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आज ही हुआ था इस तानाशाह का अंत, कभी अपने देश के कहलाते थे नायक

आज 20 अक्टूबर है. आज के दिन ही दुनिया के तानाशाहों में एक मुअम्मर गद्दाफी को विद्रोहियों ने मौत के घाट उतार दिया था. इस तानाशाह से जुड़ी कई कहानियों की आज भी चर्चा होती है.

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मुअम्मर गद्दाफी (फाइल फोटो)
मुअम्मर गद्दाफी (फाइल फोटो)

आज का दिन लीबिया के लिए महत्वपूर्ण दिन है. कभी लीबिया को राजशाही से छुटकारा दिलाकर लोगों के बीच नए नायक के रूप में अपनी पहचान बनाने वाला शख्स, खुद ऐसे काम करने लगा कि मजबूरन उन्हें नायक बनाने वाले लोग ही उनके खिलाफ खड़े हो गए. अंतत: 42 साल की तानाशाही के बाद मुअम्मर गद्दाफी का बेहद खौफनाक अंत हुआ. 

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आज के दिन 20 अक्टूबर 2011 को ही गद्दाफी को उनके गृह नगर सिर्ते में विद्रोही लड़ाकों ने मार गिराया था. हालांकि, गद्दाफी की हत्या की अंतरराष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के रूप में आलोचना की गई थी.लीबिया के एनटीसी (National Transitional Council) ने शुरू में दावा किया था कि गद्दाफी की मौत गोलीबारी में लगी चोटों के कारण हुई थी. हालांकि उनके अंतिम क्षणों के एक वीडियो में विद्रोही लड़ाके उन्हें पीटते हुए नजर आए हैं. इससे पहले ऐसा दावा किया गया कि उन्हें कई बार गोली मारी गई थी.

कभी नायक बनकर उभरे थे गद्दाफी
मुअम्मर गद्दाफी का जन्म 7 जून 1942 को लीबिया के सिर्ते शहर में हुआ था. 27 साल की उम्र में उसने देश में तख्तापलट किया और 42 सालों तक लीबिया पर राज किया.उनका पूरा नाम मुअम्मर अल गद्दाफी था, लेकिन कर्नल गद्दाफी के नाम से जाना गया. गद्दाफी हमेशा से अरब राष्ट्रवाद प्रभावित रहे.

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अपने शुरुआती दिनों में वह 1961 में बेनगाजी के सैन्य कॉलेज में प्रवेश लिया. सैन्य प्रशिक्षण पूरा कर लीबिया की फौज में कई बड़े पदों पर काम किया.  इस दौरान उनका लीबिया के तत्कालीन प्रशासक इदरीस के साथ मतभेद रहा. इसके बाद गद्दाफी ने सेना छोड़ कर उस गुट के लिए काम करना शुरू किया जो सरकार के विरुद्ध काम करता था.

27 साल की उम्र में ऐसे किया तख्ता पलट
गद्दाफी ने विरोधी गुट के साथ देश में तख्तापलट करने की योजना बनाई. इसके लिए वो समय चुना जब प्रशासक इदरीस तुर्की में इलाज करवा रहे थे. 1 सितंबर 1969 को विद्रोहियों के साथ मिलकर राजा इदरीस की सत्ता पर काबिज हो गए. पूरे देश की सेना को नियंत्रण कर लिया. साथ ही देश में जितने भी अमेरिकी और ब्रिटिश सैन्य ठिकाने थे, उन सबको बंद करने का हुक्म दिया.

तानाशाही नीतियों के कारण गद्दाफी का शुरू हुआ विरोध
एक नायक के रूप में उभरे गद्दाफी की नीतियां तानाशाह वाली होने लगी, दो विरोधियों का सख्ती से दमन करने वाली थीं. यही वजह थी कि कई लोग उन्हें सनकी भी कहते थे. बाद में गद्दाफी ने कई देशों को प्रतिबंधित कर दिया. इससे लीबिया की व्यापार व्यवस्था बिगड़ने लगी. इसके साथ ही कई आतंकी हमलों में लीबिया का नाम सामने आया. 1986 में वेस्ट बर्लिन डांस क्लब की बमबारी में लीबिया का नाम आने पर अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने कार्रवाई की और त्रिपोली स्थित गद्दाफी के निवास पर हमला किया.

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इस तरह अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने गद्दाफी के विद्रोहियों का समर्थन करना शुरू कर दिया. नाटो गठबंधन ने भी गद्दाफी के ठिकानों पर हवाई हमले करने शुरू कर दिये. हमले में गद्दाफी का बेटा मारा गया. विद्रोहियों ने राजधानी त्रिपोली पर कब्जा कर लिया. इसके बाद गद्दाफी त्रिपोली से भाग निकला. 

19 अक्टूबर 2011 को, लीबिया के प्रधानमंत्री महमूद जिब्रील ने कहा कि ऐसा माना जा रहा है कि गद्दाफी दक्षिणी रेगिस्तान में हैं. इस क्षेत्र में गद्दाफी समर्थकों की बहुलता थी. कहा जा रहा था कि उनके बीच ही गद्दाफी अपनी सरकार को फिर से स्थापित करने की कोशिश में हैं. तब तक एनटीसी ने गद्दाफी समर्थक बानी वालिद शहर पर नियंत्रण कर लिया था और गद्दाफी के गृह नगर सिर्ते तक पहुंच गया था. 

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20 अक्टूबर 2011 को सिर्ते में भारी बमबारी हुई. इसी बीच गद्दाफी भी मारे गए. हालांकि, उनकी मौत कैसे हुई इस पर संशय रहा. कुछ का कहना था कि मौत नाटो के हवाई हमले में हुई है. कुछ का कहना था कि विद्रोही लड़ाकों ने मार गिराया. कहा जाता है कि गद्दाफी अपने गृह शहर में कई दिनों तक गद्दाफी छिपकर रह रहे थे. अंतिम समय में उनके सारे वफादार मारे गए. 

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प्रमुख घटनाएं

20 अक्टूबर 1962 को चीन की सेना ने लद्दाख में और मैकमोहन रेखा के पार एक साथ हमले शुरू किए.
 
20 अक्टूबर 2003 में मदर टेरेसा को रोमन कैथोलिक चर्च की सर्वोच्च सत्ता पोप जॉन पाल द्वितीय का आशीर्वाद मिला था. 

20 अक्टूबर 1947 अमेरिका और पाकिस्तान ने पहली बार राजनयिक संबंध स्थापित किए.

20 अक्टूबर 1774 कोलकाता (तत्कालीन कलकत्ता) को अंग्रेजों ने भारत की राजधानी बना दिया.

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