बेमौसम बारिश की वजह से सरकार के लिए खड़ी होती मुसीबतें कोई नई बात नहीं है. अतीत में कई बार बेईमान मौसम सियासी एजेंडा का रुख बदल चुका है.
साल 1965: जब सूखे ने बांट दी कांग्रेस
1965 में देश में गंभीर सूखा पडा.1966 के अंत तक अनाज का उत्पादन 23.5% तक गिर गया और महंगाई आसमान छूने लगा. कांग्रेस के भीतर इंदिरा गांधी के खिलाफ विरोध के स्वर तेज़ हुए और 1969 में पार्टी बंट गई.
साल 1972: उत्पादन में कमी ने गिराई सरकार
अनाज का उत्पादन 1971-72 और 1972-73 के बीच 8% गिरा. तेल के दाम बढ़ने से और दबाव पड़ा और महंगाई भी बढ़ने लगी. 1971 में गरीबी हटाओ का नारा देकर चुनाव जीतने वाली इंदिरा गांधी के खिलाफ माहौल बनने लगा. जयप्रकाश नारायण ने यह मौका लपका और अगले ही चुनावों में सभी को हैरान करते हुए इंदिरा को करारी पटखनी दी.
साल 1986: सूखे की आफत
बोफोर्स सौदे में घपले के आरोपों का सामना कर रहे राजीव गांधी इस साल पड़े सूखे के कारण और दिक्कत में पड़ गए. उनके नेतृत्व को चुनौती देने के लिए वी पी सिंह आए और तेज़ी से अपनी जगह बनाई.
साल 2002: जब इंडिया शाइनिंग कर रहा था!
यह भी सूखे का साल था, जब बारिश 20% घट गई और देश के 30% हिस्से में सूखा घोषित किया गया. NDA सरकार को लेकर नाराज़गी बढ़ने लगी. साल 2004 में सरकार भारत उदय अभियान के बावजूद सत्ता से बाहर कर दी गई.
साल 2015: मोदी के लिए मुसीबत
बेमौसम बारिश ने 93 लाख हेक्टेयर खेतों में फसल प्रभावित की. किसानों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ने लगीं और ऊंट के मुंह में ज़ीरा जैसा मुआवज़ा भी दिया गया. विपक्ष ने भूमि अधिग्रहण विधेयक को किसान विरोधी बताया. मोदी के लिए अच्छी बात है कि उनके पास जनमत अच्छा है और अतीत की तरह विपक्षी दल उनकी नाक में दम करने के हालात में नहीं हैं.