लिए यह गौरवान्वित करने वाला पल था.
आईएनएस विक्रांत का इतिहास
आईएनएस विक्रांत, पेनेंट नंबर R11 सबसे पहले ब्रिटिश रॉयल नेवी के लिए 14 अक्टूबर, 1943 को HMS (हर मेजेस्टीज शिप) हरक्यूलिस के रूप में बनाया गया था. इसे 1945 में ब्रिटिश रॉयल नेवी में शामिल किया गया था. दूसरे विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद, इसे 1957 में अधूरी स्थिति में भारत को बेच दिया गया था. इसकी मरम्मत के लिए चार साल तक आयरलैंड, बेलफास्ट में हारलैंड और वुल्फ यार्ड में रखा गया.
03 नवंबर, 1961 को यह एयरक्राफ्ट कैरियर भारत पहुंचा और औपचारिक रूप से बॉम्बे हार्बर में भारतीय नौसेना के बेड़े में शामिल हो गया. उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की मौजूदगी में बड़ी धूमधाम से कमीशन इवेंट आयोजित किया गया. आईएनएस विक्रांत भारत का पहला एयरक्राफ्ट कैरियर बन गया.
आईएनएस विक्रांत की मदद से 1971 युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हार का स्वाद चखाया. हालांकि 1997 में इसे रिटायरमेंट दी गई और मुंबई के गेटवे ऑफ इंडिया पर एक संग्रहालय के रूप में रखा गया. 2013 में, केंद्र सरकार ने जहाज को स्क्रैप करने का फैसला किया क्योंकि यह इसके रखरखाव के लिए बहुत महंगा हो रहा था. कुछ समूहों के विरोध के बावजूद, जहाज को दारुखाना शिप-ब्रेकर को 60 करोड़ रुपये में बेच दिया गया था. जहाज को आखिरकार 2014 में खत्म कर दिया गया था. अब इसके नाम पर स्वदेशी विक्रांत तैयार किया गया, जो 02 सितंबर 2022 को भारतीय नौसेना में शामिल हुआ.