Motilal Nehru: एक प्रमुख वकील, एक स्वतंत्रता सेनानी और स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू की आज, 6 फरवरी 2023 को 92वीं पुण्यतिथि है. जब भी नेहरू परिवार की बात होती है तो सबसे पहले मोती लाल नेहरू का नाम आता है. उनकी धनदौलत, वकालत, राजसी ठाठबाट और पढ़ाई को लेकर कई किस्से चर्चा में रहे हैं. उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा ब्रिटिश राज के सरकारी स्कूल से हासिल की थी और लॉ में टॉप किया था. उस दौर में यूरोप आना-जाना उनके लिए आमबात थी.
मोती लाल नेहरू की पढ़ाई: लॉ एग्जाम में किया था टॉप
पंडित मोती लाल नेहरू का जन्म 6 मई 1861 को आगरा, उत्तर प्रदेश में एक कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपना बचपन खेतड़ी, राजस्थान में बिताया. बचपन में ही माता-पिता को खो देने के बाद उनके बड़े भाई नंदलाल ने उनकी परवरिश की. नंदलाल उस वक्त आगरा हाईकोर्ट में वकील थे. उन्होंने मोती लाल का दाखिला गवर्नमेंट हाई स्कूल, कानपुर में कराया, जहां उन्होंने अरबी, फारसी और अंग्रेजी में पढ़ाई की. उन्होंने मुइर सेंट्रल कॉलेज, इलाहाबाद (अब प्रयागराज) से लॉ की डिग्री प्राप्त की.
मोती लाल नेहरू का करियर
मोती लाल नेहरू ने उस समय सभी को हैरान कर दिया था जब वकील की परीक्षा में टॉप किया और 1883 में पंडित पृथ्वी नाथ के अपरेंटिसशिप के तहत कानपुर में लॉ की प्रैक्टिस शुरू की. तीन साल बाद, 1886 में, मोती लाल इलाहाबाद चले गए और अपने बड़े भाई नंद लाल के साथ लॉ प्रैक्टिस जारी रखी.
5 रुपये थी पहली कमाई, फिर ऐसे बने भारत के सबसे अमीर वकील
जैसे-जैसे मोतीलाल अपने लॉ करियर में आगे बढ़े, उनके जीवन स्तर में भी नाटकीय रूप से सुधार हुआ. वह बाद में सबसे अमीर भारतीयों में से थे. ब्रिटिश राज में अंग्रेज जज भारतीय वकीलों को ज्यादा तवज्जो नहीं देते थे लेकिन उस वक्त मोती लाल नेहरू का जज्बा और मेहनत ही थी जिससे कई अंग्रेज जज प्रभावित थे.
भारत के पूर्व जज पी सद्शिवम ने उनके बारे में इंडियन लॉ इंस्टीट्यूट के एक जर्नल में लिखा, 'वो असाधारण वकील थे. उन्हें बहुत जल्द और असरदार तरीके से सफलता मिली. उन दिनों भारत के किसी वकील को ग्रेट ब्रिटेन के प्रिवी काउंसिल में केस लड़ने के लिए शामिल किया जाना लगभग मुश्किल था लेकिन मोती लाल ऐसे वकील बने, जो इसमें शामिल किए गए'. उन्होंने लिखा, ‘मोती लाल नेहरू को हाईकोर्ट में पहले केस के लिए 5 रुपये मिले थे. फिर वो तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते गए. कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.’ बाद में उन्हें एक केस के लिए बहुत मोटी रकम मिलने लगी, जो हजारों में थी.
कहा यह भी जाता है कि जैसे-जैसे तरक्की हुई वैसे-वैसे उनका रहन सहन बहुत हद तक यूरोपियन हो गया था. मोती लाल नेहरू की छोटी बेटी कृष्णा की आत्मकथा में इसका जिक्र भी है, उनके अनुसार उनका परिवार वेस्टर्न तौरतरीके से रहता था, डायनिंग टेबल पर महंगी क्रॉकरीज हुआ करती थी. बच्चों को पढ़ने के लिए ट्यूटर आते थे. इलाहाबाद में उन्हीं के पास विदेशी कार थी. धनवान लोग उन्हें केस लड़ने के लिए ढूंढते हुए आते थे. साल 1894 में उन्होंने इटावा जिले के लखना राज केस लड़ा जिसकी एवज में उन्हें 1 लाख 52 हजार रुपये फीस मिली थी.
मोती लाल नेहरू ने की थी दो शादी
अपने करियर की दहलीज पर मोती लाल को एक बड़े परिवार की जिम्मेदारी भी निभानी थी. पं. नंद लाल का 1887 में 42 साल की कम उम्र में निधन हो गया था और उनकी पत्नी और पांच बेटों की देखभाल मोती लाल ने की. मोती लाल ने स्वरूप रानी कौल से शादी की और 14 नवंबर, 1889 को बेटा हुआ, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री (पंडित जवाहर लाल नेहरू) बने. उनकी दो बेटियां भी थीं विजयलक्ष्मी पंडित और कृष्णा नेहरू. हालांकि स्वरूप रानी मोती लाल नेहरू की दूसरी पत्नी थी. उनकी पहली शादी बहुत कम उम्र में हुई थी लेकिन प्रसव के दौरान पहली पत्नी और पहले जन्मे बेटे दोनों को खो दिया था.
गांधीजी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम में हुए शामिल
साल 1920 में मोतीलाल नेहरू ने महात्मा गांधी को सुना-समझा और उनसे प्रभावित होकर स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए. करियर के शीर्ष स्थान पर पहुंचकर वकालत छोड़ दी और गांधीजी के साथ आजादी की लड़ाई में जुट गए. अपने खराब स्वास्थ्य के बावजूद, मोती लाल ने आंदोलन में भाग लिया. गांधी के नमक सत्याग्रह का समर्थन करने के लिए जम्बासुर, गुजरात की यात्रा की. मोती लाल नेहरू दो बार कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे. कुछ महीनों के लिए जेल भी गए लेकिन खराब स्वास्थ्य के चलते रिहा कर दिया गया था. कुछ महीने बाद 6 फरवरी 1931 को पंडित मोती लाल नेहरू का निधन हो गया था.