आज 19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक ज्योतिराव गोविंदराव फुले की जयंती है. उनका जन्म आज ही के दिन 11 अप्रैल 1827 को हुआ था. उन्हें महात्मा फुले और ज्योतिबा फुले के नाम से जाना जाता है. जाने-माने सुधारक और दलित एवं महिला उत्थान के लिए जीवन न्योछावर करने वाले ज्योतिबा फुले भी एक ऐसी ही किंवदंती का नाम है.
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ट्विटर के जरिए ज्योतिबा फुले को याद किया है. मोदी ने ट्वीट कर कहा है कि सामाजिक सुधार को लेकर किए गए उनके कार्यों से काफी मदद मिली. महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने और युवाओं के बीच शिक्षा को आगे बढ़ाने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अटूट थी. आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कई अहम बातें...
Tributes to Mahatma Phule on his Jayanti. His pioneering and relentless emphasis on social reform greatly helped the marginalised. He was unwavering in his commitment towards improving the condition of women and furthering education among the youth.
— Narendra Modi (@narendramodi) April 11, 2018
- उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था. इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे.
- ज्योतिबा ने कुछ समय तक मराठी में अध्ययन किया, बीच में पढ़ाई छूट गई और बाद में 21 वर्ष की उम्र में अंग्रेजी की सातवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की.
- मराठी समाजसेवी ज्योतिबा फुले ने निचली जातियों के लिए 'दलित' शब्द को गढ़ने का काम किया था.- साल 1873 के सितंबर माह में उन्होंने 'सत्य शोधक समाज' नामक संगठन का गठन किया था.Homage to Mahatma Jyotiba Phule on his birth anniversary. An iconic nation builder, his efforts towards social reform, women's education, and freedom from caste prejudice remain an inspiration for us #PresidentKovind
— President of India (@rashtrapatibhvn) April 11, 2018
- वे बाल-विवाह के मुखर विरोधी और विधवा-विवाह के पुरजोर समर्थक थे.
विधवा विवाह के समर्थक ज्योतिबा फुले ने 21 साल में पास की थी 7वीं कक्षा
- ज्योतिबा फुले ने ब्राह्मणवाद को धता बताते हुए बिना किसी ब्राम्हण-पुरोहित के विवाह-संस्कार शुरू कराया और बाद में इसे मुंबई हाईकोर्ट से मान्यता भी दिलाई.
- उनकी पत्नी सावित्री बाई फुले भी एक समाजसेविका थीं. उन्हें भारत की पहली महिला अध्यापिका और नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता कहा जाता है.
- अपनी पत्नी के साथ मिल कर उन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए साल 1848 में एक स्कूल भी खोला था. यह भारत में अपने तरह का अलहदा और पहला मामला था.