मशहूर सितारवादक पंडित रविशंकर की आज 98वीं जयंती है. भारतीय शास्त्रीय संगीत को दुनिया के हर कोने में पहुंचाने और उसे एक अलग पहचान दिलाने का श्रेय उन्हें ही जाता है. उनके चाहने वालों में संगीत, नृत्य और कला प्रेमी शामिल हैं, जिनकी संख्या सैकड़ों में हैं. आइए जानतें हैं उनके बारे में ये खास बातें...
पंडित रविशंकर का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 7, अप्रैल 1920 को हुआ था. वीटल्स के जॉर्ज हैरीसन ने उन्हें 'विश्व संगीत का गॉडफादर' बताया था. पंडित शंकर की युवावस्था भाई उदय शंकर के नृत्य समूह के साथ यूरोप और भारत का दौरा करते हुए बीती. उन्होंने साल 1938 में संगीतज्ञ अलाउद्दीन खान से सितार बजाना सीखने के लिए नृत्य छोड़ दिया था.
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फिल्मों में दिया संगीत
साल 1944 में पढ़ाई पूरी करने के बाद पंडित रविशंकर ने संगीतकार के रूप में सत्यजीत रे के 'अपू ट्रिलॉजी' और रिचर्ड एटनबर्ग के 'गांधी' के लिए संगीत दिया. सर्वश्रेष्ठ मौलिक स्वरलिपि के लिए वर्ष 1983 में उन्हें जॉर्ज फेंटन के साथ ऑस्कर से नवाजा गया. उन्होंने साल 1949 से 1956 के बीच नई दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो के संगीत निदेशक के रूप में भी काम किया. इसके बाद 1960 के दशक में वायलिन वादक येहुदी मेनुहिन और जॉर्ज हैरीसन के साथ भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा और प्रस्तुति देकर इसे पश्चिम में लोकप्रिय बनाया.
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सांसद भी रहे
साल 1986 से 1992 तक वह राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे. उन्हें वर्ष 1999 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. उन्हें तीन ग्रैमी अवार्ड मिल चुके हैं. उन्हें वर्ष 2013 के जर्मनी अवार्ड के लिए भी नामित किया गया था. पंडित रविशंकर साल 2000 तक लगातार प्रस्तुति देते रहे. उन्होंने कई बार अपनी बेटी अनुष्का शंकर के साथ भी प्रस्तुति दी.
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इन पुरस्कार से हुए सम्मानित
संगीत के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें साल 1999 में भारत सरकार ने 'भारत रत्न' और 1981 में 'पद्मविभूषण' से सम्मानित किया. वे तीन बार 'ग्रैमी पुरस्कार' भी सम्मानित हो चुके हैं. आज भले ही पंडित रविशंकर हमारे बीच नहीं है लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि वह राष्ट्र के लिए धरोहर थे.