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जानें- उस दिन की पूरी कहानी, जब महात्मा गांधी को मारी गई थी गोली

महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने हत्या कर दी थी. जानें- गांधी ने जीवन का आखिरी दिन कैसे व्यतीत किया था...

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महात्मा गांधी
महात्मा गांधी

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आज से 71 साल पहले महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई थी. 30 जनवरी 1948 के दिन की शुरुआत गांधी के लिए आम दिन की तरह थी, लेकिन उन्हें नहीं पता था कि यह उनकी जिंदगी का आखिरी दिन भी हो सकता है. 30 जनवरी, 1948 को शुक्रवार का दिन था. दिल्ली के बिड़ला हाउस में महात्मागांधी के दिन की शुरुआत हर दिन की तरह सुबह 3.30 बजे उठने से हुई. उसके बाद उन्होंने दैनिक क्रिया करने के बाद सुबह प्रार्थना की, जो वो हर रोज करते थे.

हालांकि, इस दिन उनकी पोती आभा नहीं जागी और वो सो ही रही थी. उसके बाद मनुबेन रसोई में गई और उनके नाश्ते का इंतजाम किया, जिसमें गर्म पानी-शहद-नींबू था. कहा जाता है कि आभा के ना उठने की नाराजगी उन्होंने मनुबेन से साझा की थी. वो चाहते थे कि दो दिन बाद 2 फरवरीको होने वाले सेवाग्राम दौरे की व्यवस्था की जाए. यह दिन अन्य दिन से थोड़ा अलग था और उस दिन गांधी ने रोज की तरह अन्य कागजी कार्रवाई में भी ज्यादा रूचि नहीं ली. 

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उस दौरान दिल्ली में बंटवारे की वजह से हालात सामन्य नहीं थे और इससे गांधी थोड़ा परेशान थे. हर रोज गांधी से कई लोग मिलने आते थे और 30 जनवरी को भी ऐसा ही हुआ. इस दिन उनसे मुलाकात करने वालों में मशहूर हस्ती थीं आरके नेहरू. उस दौरान उन्होंने कई लोगों से मुलाकातकी और बंटवारे को लेकर कहा, 'अगर लोगों ने मेरी सुनी होती तो ये सब नहीं होता. मेरा कहा लोग मानते नहीं.' इन दिनों उनके घर पर सिक्योरिटी भी थी, क्योंकि इससे पहले 20 जनवरी की प्रार्थना सभा में एक बम धमाका हुआ था. लेकिन यह गांधीजी को नहीं लगा. इससे एक दीवार टूट गईथी. 

30 जनवरी को ही गांधी जी ने करीब चार बजे सरदार पटेल से भी मुलाकात की. दरअसल, सरदार पटेल की मुलाकात के बाद उन्हें पांच बजे प्रार्थना सभा में शामिल होना था, लेकिन गांधीजी और पटेल के बीच बातचीत पांच बजे के बाद भी जारी रही. पांच बजकर 10 मिनट पर बातचीत खत्महोने के बाद वे प्रार्थना सभा में चले गए, जो 15 मिनट देरी से शुरू हुई थी. 

हालांकि, जब गांधी जी प्रार्थना सभा पर उनके आसन तक जा रहे थे तो दोनों तरफ लोग उनका अभिवादन कर रहे थे.  उसी वक्त जेब में रिवॉल्वर रखे नाथूराम गोडसे ने पहले गांधी से नमस्कार किया और फिर उनपर गोलियां चला दी. जिसके बाद उनकी मौत हो गई. 

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नहीं कहा था हे राम

ऐसा कहा जाता है कि गांधी जी की हत्या के वक्त उन्होंने 'हे राम' कहा था. दरअसल, वो राम का नाम लेते हुए मरना चाहते थे, लेकिन उस वक्त कुछ भी बोलने की संभावना नहीं थी. 

(यह रिपोर्ट महात्मा गांधी के निजी सचिव वी कल्याणम के शब्दों पर आधारित है और mkgandhi.org से ली गई है.)

 

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