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मैकियावेली: यूरोप का वो 'चाणक्य', जिसने कहा- शासकों का 'कुटिल' होना अच्छा है!

मैकियावेली मानता है कि राजा को प्रजा का बैरी नहीं बनना चाहिए, लेकिन वो यह भी कहता है कि प्रजा का मित्रभाव मिलने से राज्य में खुशहाली फैले ऐसा जरूरी नहीं है. वह कहता है कि उसकी दयाशीलता का इस्तेमाल उसके और उसके राज्य के खिलाफ किया जा सकता है. राजा का मित्रभाव केवल एक राजनैतिक हथियार है जिसका प्रयोगकर राजा अपने राज्य में स्थिरता लाता है, अपना शासनकाल बढाता है.

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इटली का राजनीतिक विचारक निकोलो मैकियावेली (फाइल फोटो)
इटली का राजनीतिक विचारक निकोलो मैकियावेली (फाइल फोटो)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • 'जरूरत पड़ने पर जनता के साथ शासक को कुटिल होना चाहिए'
  • 'धर्माचारी हो या न हो, ऐसा दिखने की कोशिश जरूर करे राजा'
  • स्टेटक्राफ्ट को बेईमानी-बुराई का मेल मानते हैं मैकियावेली

जीवन के अनुभवों ने उसे सिखाया कि एक आम मनुष्य होता ही लालची, स्वार्थी, धूर्त और कृतघ्न है. वो राजा के 'उपकार' को भूला देता है. इसलिए वह राजा को सलाह देता है कि प्रजा को पुचकार कर नहीं, बल्कि दमन के दम पर नियंत्रित कर रखना चाहिए. 

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भारतीय चिंतन जहां शासक को दयावान, प्रजावत्सल, परोपकारी, समदर्शी बताती है, वहीं यूरोप का ये राजनीतिक चिंतक नृप को आवश्यकता अनुरूप कुटिल, क्रूर और अनाचारी होने को भी कहता है. 

राजनीति को बेईमानी और बुराई का मेल मानने वाला मैकियावेली

15वीं शताब्दी का ये यूरोपियन चिंतक मानता है कि यदि बड़े लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अनैतिक साधन भी अपनाए जाते हैं तो जनता भविष्य में इसके अच्छे परिणाम देखकर राजा को इन अनैतिक साधनों के प्रयोग के लिए क्षमा कर देगी. दरअसल मैकियावेली शासन करने (Statecraft) को अनैतिकता, बेईमानी, धोखा और बुराई का मेल मानते हैं. क्या हम ये कह सकते हैं कि हम भारत में इन विशेषणों को सेटिंग, गेटिंग, लाइजनिंग और जुगाड़ कहने लगे हैं?

इटली के इस राजनीतिक चिंतक का मत है कि सम्राट को दयालु होते हुए भी ये गौर करना चाहिए कि उसकी दयाशीलता का कोई अनुचित लाभ न उठाए. इसका मानना है कि राजा का प्रथम कर्तव्य राष्ट्र की रक्षा और उसका दीर्घकालिक हित सोचना है. वह कहता है कि राजकाज के दौरान यदि शासक को जुल्म भी करना पड़े तो उसे एक ही बार में ऐसा कर डालना चाहिए. इनके चिंतन में राज्य की सुरक्षा और संवर्धन सर्वोपरि है और इसे हासिल करने में इस्तेमाल की गई नैतिकता गौण और उपेक्षणीय है. 

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550 साल पहले ऐसी 'दूषित' राजनीतिक विचारधारा का प्रतिपादन करने वाला ये शख्स कौन था? उसने क्या देखा कि ऐसा लिखा? कौन था इटली के फ्लोरेंस शहर में बतौर सचिव अपनी जिंदगी की शुरुआत करने वाला निकोलो मैकियावेली. जिसकी पुस्तक 'द प्रिंस' के सिद्धांत लोकतंत्र में विश्वास करने वाले लोगों को अक्सर डराते हैं और गाहे-बगाहे निरंकुशता की आहट देते हैं.  

