आज भारत के प्रसिद्ध राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, विद्वान् और न्यायविद् महादेव गोविंद रानाडे की पुण्यतिथि है. रानाडे को 'महाराष्ट्र का सुकरात' कहा जाता है. रानाडे ने अपने जीवन में समाज सुधार के लिए कई कार्य किए हैं. गोविंद रानाडे 'दक्कन एजुकेशनल सोसायटी' के संस्थापकों में से एक थे. उन्होंने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना का भी समर्थन किया था और रानाडे स्वदेशी के समर्थक थे.
महादेव गोविंद रानाडे को अपने सामाजिक कार्यों को पूरा करने में कई कठिनाईयों का सामना करना पड़ा. वहीं ब्रिटिश सरकार उनके हर काम पर नजर रखती थी और परंपराओं को तोड़ने की वजह से वो जनता के भी कोप भाजन बने थे. सरकारी नौकरी में रहते हुए भी उन्होंने जनता से बराबर संपर्क बनाए रखा. दादाभाई नौरोजी के पथ प्रदर्शन में वे शिक्षित लोगों को देशहित के कार्यों की ओर प्रेरित करते रहे.
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उन्होंने स्त्री शिक्षा का प्रचार किया और वे बाल विवाह के कट्टर विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे. महादेव गोविंद रानाडे ने 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थापना का समर्थन किया था और 1885 ई. के उसके प्रथम मुंबई अधिवेशन में भाग भी लिया. राजनीतिक सम्मेलनों के साथ सामाजिक सम्मेलनों के आयोजन का श्रेय उन्हीं को है.
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वे मानते थे कि मनुष्य की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक और धार्मिक प्रगति एक दूसरे पर आश्रित है. वे स्वदेशी के समर्थक थे और देश में निर्मित वस्तुओं के उपयोग पर बल देते थे. रानाडे ने विधवा पुनर्विवाह, मालगुजारी कानून, राजा राममोहन राय की जीवनी, मराठों का उत्कर्ष, धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आदि रचनाएं लिखी. देश सेवा में पूरा जीवन देने वाले रानाडे का निधन 16 जनवरी, 1901 को हो गया.