आज हिंदी साहित्य के कवि केदारनाथ अग्रवाल की आज पुण्यतिथि है. उनका जन्म 1 अप्रैल 1911 बांदा जिले के कमासिन ग्राम में हुआ. केदारजी की शुरुआती जीवन गांव के माहौल में ही बीता और यहीं से शिक्षा की शुरुआत हुई. उनकी रायबरेली, कटनी, जबलपुर, इलाहाबाद से भी पढ़ाई हुई है. इलाहाबाद में बी.ए. की डिग्री हासिल करने के बाद कानूनी शिक्षा उन्होंने कानपुर में हासिल की. जिसके बाद बांदा पहुंचकर वहीं वकालत करने लगे थे. बता दें, उनका निधन 22 जून 2000 को हुआ था.
केदारनाथ अग्रवाल के प्रमुख कविता संग्रह हैं:-
युग की गंगा
फूल नहीं, रंग बोलते हैं
गुलमेंहदी
हे मेरी तुम!
बोलेबोल अबोल
जमुन जल तुम
कहें केदार खरी खरी
मार प्यार की थापें
रानी लक्ष्मीबाई: एक रानी, जो बनी देश की सबसे बड़ी मर्दानी
केदारनाथ अग्रवाल यात्रा संस्मरण 'बस्ती खिले गुलाबों की' उपन्यास 'पतिया', 'बैल बाजी मार ले गये' तथा निबंध संग्रह 'समय समय पर' (1970), 'विचार बोध' (1980), 'विवेक विवेचन' (1980) भी लिखे गये हैं. उनकी कई कृतियां अंग्रेज़ी, रूसी और जर्मन भाषा में अनुवाद हो चुकी हैं. केदार शोधपीठ की ओर हर साल एक साहित्यकार को लेखनी के लिए 'केदार सम्मान' से सम्मानित किया जाता है.
पढ़ें उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएं
पूरा हिन्दुस्तान मिलेगा
इसी जन्म में,
इस जीवन में,
हमको तुमको मान मिलेगा
गीतों की खेती करने को,
पूरा हिन्दुस्तान मिलेगा
जब रवींद्रनाथ टैगोर ने लौटा दी थी 'नाइट हुड' की उपाधि!
तुम भी कुछ हो
तुम भी कुछ हो
लेकिन जो हो,
वह कलियों में
रूप-गन्ध की लगी गांठ है
जिसे उजाला
धीरे धीरे खोल रहा है।
यह जो
नग दिये के नीचे चुप बैठा है,
इसने मुझको
काट लिया है,
इस काटे का मंत्र तुम्हारे चुंबन में है,
तुम चुंबन से
मुझे जिला दो।
छुट्टी का घंटा बजते ही
छुट्टी का घन्टा बजते ही स्कूलों से
निकल-निकल आते हैं जीते-जागते बच्चे
हँसते-गाते चल देते हैं पथ पर ऎसे
जैसे भास्वर भाव वही हों कविताओं के
बन्द क़िताबों से बाहर छन्दों से निकले
देश-काल में व्याप रही है जिनकी गरिमा ।
मैं निहारता हूं उनको फिर-फिर अपने को,
और भूल जाता हूं अपनी क्षीण आयु को
हे मेरी तुम
हे मेरी तुम !
बिना तुम्हारे--
जलता तो है
दीपक मेरा
लेकिन ऐसे
जैसे आंसू
की यमुना पर
छोटा-सा
खद्योत
टिमकता,
क्षण में जलता
क्षण में बुझता