अमृतसर में गोल्डन टेंपल है. गोल्डन टेंपल के ठीक पास है जलियांवाला बाग. जहां अक्सर लोग जुटते, मिलते. बतियाते. बच्चे खेलने भी पहुंच जाते. कई बार मीटिंग्स भी की जाती.
साल 1919 में बैसाखी 13 अप्रैल को थी. पंजाब समेत देश के अलग-अलग हिस्सों से लोग अमृतसर पहुंचे थे. अमृतसर में एक दिन पहले ही अंग्रेजी हुकुमत ने कर्फ्यू लगा दिया. ऐलान किया गया कि लोग इकट्ठा नहीं हो सकते. फिर आती है बैसाखी की सुबह. गोल्डन टेंपल में दर्शन के बाद धीरे-धीरे लोग जलियांवाला बाग में जुटने लगे. कुछ वक्त में हजारों की भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी.
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ब्रिगेडियर जनरल डायर को मालूम चला कि बाग में कोई मीटिंग होने वाली है. गुस्साया जनरल डायर जलियांवाला बाग की तरफ पुलिस के साथ बढ़ चला. जलियांवाला बाग के गेट का वो सकरा रास्ता पुलिस के सिपाहियों से भर चुका था. जनरल डायर ने बिना किसी वॉर्निंग के सिर्फ एक शब्द FIRE कहा और हजारों जिंदगियां खामोश हो गईं.
बताते हैं कि फायरिंग से बचने के लिए औरतों ने बाग में बने कुएं में कूदकर अपनी जान दे दी. दीवारों पर चढ़कर बाग से बचकर निकलने की कोशिश करते लोगों पर भी पुलिस ने फायरिंग की. गोलियों के निशां बाग की दीवारों पर आज तक मौजूद हैं. सरकारी दस्तावजों में मौत का आंकड़ा 380 बताया गया. लेकिन असल में हजारों लोग मारे गए थे.
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14 अक्टूबर 1997 को ब्रिटेन की महारानी क्वीन एलिज़ाबेथ-2 इंडिया आईं. जलियांवाला बाग भी गईं. श्रद्धांजलि दी. ब्रिटेन के प्राइम मिनिस्टर डेविड कैमरून भी 2013 में जब इंडिया आए तो जलियांवाला बाग गए. कैमरन ने जलियांवाला बाग कांड को शर्मनाक बताया. लेकिन जिनके अपने गए, उनका दर्द कोई नहीं समझ सकता. उस दर्द को केवल वे ही महसूस कर सकते हैं.
साभार: द लल्लनटॉप