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दुश्मन के कई टैंक बर्बाद कर शहीद हुए थे अरुण, पाक भी करता है सलाम

आज से 67 साल पहले पुणे में लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का जन्म हुआ था, जो 1971 की जंग में शहीद हो गए थे. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. खेत्रपाल की वीरता के किस्से सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सुनाए जाते हैं.

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शहीद अरुण खेत्रपाल
शहीद अरुण खेत्रपाल

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आज से 67 साल पहले पुणे में लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल का जन्म हुआ था, जो 1971 की जंग में शहीद हो गए थे. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया. खेत्रपाल की वीरता के किस्से सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में सुनाए जाते हैं. इसका सबूत है पाकिस्तान की आधिकारिक रक्षा वेबसाइट, जहां पूर्व ब्रिगेडियर ने अरुण क्षेत्रपाल की वीरता को सलाम करते हुए एक ब्लॉग लिखा है. इसमें उन्होंने जंग के दौरान अरुण की ओर से किए गए साहसिक प्रदर्शन का जिक्र किया गया है.

कई टैंक किए थे बर्बाद

4-16 दिसंबर 1971 के बीच जंग में भारत और पाकिस्तान दोनों मुल्कों के कई जवान वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस लड़ाई में अरुण ने बसंतर में मोर्चा संभाला था. इस दौरान उन्होंने दुश्मन के कई टैंक बर्बाद किए और इससे न सिर्फ पाकिस्तानी सेना का आगे बढ़ना रुक गया, बल्कि उनका मनोबल इतना गिर गया कि आगे बढ़ने से पहले दूसरी बटालियन की मदद मांगी. लड़ाई के दौरान वो बुरी तरह जख्मी थे, लेकिन इसके बावजूद टैंक छोड़ने को राजी नहीं हुए और दुश्मन के कई टैंक बर्बाद किए. दुश्मन का जो आखिरी टैंक उन्होंने बर्बाद किया, वो उनकी पोजिशन से 100 मीटर की दूरी पर था.

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दुश्मन की नाक में दम कर दिया

1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान बसंतर की लड़ाई में शहीद हुए थे, लेकिन जाने से पहले दुश्मन की नाक में दम कर गए. दुश्मन के कई टैंक को खत्म करने के बाद टैंक में लगी आग में घिरकर अरुण शहीद हो गए. उनका शव और उनका टैंक फमगुस्ता पाक ने कब्जे में ले लिया था, जिसे भारतीय फौज को लौटा दिया गया. उनका अंतिम संस्कार सांबा जिले में हुए और अस्थियां परिवार को भेजी गईं, जिन्हें उनके निधन के बारे में काफी बाद में पता चला था.

दुश्मन को आसानी से नहीं छोड़ने वाला

उनके टैंक पर आग लग जाने की वजह से सेना ने उन्हें टैंक छोड़ने का आदेश दिया, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया. रेडियो पर अरुण के आखिरी शब्द थे. 'सर, मेरी गन अभी फायर कर रही है. जब तक ये काम करती रहेगी, मैं फायर करता रहूंगा.'

1967 में फौज में शामिल हुए

1967 में अरुण एनडीए में शामिल हुए थे. उसके बाद 1971 में '17पूना हॉर्स' में शामिल हुए. उसके बाद उन्हें 1971 की जंग में शामिल किया गया, जहां उन्होंने अपनी बहादुरी का परिचय दिया और आखिरी वक्त तक दुश्मन से लड़ते रहे.

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