जब पैदा हुए गुरु नानक, उसी साल जन्मा मैकियावेली

निकोलो मैकियावेली का जन्म इटली के फ्लोरेंस शहर में तब हुआ था जब भारत में मुगल शासन की स्थापना नहीं हुई थी. ये साल था 1469. इसी साल अविभाजित भारत के ननकाना साहिब में गुरु नानक जी का भी जन्म हुआ था. 

मैकियावेली के पिता वकील थे. बालक मैकियावेली ने ग्रामर, ग्रीक जैसे विषयों का अध्ययन किया. उसने अपनी पहली नौकरी सचिव के रूप में की. इसके बाद वे फ्लोरेंस के सचिव और चांसलर भी रहे. राजसत्ता को लेकर मैकियावेली ने जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया वो परिस्थिति विशेष में पैदा हुए. 

यूरोप की उठापटक, चर्च का प्रभाव

इसलिए तत्कालीन यूरोप की पृष्ठभूमि जानना जरूरी है. मैकियावेली का यूरोप अस्थिरता और हलचल का साक्षी था. इटली कई छोटे-छोटे City states में बंटा हुआ था.  मैकियावेली का शहर फ्लोरेंस एक कमजोर गणतंत्र था. यहां शक्ति के अनुपात में लोग सरकारें बदलते रहते थे.  पोप की प्रभुसत्ता सर्वमान्य थी. लेकिन कई छत्रप पोप और चर्च को चुनौती देते रहते थे. फ्रांस, स्पेन, रोम के बीच वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी. 

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1494 में फ्लोरेंस ने शासन की गणतंत्र पद्धति को अपनाया और शक्तिशाली मेडिची परिवार को बेदखल कर दिया. इससे पहले मेडिची परिवार ने फ्लोरेंस पर 60 सालों तक शासन किया था. 

मैकियावेली ने क्या देखा कि ऐसा लिखा 

इस सरकार ने मेडिची को बड़ी जिम्मेदारी दी. इसी दौरान वे सरकार के सचिव बने. लेकिन मैकियावेली का सौभाग्योदय लंबे समय तक नहीं रहा. 1512 में चर्च के सहयोग से मेडिची परिवार ने फ्लोरेंस गणतंत्र के खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया. फ्लोरेंस की पराजय हुई, राजा को निर्वासित कर दिया गया, फ्लोरेंस सिटी स्टेट को भंग कर दिया गया और मैकियावेली के दुर्दिन शुरू हो गए. इन घटनाओं का उनकी किताबों में गहरा असर देखने को मिलता है. 

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1513 में मेडिची परिवार ने मैकियावेली के खिलाफ साजिश का आरोप लगाया और उसे जेल में डाल दिया गया. जेल में उन्हें यातना दी गई, लेकिन वे अपनी बेगुनाही पर अड़े रहे. आखिरकार तीन सप्ताह के बाद उन्हें रिहा कर दिया गया. लेकिन तत्कालीन सत्ता प्रतिष्ठान ने उन्हें शहरी गतिविधियों और राजनीतिक चर्चाओं से दूर रहने के लिए मजबूर कर दिया. मैकियावेली ग्रामीण जीवन जीने लगे. इन्हीं दिनों उन्होंने दुनिया की सुप्रसिद्ध किताब 'द प्रिंस' लिखी. इस कृति ने उन्हें समय और सीमाओं से परे यश दिया.  
 
'द प्रिंस' की रचना

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मैकियावेली की रचना 'द प्रिंस' इतालवी भाषा में लिखी गई शासन पद्धति पर सरल और खरा निबंध है. ये किताब 1527 में मैकियावेली के निधन के 5 साल बाद 1532 में प्रकाशित हुई. यूं तो यह एक छोटी किताब है, लेकिन इसके कथ्य इतने सहज और व्यावहारिक हैं कि इन्होंने समय और सीमा को पार कर लिया है.

मैकियावेली पर आरोप लगता है कि उन्होंने निरंकुशता के पोषकों को खुराक दे दी है. आलोचक कहते हैं पिछली शताब्दियों में दुनिया के बड़े बड़े शासकों ने इस किताब से प्रेरणा ली और अपने अपने देशों में शिखर पर पहुंचे. ऐसा करते हुए ये आलोचक ब्रिटिश पीएम विस्टन चर्चिल, अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट, फ्रांस के शासक नेपोलियन की ओर इशारा करते हैं. 

