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उस दिन की पूरी कहानी, जब हुई थी दीनदयाल उपाध्याय की मौत

आज पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती है. उनके जन्मदिन पर जानें- उस दिन का पूरा घटनाक्रम, जिस दिन दीनदयाल उपाध्याय का शरीर मुगलसराय स्टेशन के पास मिला था...

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दीनदयाल उपाध्याय
दीनदयाल उपाध्याय

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संसद का साल 1968 का बजट सत्र शुरू होने वाला था. 12 फरवरी 1968 को भारतीय जनसंघ संसदीय दल की बैठक नई दिल्ली में आयोजित हुई थी. लेकिन इसी दौरान पटना में बिहार प्रदेश भारतीय जनसंघ की कार्यकारिणी की बैठक भी होने वाली थी. बिहार प्रदेश के जनसंघ के तत्कालीन संगठन मंत्री अश्विनी कुमार की इच्छा थी कि इस बैठक में जनसंघ अध्यक्ष पंडित दीनदयाल भी शामिल हों. इसलिए 10 फरवरी को सुबह 8 बजे उन्होंने दीनदयाल से फोन पर बैठक में आने का आग्रह किया.

लखनऊ में ही थे दीनदयाल उपाध्याय

अमरजीत सिंह की किताब 'एकांत मानववाद के प्रणेता पंडित दीन दयाल उपाध्याय' के अनुसार, उन दिनों दीनदयाल उपाध्याय लखनऊ में अपनी मुंहबोली बहन लता खन्ना के घर पर ठहरे हुए थे. उन्होंने अश्विनी कुमार की बात यह कहते हुए स्वीकार कर ली कि अगर दिल्ली संसदीय महामंत्री सुंदर सिंह भंडारी ने बैठक में सम्मिलित होने के लिए उनसे आग्रह नहीं किया तो वे पटना अवश्य आएंगे और उन्होंने स्वीकृति दे दी.

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तीन स्वेटर और कुर्ता पहना

उसके बाद उन्होंने पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस में प्रथम श्रेणी की टिकट करवा ली और गाड़ी का समय शाम 7 बजे था और पंडित जी सही वक्त पर स्टेशन पर पहुंच गए. उस दौरान उनके पास एक सूटकेस, बिस्तर, टिफिन और पुस्तकों का थैला था. उन्होंने बिना आस्तीन वाली बनियान, उसके ऊपर तीन स्वेटर पहन रखे थे. इन सबसे ऊपर उन्होंने कुर्ता और जैकेट पहन रखा था. उस दौरान उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उप मुख्यमंत्री श्री रामप्रकाश गु्प्त और उत्तर प्रदेश के एमएलसी पीतांबर दास भी थे.

जौनपुर में मिला था एक पत्र

इस ट्रेन में ही इस रेल में ही भारतीय भौगोलिक सर्वेक्षण के असिस्टेंट डायरेक्टर एमपी सिंह, कांग्रेस एमएलसी सदस्य गौरीशंकर राय भी थे. वहीं दीनदयाल उपाध्याय की सीट फर्स्ट कैटेगरी में सी कंपाट्रमेंट में सीट थी. उसके बाद उनका सफर शुरू हुआ. लखनऊ से चलकर बारांबकी, फैजाबाद, अकबरपुर शाहगंड होते हुए ट्रेन आधी रात जौनपुर पहुंची. जौनपुर के महाराज दीनदयाल के दोस्त थे, तो उन्होंने अपने सेवक कन्हैया के हाथों एक पत्र दीनदयाल उपाध्याय को भिजवाया और रात को 12 बजे उन्हें यह पत्र मिला.

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उसके बाद रात 2.15 बजे गाड़ी मुगलसराय स्टेशन पर पहुंची और पठानकोट-सियालदह एक्सप्रेस पटना नहीं जाती थी, इसलिए बोगी काटकर दिल्ली-हावड़ा ट्रेन से जोड़ दी गई. इसमें करीब आधे घंटे का वक्त लगा और 2 बजकर 50 मिनट पर ट्रेन फिर से पटना के लिए चल पड़ी और उसके बाद 3 बजे उनका शव ट्रेन की पटरियों पर मिला.

पटना में होता रहा इंतजार

वहीं दूसरी ओर ट्रेन 6 बजे ट्रेन पटना स्टेशन पर पहुंची, जहां बिहार जनसंघ के नेता उनका इंतजार कर रहे थे. उन्होंने लखनऊ वाली बोगी भी देखी, लेकिन दीनदयाल उपाध्याय नहीं मिले और साढ़े 9 बजे गाड़ी मुकामा स्टेशन पर पहुंची. वहीं किसी की नजर बी कंपार्टमेंट में सीट के नीटे रखे हुए सूटकेस पर पड़ी. उसने रेलवे अधिकारियों को यह सूट जमा करवाया और यह सूटकेस पं दीनदयाल का था.

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