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राम मनोहर लोहिया, जिन्होंने लोकसभा चुनाव में दी थी नेहरू को 'मात'

भारत के स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर चिंतक और समाजवादी राजनेता राममनोहर लोहिया की आज पुण्यतिथि है. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद हुआ था. उनके पिताजी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे.

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फाइल फोटो।
फाइल फोटो।

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भारत के स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर चिंतक और समाजवादी राजनेता राममनोहर लोहिया की आज पुण्यतिथि है. राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को उत्तर प्रदेश के फैजाबाद हुआ था. उनके पिताजी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे. उनके पिताजी गांधीजी के अनुयायी थे और उन पर भी गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ.

देश में गैर-कांग्रेसवाद की अलख जगाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी और समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया चाहते थे कि दुनियाभर के सोशलिस्ट एकजुट होकर मजबूत मंच बनाए. लोहिया भारतीय राजनीति में गैर कांग्रेसवाद के शिल्पी थे और उनके अथक प्रयासों की वजह से साल 1967 में कई राज्यों में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, हालांकि केंद्र में कांग्रेस जैसे-तैसे सत्ता पर काबिज हो पाई. हालांकि लोहिया 1967 में ही चल बसे, लेकिन उन्होंने गैर कांग्रेसवाद की जो विचारधारा चलाई. उसी की वजह से आगे चलकर 1977 में पहली बार केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकारी बनी. लोहिया मानते थे कि अधिक समय तक सत्ता में रहकर कांग्रेस अधिनायकवादी हो गयी थी और वह उसके खिलाफ संघर्ष करते रहे.

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राम मनोहर लोहिया आजादी के वक्त युवा थे और देश की आजादी और बंटवारे के घटनाक्रम को बहुत करीब से देख रहे थे.  उनकी एक किताब के अनुसार लोहिया ने आजादी के आठ मुख्य कारण गिनाए थे. इसमें ब्रितानी कपट,  कांग्रेस नेतृत्व का उतारवय (ढलान), हिंदू-मुस्लिम दंगों की प्रत्यक्ष परिस्थिति, जनता में दृढ़ता और सामर्थ्य का अभाव, गांधी की अहिंसा, मुस्लिम लीग की फूटनीति, अवसरों से लाभ उठा सकने की असमर्थता और हिंदू अहंकार शामिल है.

नेहरू को भी दी थी 'मात'- साल 1962 से पूर्व प्रधानमंत्री फुलपुर से चुनाव लड़ रहे थे और उस वक्त लोहिया उनके विरोध में प्रचार कर रहे थे. दरअसल लोहिया यह अच्छी तरह जानते थे कि राजनीति में विरोधी को खत्म करने से पहले जड़ को खत्म करना आवश्यक है. इस चुनाव में कांग्रेस के पास संसाधन अधिक थे, लेकिन फिर भी लोहिया नेहरू के सामने जमकर लड़े. इस चुनाव में नेहरू उन-उन क्षेत्रों में पीछे रहे, जहां-जहां लोहिया ने चुनावी सभा को संबोधित किया था.

भारत छोड़ो आंदोलन में भी सक्रिय- गांधी जी और अन्य कांग्रेसी नेताओं के गिरफ्तार होने जाने के बाद लोहिया ने भूमिगत रहकर 'भारत छोड़ो आंदोलन' को पूरे देश में फैलाया. लोहिया, अच्युत पटवर्धन, सादिक अली, पुरूषोत्तम टिकरम दास, मोहनलाल सक्सेना, रामनन्दन मिश्रा आदि नेताओं का केंद्रीय संचालन मंडल बनाया गया था, लोहिया पर नीति निर्धारण कर विचार देने का कार्यभार सौंपा गया. 20 मई 1944 को लोहिया जी को बंबई में गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद लाहौर किले की एक अंधेरी कोठरी में रखा गया जहां 14 वर्ष पहले भगत सिंह को फांसी दी गई थी. इसी के साथ ही उन्होंने लगातार स्वतंत्रता की आग को लगातार जलाए रखने का काम किया.

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30 सितम्बर 1967 को लोहिया को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल यानि लोहिया अस्पताल में आपरेशन के लिए भर्ती किया गया, जहां 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हो गया.

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