मैकियावेली के आलोचक तो यह भी कहते हैं कि जर्मनी के हिटलर और इटली के मुसोलिनी के निरकुंश तंत्र का प्रेरणास्रोत ही ये किताब है. हालांकि इसे साबित करने के लिए कोई प्रमाण नहीं है. 

जरूरत पड़ने पर राजा को भी बुरा होना पड़ेगा

ये पुस्तक राजा के गुणों-अवगुणों का दस्तावेज है. शासक के गुणों की चर्चा करते हुए मैकियावेली राजा को उसके व्यक्तित्व को लेकर चेताता है. मैकियावेली कहता है कि उसके आस-पास के लोग ऐसा न समझने लगें कि इसकी अवहेलना की जा सकती है, अनादार किया जा सकता है. वह कहता है कि शासक सार्वजनिक जीवन जीता है, उसकी मर्यादाएं और बाध्यताएं होती हैं. उसके अंदर अच्छे गुण हों ये अच्छी बात है, लेकिन जिंदगी का तजुर्बा ऐसा नहीं सिखाता है.

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उसका सामना कपटी, लालची और स्वार्थी लोगों से होता है, ऐसे लोगों से निपटने के लिए अगर एक शासक को लंबे समय तक के लिए राज करना है, तो उसे बुरा होना पड़ेगा. जरूरी नहीं हमेशा के लिए, लेकिन कम से कम परिस्थिति के मुताबिक तो उसे आचरण करना ही पड़ेगा. वह कहता है कि अगर राजा सामान्य मानवीय भावनाओं के आवेग में आ जाता है और साधारण मनुष्य सा व्यवहार करता है तो उसकी सत्ता छीनी जा सकती है. इसलिए राजा को ताकत के जोर पर सत्ता पर नियंत्रण रखना चाहिए. 

दानवान, दरियादिल होना कोई बहुत अच्छी बात नहीं

'द प्रिंस' के 16वें अध्याय में मैकियावेली कहता है कि अगर एक राजा अपनी प्रजा के प्रति बहुत दानवान और दरियादिल है तो ये कोई बहुत अच्छी बात नहीं है, क्योंकि इससे जनता का लालच और भी बढ़ेगा. वह कहता है कि जनता के बीच भला दिखने के लिए वह कई अच्छी योजनाएं लाता है, और राजकोष का पैसा धीरे-धीरे खर्च कर देता है. लेकिन जरूरत से ज्यादा दानी होना राज्य के आर्थिक सेहत के लिए भी अच्छा नहीं है, क्योंकि आखिरकार राज्य का खजाना ही खाली हो जाएगा. फिर राजा को ज्यादा कर लगाना पड़ेगा, इससे लोग फिर उसे नापसंद करने लगेंगे. 

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यही नहीं अगर वह खजाने पर भार बनने वाली लोकप्रिय योजनाओं को बंद कर देता है तो भी उसकी आलोचना होगी, जनता शासक को कंजूस और क्रूर कहने लगेगी. वह कहता है कि एक बुद्धिमान राजकुमार के लिए यह अच्छा है कि जनता में उसकी चर्चा कृपण नृप के रूप में हो बजाए इसके कि उसकी दरियादिली कालांतर में जनता के बीच उसके लिए नफरत की वजह बन जाए. 

अच्छा है कि जनता के मन में राजा का खौफ हो

अगले अध्याय में मैकियावेली राजा की विशेषता क्रूरता बनाम दयालुता (Cruelty v/s Mercy) की चर्चा करता है. वह सवाल उठाता है कि राजा के प्रति जनता के दिल में प्यार होना चाहिए या डर. 

