भारत के महान संत, विचारक और स्वामी विवेकानन्द के गुरु रामकृष्ण परमहंस उर्फ गदाधर चटर्जी की जयंती है. उनका जन्म 18 फरवरी 1836 को हुआ था. बतादें, हिन्दू धर्म में परमहंस की उपाधि उन्हें दी जाती है, जो समाधि की अंतिम अवस्था में होता है. उनमें कई तरह की सिद्धियां थीं लेकिन वे सिद्धियों के पार चले गए थे. उन्होंने स्वामी विवेकानंद को अपना शिष्य बनाया.
जानें उनके बारे में...
- रामकृष्ण परमहंस ने अपना ज्यादातर जीवन एक परम भक्त की तरह बिताया. वह काली के भक्त थे. उनके लिए काली कोई देवी नहीं थीं, वह एक जीवित हकीकत थी.
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- 12 साल की उम्र तक वो स्कूल गए लेकिन शिक्षा व्यवस्था की कमियों के चलते उन्होंने जाना बंद कर दिया.
- उन्हें पुराण, रामायण, महाभारत और भगवत पुराण का अच्छा ज्ञान था.
- उनका कहना था कि सभी इंसानों के भीतर भगवान है लेकिन हर इंसान भगवान नहीं है, इसलिए उन्हें समस्याओं का सामना करना पड़ता है.
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- रामकृष्ण की चेतना इतनी ठोस थी कि वह जिस रूप की इच्छा करते थे, वह उनके लिए एक हकीकत बन जाती थी.
- 16 अगस्त रामकृष्ण परमहंस की महासमाधि के दिन के रूप में मनाया जाता है.
- बताया जाता है कि एक बार विवेकानंद ने हिमालय पर जाकर एकांत में तपस्या करने की सोची. वो इसकी आज्ञा लेने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के पास पहुंचे थे.
- बता दें, रामकृष्ण बहुत छोटे ही थे जब उनके पिता का निधन हो गया था.
- रामकृष्ण के मन में ईश्वर को देखने का यह विचार पहले तो एक जिद की शक्ल में आया, लेकिन वह बाद में एक भक्तिपूर्ण खोज में बदल गया.
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- वे ईश्वर को खोजने लगे और उसके लिए तड़पने लगे. उसकी खोज में मंदिर को छोड़कर पास के एक जंगल में जाकर रहने लगे. ईश्वर-दर्शन की बेचैनी और अधीरता बढ़ने लगी थी और उनका व्यवहार असामान्य होने लगा था.
- उन्हें लगने लगा था कि यदि धर्म और ईश्वर जैसी कोई चीज है, तो उसे मनुष्य की अनुभूति पर भी खरा उतरना चाहिए. उन्हें लगा कि ईश्वर यदि है तो उसे वे अपनी आंखों से देखकर रहेंगे.