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कौन थीं अहिल्याबाई? जिनके नाम पर महाराष्ट्र सरकार ने रखा इस शहर का नाम, क्या था सामाजिक योगदान

Ahilyabai Holkar 295th Birth Anniversary: अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी गांव में हुआ था. उनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गांव के पाटिल थे. पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने अहिल्याबाई के सम्मान में अहमदनगर का नाम बदलकर 'अहिल्या नगर' कर दिया है.

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अहिल्याबाई होलकर की 295वीं जयंती आज
अहिल्याबाई होलकर की 295वीं जयंती आज

Ahilyabai Holkar 295th Birth Anniversary: अहिल्याबाईआ होलकर, 17वीं शताब्दी की वह महिला जिन्होंने किसी राजघराने में जन्म नहीं लिया था फिर भी एक दिन उनके हाथ में एक राज्य की सत्ता आई और न सिर्फ कई सालों तक शासन किया बल्कि आज भी उनका नाम सम्मान से लिया जाता है. पिछले साल महाराष्ट्र सरकार ने उनके सम्मान में अहमदनगर का नाम बदलकर 'अहिल्या नगर' कर दिया है. अहिल्याबाई होलकर भारत के मालवा साम्राज्य की मराठा होलकर महारानी बनी थीं. आज (31 मई) महारानी अहिल्याबाई होलकर की जयंती है. आइये जानते हैं उनके बारे में.

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गांव के पाटिल थे अहिल्या के पिता
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर के छौंड़ी गांव में हुआ था. उनके पिता मंकोजी राव शिंदे, अपने गांव के पाटिल थे. उस दौर में महिलाओं स्कूल नहीं भेजा जाता था, लेकिन अहिल्याबाई के पिता ने उन्हें लिखने-पढ़ने लायक पढ़ाया. यह वो दौर था जब औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य पतन की ओर था और मराठा अपने साम्राज्य का विस्तार करने में जुटे हुए थे. मराठा सेनापतियों में से एक मल्हार राव होलकर थे. पेशवा बाजीराव ने मल्हार राव होलकर को मालवा की जागीर सौंपी, जिन्होंने अपने बाहुबल से इंदौर राज्य बसाया था.

जब सूबेदार मल्हार राव के इकलौते बेटे से हुई शादी
कहा जाता है कि मल्हार ऐसे गुणी बहू चाहते थे जो राजपाट चालने में उनके बेटे की मदद कर सके. जब एक शाम मल्हार चांऊड़ी गांव से गुजर रहे थे, तभी उन्होंने आरती के वक्त एक बच्ची का भजन गाते सुना. वे बच्ची से मिलने पहुंच गए, जहां वे अहिल्या के गुणों और संस्कारों से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने इकलौते बेटे खंडेराव की शादी अहिल्या से कर दी. 

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युद्ध में पति की मृत्यु के बाद संभाला राजपाट
अहिल्याबाई के पति खांडेराव होलकर 1754 के कुम्भेर युद्ध में शहीद हुए थे. 12 साल बाद उनके ससुर मल्हार राव होलकर की भी मृत्यु हो गई. इसके एक साल बाद ही उन्हें मालवा साम्राज्य की महारानी का ताज पहनाया गया. वह हमेशा से ही अपने साम्राज्य को मुगल आक्रमणकारियों से बचाने की कोशिश करती रहीं, बल्कि युद्ध के दौरान वह खुद अपनी सेना में शामिल होकर युद्ध करती थीं. उन्होंने तुकोजीराव होलकर को अपनी सेना के सेनापति के रूप में नियुक्त किया था. 

अहिल्याबाई का योगदान
अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में लोगों के रहने के लिए बहुत सी धर्मशालाएं भी बनवाईं. ये सभी धर्मशालाएं उन्होंने मुख्य तीर्थस्थान जैसे गुजरात के द्वारका, काशी विश्वनाथ, वाराणसी का गंगा घाट, उज्जैन, नाशिक, विष्णुपद मंदिर और बैजनाथ के आस-पास ही बनवाईं. मुगल आक्रमणकारियों के द्वारा तोड़े हुए मंदिरों को देखकर ही उन्होंने सोमनाथ में शिवजी का मंदिर बनवाया. जो आज भी हिन्दुओं द्वारा पूजा जाता है. महारानी अहिल्याबाई ने अपने साम्राज्य महेश्वर और इंदौर में काफी मंदिरों का निर्माण भी किया था. इसके अलावा उन्होंने लोगों के लिए घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की. अपने जीवनकाल में ही इन्हें जनता ‘देवी’ समझने और कहने लगी थी. 13 अगस्त 1795 को 70 वर्ष की आयु में अहिल्याबाई की मृत्यु हो गई थी.

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