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जब जेल में महात्मा गांधी का अनशन तुड़वाने पहुंचे आंबेडकर... फिर हुआ एक समझौता

आज 24 सितंबर है. हर दिन की तरह एक आम तारीख, लेकिन भारतीय इतिहास में आज के दिन कुछ ऐसा हुआ, जिसने हमेशा के लिए देश की दशा-दिशा बदलकर रख दी. 24 सितंबर 1932 को पूना पैक्ट के रूप में जाना जाता है. जानते हैं क्या है इस पूना पैक्ट की कहानी.

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पूना पैक्ट की कहानी
पूना पैक्ट की कहानी

आज ही के दिन  24 सितंबर 1932 को बाबासाहेब आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच एक समझौता हुआ था. इसे पूना पैक्ट कहा गया और इसके माध्यम से दलितों को कई अधिकार दिए गए. कहा जाता है कि बापू आमरण अनशन पर बैठ गए थे. मजबूरन बाबा साहेब आंबेडकर को जेल पहुंचकर महात्मा गांधी से बात करनी पड़ी और फिर दोनों के बीच एक समझौता हुआ. इसी समझौते को पूना पैक्ट कहा जाता है. जानते हैं क्या है इस पूना पैक्ट की पूरी कहानी.

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साल 1909 में भारत सरकार अधिनियम में आरक्षण का प्रावधान किया गया. उसके बाद आने वाले समय में ब्रिटिश सरकार ने अलग-अलग धर्म और जाति के लिए कम्युनल अवार्ड की भी शुरुआत की थी. इसी के तहत दलितों को दोहरा निर्वाचन अधिकार मिला था, जिसका महात्मा गांधी ने विरोध किया था. उसके बाद बाबा साहेब आंबेडकर और राष्ट्रपिता के बीच 24 सितंबर 1932 को यरवदा जेल में एक समझौता हुआ था. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर दलितों को मिले दोहरे निर्वाचन के अधिकार का गांधी जी ने क्यो विरोध किया था. 

कम्युनल अवार्ड की घोषणा का बापू ने किया विरोध 
साल 1924 मैकडोनॉल्ड कमेटी रिपोर्ट आई थी, जिसमें काउंसिलों में डिप्रेस्ड क्लासेज के अति अल्प प्रतिनिधित्व और उसे बढ़ाने के उपायों के बारे में बात कही गई. इसके बाद 1928 में साईमन कमीशन ने भी स्वीकार किया कि डिप्रेस्ड क्लासेज को पर्याप्त प्रातिनिधित्व दिया जाना चाहिए. उसके बाद लगातार प्रयासों के चलते 17 अगस्त 1932 को ब्रिटिश सरकार ने कम्युनल अवार्ड की घोषणा की. इसमें दलितों को अलग निर्वाचन का स्वतंत्र राजनीतिक अधिकार मिला.

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इस अवार्ड से दलितों को आरक्षित सीटों पर अलग निर्वाचन से अपने प्रतिनिधि स्वयं चुनने का अधिकार मिला और साथ ही सामान्य जाति के निर्वाचन क्षेत्रों में सवर्णों को चुनने के लिए दो वोट का अधिकार भी प्राप्त हुआ. यानी एक वोट के जरिए वोट उन्हें अपना प्रतिनिधि और दूसरे मत के जरिए सामान्य वर्ग के प्रतिनिधि को चुनने का अधिकार मिला था. इसे दलितों के अधिकारों की बड़ी जीत बताया गया था . इसी बात का गांधी जी ने विरोध किया. 

समाज के बिखरने का था खतरा
दलितों को यह अधिकार मिलने से महात्मा गांधी खफा थे. उनका कहना था कि अलग निर्वाचन क्षेत्र और उन्हें दो मतों का अधिकार देने से हिंदू समाज बिखर जाएगा, बंट जाएगा. इस रोकने के लिए बापू ने ब्रिटिश सरकार को कई पत्र लिखे, पर कोई सुनवाई नहीं हुई. अंतत: उन्होंने अनशन करने का फैसला लिया. वह पुणे की यरवदा जेल में अनशन पर बैठे और अपनी बात पर अड़े रहे.

गांधी और आंबेडकर के विचारों में था विरोधाभास
अनशन के जरिए महात्मा गांधी ने साफतौर पर अपना विरोध जता दिया था, लेकिन आंबेडकर का कहना था कि इससे दलितों का उत्थान होगा. यह उनके अधिकार और विकास की दिशा में बड़ा फैसला साबित होगा. महात्मा गांधी ने 18 अगस्त को तत्कालीन ब्रिटिश पीएम रेम्जे मैकडोनाल्ड को पत्र लिखकर विरोध जताया. उन्होंने लिखा, अपनी जिंदगी को दांव पर लगाकर मैं इस फैसले का विरोध कर रहा हूं. मैं इस अलगाव के खिलाफ हूं. ब्रिटिश सरकार से इस पर रोक लगाने की बात कही, लेकिन रोक नहीं लगी. उन्होंने 9 सितंबर को दोबारा पत्र लिखकर अपनी बात कही, लेकिन अंग्रेजों ने साफतौर इस पर रोक लगाने से मना कर दिया.

