भारत की ओर से पाकिस्तान सीमा में आतंक के खिलाफ की गई कार्रवाई के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तानी असेंबली के जॉइंट सेशन को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने भारत-पाकिस्तान के संबंधों के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि टीपू सुल्तान और बहादुर शाह जफर का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि बहादुर शाह जफर ने गुलामी या आजादी में से किसी एक चुनना था तो उन्होंने गुलामी को चुना था, जबकि टीपू सुल्तान ने आजादी को चुना था. साथ ही इमरान खान ने कहा कि टीपू सुल्तान पाकिस्तान का हीरो है. जानते हैं कौन हैं टीपू सुल्तान, जिनकी तारीफ कर रहे हैं इमरान खान...
टीपू सुल्तान एक योग्य शासक होने के साथ ही एक विद्वान और कुशल योग्य सेनापति भी थे. हालांकि उनकी कई नीतियों को लेकर उनका विरोध भी किया जाता रहा है. कर्नाटक में हर साल उनकी जयंती मनाने का भी कई संगठनों द्वारा विरोध किया जाता है. टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवम्बर, 1750 को हुआ और उन्होंने कम उम्र में ही रण में उतरने का फैसला कर लिया था.
उनके पिता भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ते हुए अपनी ताकत को लगातार बढ़ा रहे थे. वहीं दूसरे शासक अंग्रेजों के सामने अपनी तलवार गिरा रहे थे. अंग्रेज मैसूर पर भी कब्जा करना चाहते थे, लेकिन टीपू और उनके पिता ने अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ बगावत शुरू कर दी थी. उन्होंने 15 साल की उम्र में ही अपने पिता के साथ 1766 के आसपास मैसूर के पहले युद्ध में अंग्रेजों के सामने अपनी वीरता का प्रमाण दिया था.
उसके बाद 1780 में हुए मैसूर के दूसरे युद्ध 'बैटल ऑफ पल्लिलुर' में अंग्रेजों को शिकस्त देने में उन्होंने अपने पिता हैदर अली की काफी मदद की थी. उनके सहयोग से उनके पिता को विजय हासिल हुई थी. इसके बाद भी उन्होंने कई युद्ध में हिस्सा लिया और विजय भी प्राप्त की. बताया जाता है कि 1799 को टूरिंग खानाली युद्ध का यह युद्ध टीपू का आखिरी युद्ध साबित हुआ.
सरेआम फांसी देने का था आरोप
19वीं सदी में ब्रिटिश गवर्मेंट के अधिकारी और लेखक विलियम लोगान ने अपनी किताब 'मालाबार मैनुअल' में लिखा है कि कैसे टीपू सुल्तान ने अपने 30,000 सैनिकों के दल के साथ कालीकट में तबाही मचाई थी. टीपू सुल्तान ने पुरुषों और महिलाओं को सरेआम फांसी दी और उनके बच्चों को उन्हीं के गले में बांधकर लटकाया गया. इस किताब में विलियम ने टीपू सुल्तान पर मंदिर, चर्च तोड़ने और जबरन शादी जैसे कई आरोप भी लगाए हैं.
वहीं यहां 1964 में प्रकाशित किताब 'लाइफ ऑफ टीपू सुल्तान' में कहा गया है कि सुल्तान ने मालाबार क्षेत्र में एक लाख से ज्यादा हिंदुओं और 70,000 से ज्यादा ईसाइयों को मुस्लिम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया. इस किताब के अनुसार धर्म परिवर्तन टीपू सुल्तान का असल मकसद था, इसलिए उसने इसे बढ़ावा दिया.