scorecardresearch
 

जयंती: क्रांतिकारी कवि थे रामधारी सिंह ‘दिनकर'

आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती है... जानें- उनके बारे में दिलचस्प बातें..

Advertisement
X
रामधारी सिंह दिनकर
रामधारी सिंह दिनकर

Advertisement

कविताओं से भारतीय समाज का रिश्ता पुराना है. अगर बात ऐसे कवियों की हो जिन्होंने आजादी की लड़ाई से लेकर, उसके बाद तक अपनी लेखनी से जनता को उसके अधिकारों के प्रति जागरूक किया हो, तो उनमें रामधारी सिंह दिनकर का नाम जरूर आता है. आज राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की 110 वीं जयंती है.

दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगुसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. तीन साल की उम्र में सिर से पिता का साया उठ जाने के कारण उनका बचपन अभावों में बीता. लेकिन घर पर रोज होने वाले रामचरितमानस के पाठ ने दिनकर के भीतर कविता और उसकी समझ के बीज बो दिए थे. राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने हिंदी साहित्य में न सिर्फ वीर रस के काव्य को एक नई ऊंचाई दी, बल्कि अपनी रचनाओं के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का भी सृजन किया.

Advertisement

इसकी एक मिसाल 70 के दशक में संपूर्ण क्रांति के दौर में मिलती है. दिल्ली के रामलीला मैदान में लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने हजारों लोगों के समक्ष दिनकर की पंक्ति ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ का उद्घोष करके तत्कालीन सरकार के खिलाफ विद्रोह का शंखनाद किया था.

दिनकर की पहली रचना 'प्राणभंग' मानी जाती है. इसे उन्होंने 1928 में लिखा था. इसके बाद दिनकर ने 'रेणुका', 'हुंकार', 'कुरुक्षेत्र', 'बापू', 'रश्मिरथी' लिखा. 'रेणुका' और 'हुंकार' में देशभक्ति की भावना इस कदर भरी हुई थी कि घबराकर अंग्रेजों ने इन किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया था. दिनकर ने निर्भीक होकर अंग्रेजों के खिलाफ तो लिखा ही, लेकिन आजादी के बाद के सत्ता चरित्र को भी उजागर करने से नहीं हिचके. दिनकर जवाहर लाल नेहरू के प्रशंसकों में से थे. लेकिन 1962 के युद्ध में सैनिकों की मौत के मुद्दे पर वह नेहरू की आलोचना से भी नहीं चूके. 'परशुराम की प्रतीक्षा' में वह लिखते हैं,

घातक है, जो देवता-सदृश दिखता है,

लेकिन, कमरे में गलत हुक्म लिखता है,

जिस पापी को गुण नहीं; गोत्र प्यारा है,

समझो, उसने ही हमें यहां मारा है.

दिनकर का पहला काव्यसंग्रह ‘विजय संदेश’ वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं की. उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकार’ और ‘उर्वशी’ हैं. उन्हें वर्ष 1959 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया.

Advertisement

पद्म भूषण से सम्मानित दिनकर राज्यसभा के सदस्य भी रहे. वर्ष 1972 में उन्हें ज्ञानपीठ सम्मान भी दिया गया. 24 अप्रैल, 1974 को उनका देहावसान हो गया. दिनकर ने अपनी ज्यादातर रचनाएं ‘वीर रस’ में कीं. इस बारे में जनमेजय कहते हैं, ‘भूषण के बाद दिनकर ही एकमात्र ऐसे कवि रहे, जिन्होंने वीर रस का खूब इस्तेमाल किया. वह एक ऐसा दौर था, जब लोगों के भीतर राष्ट्रभक्ति की भावना जोरों पर थी. दिनकर ने उसी भावना को अपने कविता के माध्यम से आगे बढ़ाया. वह जनकवि थे इसीलिए उन्हें राष्ट्रकवि भी कहा गया.’

देश की आजादी की लड़ाई में भी दिनकर ने अपना योगदान दिया. वह बापू के बड़े मुरीद थे. हिंदी साहित्य के बड़े नाम दिनकर उर्दू, संस्कृत, मैथिली और अंग्रेजी भाषा के भी जानकार थे. वर्ष 1999 में उनके नाम से भारत सरकार ने डाक टिकट जारी किया.

बता दें, दिनकर ने हिंदी कविता को छायावाद के भारीपन से मुक्ति दिलाकर उसे आम जनता के बीच पहुंचाने का काम किया. यही वजह है कि आज भी दिनकर की कविता लोगों की जुबान पर रहती है.

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कुछ कविताएं..

1) कलम, आज उनकी जय बोल

जला अस्थियाँ बारी-बारी

चिटकाई जिनमें चिंगारी,

जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर

Advertisement

लिए बिना गर्दन का मोल

कलम, आज उनकी जय बोल.

2. हमारे कृषक

जेठ हो कि हो पूस, हमारे कृषकों को आराम नहीं है

छूटे कभी संग बैलों का ऐसा कोई याम नहीं है

मुख में जीभ शक्ति भुजा में जीवन में सुख का नाम नहीं है

वसन कहां? सूखी रोटी भी मिलती दोनों शाम नहीं है

3. भारत का यह रेशमी नगर

भारत धूलों से भरा, आंसुओं से गीला, भारत अब भी व्याकुल विपत्ति के घेरे में.

दिल्ली में तो है खूब ज्योति की चहल-पहल, पर, भटक रहा है सारा देश अँधेरे में.

रेशमी कलम से भाग्य-लेख लिखनेवालों, तुम भी अभाव से कभी ग्रस्त हो रोये हो?

बीमार किसी बच्चे की दवा जुटाने में, तुम भी क्या घर भर पेट बांधकर सोये हो?

4. परशुराम की प्रतीक्षा

हे वीर बन्धु ! दायी है कौन विपद का ?

हम दोषी किसको कहें तुम्हारे वध का ?

यह गहन प्रश्न; कैसे रहस्य समझायें ?

दस-बीस अधिक हों तो हम नाम गिनायें

पर, कदम-कदम पर यहाँ खड़ा पातक है,

हर तरफ लगाये घात खड़ा घातक है

5. समर शेष है....

ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो,

किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?

किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,

Advertisement

भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?

कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊं किसको कोमल गान?

तड़प रहा आंखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान.

Advertisement
Advertisement