मैकियावेली मानता है कि राजा को प्रजा का बैरी नहीं बनना चाहिए, लेकिन वो यह भी कहता है कि प्रजा का मित्रभाव मिलने से राज्य में खुशहाली फैले ऐसा जरूरी नहीं है. वह कहता है कि उसकी दयाशीलता का इस्तेमाल उसके और उसके राज्य के खिलाफ किया जा सकता है. राजा का मित्रभाव केवल एक राजनैतिक हथियार है जिसका प्रयोगकर राजा अपने राज्य में स्थिरता लाता है, अपना शासनकाल बढाता है.

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राजा को जनता प्यार करे या उससे खौफ खाए. इसके जवाब में मैकियावेली लिखता है, "इसका उत्तर यह है कि एक व्यक्ति सैद्धांतिक रुप से चाहेगा कि लोग उससे प्यार भी करें और डरें भी, लेकिन चूंकि इन दोनों को एक साथ करना मुश्किल है,  इसके लिए मानव मात्र का स्वभाव जिम्मेदार है, इसलिए यदि आप दोनों हासिल नहीं कर सकते हैं तो ये अच्छा है कि लोग आपसे प्यार करने के बजाए डरें." 

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छवि की ज्यादा चिंता न करे राजा

वह कहता है कि राज्य की सुरक्षा के सवाल पर राजा को अपनी छवि की ज्यादा चिंता नहीं करना चाहिए. छवि के चक्कर में कुछ राजा दयालु बनते हैं लेकिन इसी वजह से उनके राज्य में अशांति फैलती है और उनकी सत्ता बिखरने लगती है. यहीं पर मैकियावेली राजा को आगाह भी करता है और कहता है कि उसे यह भी देखना चाहिए कि उससे लोग इतना न डरने लगें कि फिर उससे नफरत ही करने लगें.  

सिर्फ धर्माचरण के लिए धर्माचारी होना जरूरी नहीं

मैकियावेली कहता है कि राजा को धर्माचारी दिखते रहने की कोशिश करनी चाहिए मगर सिर्फ धर्म के लिए धर्म का पालन करना राजा के लिए हानिकारक हो सकता है. राजा धर्म का पालन करे या न करे उसे ऐसा करते हुए दिखाई जरूर पड़ना चाहिए, क्योंकि प्रजा धर्म का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को पसंद करती है, इसलिए प्रजा का विश्वास जीतने के लिए धर्म का आचरण करते हुए दिखाई पड़ना जरूरी है. 

मैकियावली की सच्चरित्रता सामान्य धार्मिक गुणों से परिभाषित नहीं होती है. उसका धर्माचारी राजा ज्ञान (Wisdom) रणनीति (Strategy) शक्ति (Strength) बहादुरी (Bravery) और जरूरत पड़ने पर निष्ठुरता (Ruthlessness) से काम करता है. मैकियावेली राजा की योग्यता की चर्चा करते हुए हुए Criminal virtue शब्द की चर्चा करते हैं. ये Criminal virtue कुछ और नहीं बल्कि राज्य की सुरक्षा के लिए नपा-तुला और संतुलित आपराधिक कृत्य है. इस कदम के इस्तेमाल के लिए वे राजा के सामने कड़ी शर्तें रखते हैं. 

तो क्या यूरोप के चाणक्य था मैकियावेली

मैकियावेली के नीतियों की व्यावहारिकता को देखते हुए कई प्रोफेसर, आलोचक मैकियावेली को यूरोप का चाणक्य भी कहते हैं. हालांकि ये बहस का एक अलग मुद्दा है. लेकिन यूरोप में मैकियावेली का राजनीतिक सिद्धांत काफी लोकप्रिय हुआ.  उनका सिद्धांत राजनीति शास्त्र में Machiavellianism से प्रसिद्ध हुआ. अगर एक वाक्य में इस शब्द की परिभाषा कहें तो वैसा व्यक्ति जो नैतिकता के बजाय उपयोगिता या औचित्य को प्राथमिकता देता है वो इस विशेषण का अधिकारी है.

दरअसल मैकियावेली जिंदगी के निगेटिव शेड्स के विस्तार की संभावनाओं का अध्ययन करते हैं. हालांकि उनके विचार राजतंत्र की व्यवस्था के लिए थे. लोकतंत्र में ऐसे विचारों की कल्पना ही विनाशकारी लगती है.  

 

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