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कौन थे भारत की पहली निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति राजा महेंद्र सिंह? अब ऐसे याद किए जाएंगे

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में राजा महेंद्र प्रताप सिंह यूनिवर्सिटी की आधारशिला रखेंगे. जाट राजा महेंद्र सिंह यूनिवर्सिटी बनने के फैसले के बाद ही काफी चर्चा में हैं. आइए जानते हैं राजा महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में इतिहास में क्या दर्ज है और अब कैसे याद किए जाएंगे.

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राजा महेंद्र प्रताप सिंह
राजा महेंद्र प्रताप सिंह

जाट राजा महेंद्र प्रताप सिंह से आज की पीढ़ी अनजान थी. अब उनके नाम पर अलीगढ़ में यूनिवर्सिटी बनने के ऐलान के साथ ही उन पर चर्चा होने लगी है. राजा महेंद्र प्रताप सिंह कौन थे, उनका जाट समाज के लिए क्या योगदान रहा है, पहले अलीगढ़ मुस्ल‍िम यूनिवर्स‍िटी का नाम उनके नाम पर करने की चर्चा क्यों हो रही थी, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में उनका क्या योगदान था, ऐसे कई सवाल हैं जिनके जवाब अब एक के बाद एक सामने आ रहे हैं. 

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बता दें कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हाथरस ज़िले के मुरसान रियासत के राजा थे. जाट परिवार से आने वाले राजा महेंद्र प्रताप सिंह के व्यक्त‍ित्व की खासी पहचान रही है. उस जमाने में वो एक पढ़े-लिखे राजा होने के साथ साथ एक अच्छे लेखक और पत्रकार के तौर पर भी जाने गए. उन्हें भारत की पहली निर्वासित सरकार के राष्ट्रपति के तौर पर भी पहचाना जाता है. यही नहीं उनकी एक पहचान सर्वधर्म सद्भाव रखने वाले लीडर की भी है.  

राजा महेंद्र प्रताप सिंह के बारे में इतिहास में कई बातें दर्ज की जा चुकी हैं. मसलन जब पहला विश्वयुद्ध हो रहा था, उस दौरान एक दिसंबर, 1915 को उन्होंने अफगानिस्तान जाकर उन्होंने भारत की पहली निर्वासित सरकार बनाई जिसमें वो स्वयं राष्ट्रपति थे. निर्वासित सरकार वो सरकार थी जब भारत में अंग्रेजी शासन था लेकिन ठीक वक्त एक स्वतंत्र भारतीय सरकार बनने की घोषणा लोगों में आजादी का जज्बा भरने वाली बात थी.

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राजा महेंद्र प्रताप सिंह की ही राह पर आगे चलकर नेताजी सुभाष चंद्र बोस भी चले. दोनों ने बाहर देशों में जाकर निर्वासित सरकारें बनाईं, इसे लेकर दोनों में समानता जरूर है, लेकिन दोनों की पॉलिटिकल राह अलग मानी जाती है. सुभाष चंद्र बोस जहां घोष‍ित तौर पर कांग्रेसी नेता थे, वहीं राजा महेंद्र प्रताप सिंह कांग्रेसी नहीं थे. हां, उस दौर में कांग्रेस के बड़े नेताओं तक उनकी धाक जरूर जमी थी. महेंद्र प्रताप सिंह पर प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ में महात्मा गांधी से उनके पत्राचार से इसका साफ पता चलता है. 

महात्मा गांधी ने कहा था कि राजा महेंद्र प्रताप के लिए 1915 में ही मेरे हृदय में आदर पैदा हो गया था. उससे पहले भी उनकी ख़्याति का हाल अफ़्रीका में मेरे पास आ गया था. उनका पत्र व्यवहार मुझसे होता रहा है जिससे मैं उन्हें अच्छी तरह से जान सका हूं. उनका त्याग और देशभक्ति सराहनीय है.

इस सबके बीच जो चर्चा सबसे आम रही, वो ये थी कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के लिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने जमीन दान दी थी और यूनिवर्सिटी कैंपस में उनके योगदान का कहीं जिक्र नहीं है.

इस पहलू पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता उमर पीरज़ादा ने बीबीसी हिंदी से बातचीत में कहा कि देखिए राजा महेंद्र प्रताप सिंह हमारे यूनिवर्सिटी के ही छात्र रहे हैं, ऐसे में हम सब के लिए उनके नाम पर एक शैक्षणिक केंद्र का खुलना गर्व की बात है. 
बता दें कि ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार राजा महेंद्र प्रताप सिंह के पिता राजा घनश्याम सिंह सर सैय्यद अहमद ख़ान के दोस्त थे और उनके परिवार ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पहले यहां चलने वाले स्कूल और कॉलेज के निर्माण में वित्तीय मदद की थी.

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राजा महेंद्र प्रताप सिंह के एएमयू के निर्माण में उनके योगदान पर उमर पीरज़ादा ने कहा कि राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को 1929 में 3.8 एकड़ की ज़मीन लीज़ पर दी थी. यह जमीन मुख्य कैंपस से अलग शहर की ओर है जहां आज आधे हिस्से में सिटी स्कूल चल रहा है और आधा हिस्सा अभी खाली है. आज भले ही उनके नाम पर तमाम चर्चाएं हो रही हों लेकिन इतिहास में दर्ज उनकी छवि बताती है कि वो हिंदू-मुस्‍ल‍िम बहस से कहीं ऊपर हमेशा देशभक्त के तौर पर जाने जाएंगे.

 

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