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आंबेडकर को पीछे खींचने पड़े कदम 
अंबेडकर का कहना था कि महात्मा गांधी के लिए वो एक जायज मांग पर रोक नहीं लगने देंगे और वो अपने रुख पर कायम रहेंगे, लेकिन जेल में लगातार अनशन के कारण गांधी जी का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा. कहा जाता है कि लोगों में संदेश गया कि इसकी वजह आंबेडकर हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि देश के लोगों में आंबेडकर के लिए नाराजगी और गुस्सा बढ़ने लगा. अंतत: आंबेडकर को कदम पीछे लेने पड़े.

दूसरे गोलमेज सम्मेलन में पूना पैक्ट की पड़ गई थी नींव
पूना पैक्ट कहानी की शुरुआत होती है दूसरे गोल मेज सम्मेलन से.  1931 के आखिर में लंदन में दूसरा गोल मेज सम्मे लन  हुआ. उसमें गांधी जी कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे थे. गांधी जी का कहना था कि उनकी पार्टी पूरे भारत का प्रतिनिधित्व करती है. इस दावे को तीन पार्टियों ने चुनौती दी. मुस्लिम लीग का कहना था कि वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के हित में काम करती है. राजे-रजवाड़ों का दावा था कि कांग्रेस का उनके नियंत्रण वाले भूभाग पर कोई अधिकार नहीं है. तीसरी चुनौती  विचारक बीआर आंबेडकर की तरफ से थी. उनका कहना था कि गांधी जी और कांग्रेस पार्टी निचली जातियों का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं.

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दूसरे गोलमेज सम्मेलन के बाद कम्युनल अवार्ड की घोषणा हुई
द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में हुए विचार विमर्श के फलस्वरूप ही कम्युनल अवार्ड की घोषणा की गई. इसके तहत भीमराव आंबेडकर द्वारा उठाई गयी राजनीतिक प्रतिनिधित्व की मांग को मानते हुए दलित वर्ग को दो वोटों का अधिकार मिला. एक वोट से दलित अपना प्रतिनिधि चुनेंगे तथा दूसरे वोट से सामान्य वर्ग का प्रतिनिधि चुनेंगे. इस प्रकार दलित प्रतिनिधि केवल दलितों की ही वोट से चुना जाना था. दूसरे शब्दों में उम्मीदवार भी दलित वर्ग का तथा मतदाता भी केवल दलित वर्ग के ही. 

अनशन पर बैठ गए थे बापू
16 अगस्त 1932 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री रेम्मजे मैक्डोनल्ड ने सांप्रदायिक  पंचाट की घोषणा की. इसमें दलितों सहित 11 समुदायों को अलग निर्वाचक मंडल प्रदान किया गया. दलितों के लिए की गई अगल निर्वाचक मंडल की व्यवस्था का ही गांधीजी ने विरोध किया. 20 सितंबर 1932 को गांधी जी ने अनशन प्रारंभ कर दिया. जब महात्मा गांधी की तबीयत बिगड़ने लगी, तो राजेंद्र प्रसाद, मदन मोहन मालवीय,  राजगोपालाचारी,घनश्याम दास बिड़ला इत्यादि नेताओं के प्रयासों से 24 सितंबर, 1932 को आंबेडकर जेल में उनसे मिले और उन्हें अपनी बात माननी पड़ी. 

ऐसे पूना पैक्ट पड़ा नाम 
गांधी जी और आंबेडकर के मध्य पूना समझौता हुआ. इसमें संयुक्त हिंदू निर्वाचन व्यवस्था के अंतर्गत दलितों के लिए स्थान आरक्षित रखने पर सहमति बनी. इस समझौते को ही पूना पैक्ट भी कहा जाता है. महात्मा गांधी और बीआर अंबेडकर के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था. इस समझौते के बाद गांधी जी ने अपना आमरण अनशन समाप्त कर दिया था, इस समझौते को इतिहास में 'पूना समझौते' के नाम से जाना जाता है.

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समझौते में किन बातों पर बनी सहमति
इस समझौते में आंबेडकर को कम्युनल अवॉर्ड में मिले पृथक निर्वाचन के अधिकार को छोड़ना पड़ा तथा संयुक्त निर्वाचन (जैसा कि आजकल है) पद्धति को स्वीकार करना पड़ा. साथ ही कम्युनल अवार्ड से मिली 71 आरक्षित सीटों की बजाय पूना पैक्ट में आरक्षित सीटों की संख्या बढ़ा कर 148 करवा ली गई. यानी इसके माध्यम से विधायिका में अनुसूचित जाति (और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सीटें आरक्षित की गई और विधायिका में इन वर्गों के लिए करीब 19 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की बात कही गई. साथ ही दलितों के लिए प्रत्येक प्रांत में शिक्षा अनुदान में पर्याप्त राशि नीयत करवाई गई और सरकारी नौकरियों से बिना किसी भेदभाव के दलित वर्ग के लोगों की भर्ती को सुनिश्चित किया गया.

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आज की प्रमुख घटनाएं

24 सितंबर, 1861 को मैडम भीकाजी कामा का जन्म हुआ था. वे भारतीय आज़ादी के आंदोलन में शामिल थीं और विदेशी ज़मीन पर पहली बार तिरंगा फहराने वाली महिला थीं. 
24 सितंबर को हर साल विश्व समुद्री दिवस मनाया जाता है. 
24 सितंबर, 2014 को इसरो के मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) ने मंगल ग्रह की कक्षा में प्रवेश किया था. 
24 सितंबर 2009 को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने ओशन सैट-2 समेत सात उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया था. 

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