scorecardresearch
 

अजमेर शरीफ के नीचे हिंदू मंदिर? जिस किताब को बनाया जा रहा आधार उसमें क्या लिखा है

एक किताब की वजह से अजमेर शरीफ दरगाह इन दिनों सुर्खियों में हैं. दीवान बहादुर हर बिलास सारदा की पुस्तक 'अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' से मिली जानकारी के अनुसार अदालत में एक याचिका दायर की गई है, इसके तहत दरगाह का सर्वे कराने की मांग की गई है.

Advertisement
X
अजमेर शरीफ दरगाह की पुरानी तस्वीर
अजमेर शरीफ दरगाह की पुरानी तस्वीर

इन दिनों अजमेर शरीफ दरगाह फिर से चर्चा में आ गया है. इस बार इसकी वजह एक किताब बनी है, जो अजमेर पर केंद्रित है. दरअसल, स्थानीय अदालत ने दरगाह का सर्वेक्षण कराने को लेकर केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय, भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण (ASI) और अजमेर दरगाह समिति को नोटिस जारी किया है.  

Advertisement

दीवान बहादुर हर बिलास सारदा की पुस्तक 'अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' से मिली जानकारी के अनुसार अदालत में एक याचिका दायर की गई है. इसमें ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण अजमेर शरीफ दरगाह के सर्वेक्षण कराने की मांग की गई थी. अदालत की ओर से जारी नोटिस इसी याचिका का एक हिस्सा है.  

हर बिलास सारदा की किताब
हर बिलास सारदा की किताब में ऐसा उल्लेख है कि अजमेर शरीफ दरगाह जहां स्थित है, वहां पहले कभी हिंदू मंदिर हुआ करते थे.  ब्रिटिश काल में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति रहे हर बिलास सारदा, न्यायाधीश, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद के रूप में  जाने जाते हैं. उन्होंने 1910 में अपनी किताब प्रकाशित की थी. इसमें सारदा ने उस स्थान पर प्राचीन हिंदू मंदिरों के अस्तित्व का सावधानीपूर्वक वर्णन किया है, जहां अब अजमेर शरीफ दरगाह स्थित है.

Advertisement

महादेव के प्राचीन मंदिर का उल्लेख
उनकी किताब में ऐसा उल्लेख है कि कभी दरगाह परिसर में महादेव को समर्पित एक प्राचीन मंदिर  रहा होगा. अपने दस्तावेजीकरण में सारदा ने एक ब्राह्मण परिवार का उल्लेख किया है, जिन्हें दरगाह में घंटा बजाने के लिए नियुक्त किया गया था. उनका काम प्रतिदिन महादेव की प्रतिमा पर चंदन चढ़ाने का था. 

महादेव को चंदन चढ़ाने वाले एक परिवार की भी है जिक्र
इसमें ये भी वर्णन है कि चन्दनखाने के पीछे एक द्वार है जो भूमिगत मार्ग से तहखाने तक जाता है. जहां ख्वाजा के अवशेष दफनाए गए थे. इसके ऊपर सबसे पहले  ईंटों से बना एक साधारण कच्चा मकबरा बनाया गया था. इसमें जिक्र है कि पुरानी परम्पराओं के अनुसार तहखाने के अंदर एक मंदिर में महादेव की मूर्ति है. इसी में ब्राह्मण परिवार द्वारा प्रतिदिन चन्दन चढ़ाया जाता था. इसे आज भी दरगाह द्वारा घड़ियाली (घंटी बजाने वाला) के रूप में रखा जाता है. सारदा ने तो यहां तक लिखा है कि पूरा दरगाह पुराने हिंदू मंदिरों के स्थल पर बनाया गया प्रतीत होता है.

अजमेर शरीफ दरगाह

दरगाह के नीचे मंदिरों के तहखाने होने का दावा 
उन्होंने उल्लेख किया है कि बलांद दरवाजा और भीतरी आंगन के बीच की जो जगह है, उसके नीचे पुरानी हिंदू मंदिरों के तहखाने हैं. इनमें से कई कमरे अब भी बरकरार हैं. वास्तव में पूरी दरगाह, जैसा कि शुरुआती मुसलमान शासकों के समय में आम था, पुराने हिंदू मंदिरों के स्थलों पर आंशिक रूप से परिवर्तित करके और आंशिक रूप से पहले से मौजूद संरचनाओं में जोड़कर बनाई गई प्रतीत होती है.

Advertisement

सरस्वती मंदिर के ऊपर है 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा'
हर बिलास सारदा ने अढ़ाई दिन का झोपड़ा  (मस्जिद) का भी उल्लेख अपनी किताब में किया है. उन्होंने लिखा है कि इसे भी मंदिर को तोड़कर बनाया गया था. उन्होंने बताया है कि यहां सरस्वती मंदिर था. इसकी तुलना उन्होंने एमपी के धार में स्थित राजा भोज की पाठशाला से की है. उन्होंने लिखा है कि यह इमारत एक ऊंची छत पर खड़ी थीऔर मूल रूप से पहाड़ी की खुरचनी चट्टान के सामने बनाई गई थी. इसमें पश्चिमी की तरफ सरस्वती मंदिर (शिक्षा का मंदिर) था और दक्षिण और पूर्व की ओर प्रवेश द्वार थे. आंतरिक भाग में 200 फीट गुणा 175 फीट का एक चतुर्भुज शामिल था.

चौहान सम्राट वीसलदेव ने कराया था शिक्षा के मंदिर का निर्माण
इस शिक्षा के मंदिर का निर्माण भारत के पहले चौहान सम्राट वीसलदेव ने लगभग 1153 ई. में करवाया था. इस इमारत की तुलना धार (मध्य प्रदेश) में स्थित लगभग इसी तरह की एक इमारत से की जाए, जिसे अब मस्जिद में बदल दिया गया है. उसे आज भी राजा भोज की पाठशाला (स्कूल) के रूप में जाना जाता है. 

धार में स्थित राजा भोज की पाठशाला से की इस मंदिर की तुलना
उन्होंने अपनी किताब में कहा है कि अगर इस शिक्षा के मंदिर की तुलना धार में स्थित राजा भोज की पाठशाला से करेंगे तो तो इसकी उत्पत्ति को लेकर सारे संदेह दूर हो जाएंगे. मीनारें, स्तंभों की उत्कृष्ट रूप से डिजाइन की गई नक्काशी और सजावटी पट्टियां तथा चतुर्भुज के आकार के अद्भुत मठ, जो मूल रूप से 770 फीट तक फैले हुए थे और जिनमें से अब केवल 164 फीट ही बचे हैं. गौर के अफगानों की अज्ञानतापूर्ण कट्टरता और धर्मांधता के कारण नष्ट हो गए.

Advertisement

गौरी के हमले के बाद मंदिरों को तोड़कर बनाया गया मस्जिद
अफगानों ने 1192 ई. में शहाबुद्दीन गौरी के नेतृत्व में अजमेर पर हमला किया था. इसके बाद उन्होंने इसे एक मस्जिद में बदलना शुरू कर दिया. परिवर्तन में मुख्य रूप से शानदार दीवार को जोड़ना शामिल था, जिसमें पश्चिमी भाग के सामने सात मेहराब थे.
 

Live TV

Advertisement
Advertisement