मशहूर साहित्यकार अमृता प्रीतम की आज 99वीं जयंती है. उनका जन्म आज ही के रोज 31 अगस्त, 1919, पंजाब (पाकिस्तान) में हुआ था. उन्हें 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री का दर्जा दिया गया है. उनकी हिंदी और पंजाबी भाषा में अच्छी पकड़ थी. वह एक ऐसी कवयित्री थीं जिनकी लोकप्रियता सीमा पार पाकिस्तान में भी उतनी ही है जितनी की भारत में है.
अमृता ने पंजाबी जगत में छ: दशकों तक राज किया. उन्होंने कुल मिलाकर लगभग 100 किताबें लिखी. जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है.
अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं, जिनकी कृतियों का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ. अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान 'पद्म विभूषण' भी प्राप्त हुआ था. उन्हें 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से पहले ही सम्मानित किया जा चुका था.
16 साल में हो गई थी शादी
अमृता प्रीतम का जन्म 1919 में गुजरावाला (पंजाब- पाकिस्तान) में हुआ था. बचपन लाहौर में बीता और शिक्षा भी वहीं पर हुई. इन्होंने पंजाबी लेखन से शुरुआत की और किशोरावस्था से ही कविता, कहानी और निबंध लिखना शुरू किया. अमृता जी 11 साल की थी तभी इनकी माताजी का निधन हो गया, इसलिये घर की जिम्मेदारी भी इनके कंधों पर आ गई. ये उन विरले साहित्यकारों में से है जिनका पहला संकलन 16 साल की आयु में प्रकाशित हुआ. फिर आया 1947 का विभाजन का दौर, इन्होंने विभाजन का दर्द सहा था, और इसे बहुत क़रीब से महसूस किया था, इनकी कई कहानियों में आप इस दर्द को स्वयं महसूस कर सकते हैं. विभाजन के समय इनका परिवार दिल्ली में आ बसा. अब इन्होंने पंजाबी के साथ-साथ हिंदी में भी लिखना शुरू किया. जब वह 16 साल की थी तब उनका विवाह एक संपादक से हुआ, ये रिश्ता बचपन में ही मां-बाप ने तय कर दिया था. जिसके बाद साल 1960 में उनका तलाक हो गया.
कैसे हुआ था निधन
अमृता प्रीतम ने लंबी बीमारी के बाद 31 अक्टूबर, 2005 को आखिरी सांस ली. वह 86 साल की थीं और साउथ दिल्ली के हौज खास इलाके में रहती थीं. अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कविताएं, कहानियां, नज़्में सदैव ही हमारे बीच रहेंगे. अमृता प्रीतम जैसे साहित्यकार रोज़-रोज़ पैदा नहीं होते, उनके जाने से एक युग का अंत हुआ है.
अमृता प्रीतम की कुछ प्रसिद्ध कविता
(याद)
आज सूरज ने कुछ घबरा कर
रोशनी की एक खिड़की खोली
बादल की एक खिड़की बंद की
और अंधेरे की सीढियां उतर गया…
आसमान की भवों पर
जाने क्यों पसीना आ गया
सितारों के बटन खोल कर
उसने चांद का कुर्ता उतार दिया…
मैं दिल के एक कोने में बैठी हूं
तुम्हारी याद इस तरह आयी
जैसे गीली लकड़ी में से
गहरा और काला धूंआ उठता है…
साथ हजारों ख्याल आये
जैसे कोई सूखी लकड़ी
सुर्ख आग की आहें भरे,
दोनों लकड़ियां अभी बुझाई हैं
वर्ष कोयले की तरह बिखरे हुए
कुछ बुझ गये, कुछ बुझने से रह गये
वक्त का हाथ जब समेटने लगा
पोरों पर छाले पड़ गये…
तेरे इश्क के हाथ से छूट गयी
और जिन्दगी की हन्डिया टूट गयी
इतिहास का मेहमान
मेरे चौके से भूखा उठ गया
(एक मुलाकात)
मैं चुप शान्त और अडोल खड़ी थी
सिर्फ पास बहते समुन्द्र में तूफान था……फिर समुन्द्र को खुदा जाने
क्या ख्याल आया
उसने तूफान की एक पोटली सी बांधी
मेरे हाथों में थमाई
और हंस कर कुछ दूर हो गया
हैरान थी….
पर उसका चमत्कार ले लिया
पता था कि इस प्रकार की घटना
कभी सदियों में होती है…..
लाखों ख्याल आये
माथे में झिलमिलाये
पर खड़ी रह गयी कि उसको उठा कर
अब अपने शहर में कैसे जाऊंगी?
मेरे शहर की हर गली संकरी
मेरे शहर की हर छत नीची
मेरे शहर की हर दीवार चुगली
सोचा कि अगर तू कहीं मिले
तो समुन्द्र की तरह
इसे छाती पर रख कर
हम दो किनारों की तरह हंस सकते थे
और नीची छतों
और संकरी गलियों
के शहर में बस सकते थे….
पर सारी दोपहर तुझे ढूंढते बीती
और अपनी आग का मैंने
आप ही घूंट पिया
मैं अकेला किनारा
किनारे को गिरा दिया
और जब दिन ढलने को था
समुन्द्र का तूफान
समुन्द्र को लौटा दिया….
अब रात घिरने लगी तो तूं मिला है
तूं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
मैं भी उदास, चुप, शान्त और अडोल
सिर्फ- दूर बहते समुन्द्र में तूफान है…..
(हादसा)
बरसों की आरी हंस रही थी
घटनाओं के दांत नुकीले थे
अकस्मात एक पाया टूट गया
आसमान की चौकी पर से
शीशे का सूरज फिसल गया
आंखों में ककड़ छितरा गये
और नजर जख्मी हो गयी
कुछ दिखायी नहीं देता
दुनिया शायद अब भी बसती है