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Sivaji Ganesan: एक्टिंग के लिए 7 साल की उम्र में छोड़ा घर, जानें कौन हैं महान कलाकार शिवाजी गणेशन

Sivaji Ganesan Google Doodle Today: 7 साल की छोटी उम्र में, उन्होंने घर छोड़ दिया और एक थिएटर ग्रुप में शामिल हो गए. यहां उन्होंने बाल और महिला भूमिकाएं निभाना शुरू किया और फिर मुख्य भूमिकाएं भी निभाईं. दिसंबर 1945 में, गणेशन ने 17वीं शताब्दी के भारतीय राजा शिवाजी के अपने नाटकीय चित्रण के साथ अपने नाम में शिवाजी जोड़ लिया. 

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Google Doodle:
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स्टोरी हाइलाइट्स
  • 1997 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित हुए
  • 7 वर्ष की उम्र में घर छोड़ थिएटर में शामिल हो गए थे

Sivaji Ganesan Google Doodle Today: गूगल आज भारत के पहले मेथड एक्टर्स में से एक और देश के अब तक के सबसे प्रभावशाली अभिनेताओं में से एक, शिवाजी गणेशन का 93वां जन्मदिन मना रहा है. इस खास मौके पर गूगल ने अपना डूडल उन्‍हें समर्पित किया है जिसे गेस्‍ट आर्टिस्‍ट नूपुर राजेश चोकसी ने बनाया है.

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आज के दिन 1928 में, शिवाजी गणेशन का जन्म भारत के तमिलनाडु के दक्षिणपूर्वी राज्य के एक शहर विल्लुपुरम में गणेशमूर्ति के रूप में हुआ था. 7 साल की छोटी उम्र में, उन्होंने घर छोड़ दिया और एक थिएटर ग्रुप में शामिल हो गए. यहां उन्होंने बाल और महिला भूमिकाएं निभाना शुरू किया और फिर मुख्य भूमिकाएं भी निभाईं. दिसंबर 1945 में, गणेशन ने 17वीं शताब्दी के भारतीय राजा शिवाजी के अपने नाटकीय चित्रण के साथ अपने नाम में शिवाजी जोड़ लिया. 

वह अपने स्‍टेज नेम "शिवाजी" से जाने जाने लगे और गणेशन ने शिवाजी बनकर अभिनय की दुनिया को जीत लिया.

शिवाजी ने 1952 में आई फिल्म "पराशक्ति" में अपना ऑन-स्क्रीन डेब्‍यू किया, जो लगभग पांच दशक के सिनेमाई करियर में फैली उनकी 300 से अधिक फिल्मों में से पहली थी. तमिल भाषा के सिनेमा में अपनी अभिव्यंजक आवाज और विविध प्रदर्शनों के लिए प्रसिद्ध, गणेशन जल्दी ही अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर गए. 

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उनकी सबसे प्रसिद्ध ब्लॉकबस्टर में ट्रेंडसेटिंग 1961 की फिल्म "पसमालर", एक भावनात्मक, पारिवारिक कहानी है, जिसे तमिल सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक माना जाता है. इसके अलावा 1964 की फिल्म "नवरथी" गणेशन की 100वीं फिल्म थी जिसमें उन्होंने एक रिकॉर्ड-तोड़, नौ अलग-अलग भूमिकाएं निभाई थीं.

1960 में, गणेशन ने अपनी ऐतिहासिक फिल्म "वीरपांडिया कट्टाबोम्मन" के लिए एक अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार जीतने वाले पहले भारतीय कलाकार के रूप में इतिहास रचा, जो आज भी उनकी सबसे बड़ी ब्लॉकबस्टर फिल्मों में से एक है. 1995 में, फ्रांस ने उन्हें अपने सर्वोच्च सम्मान, शेवेलियर ऑफ़ द नेशनल ऑर्डर ऑफ़ द लीजन ऑफ़ ऑनर से सम्मानित किया. 1997 में भारत सरकार ने उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जो सिनेमा के क्षेत्र में भारत का सर्वोच्च पुरस्कार है. 

 

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