Antyodaya Diwas 2022: गरीब और दलित लोगों की आवाज़, राष्ट्रवादी नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय की आज, 25 सितंबर 2022 को 160वीं जयंती (Pandit Deendayal Upadhyaya's Birth Anniversary) है. भारतीय राजनीति के इतिहास में प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती को हर साल अंत्योदय दिवस (Antyodaya Diwas) के तौर पर मनाया जाता है. वे भारतीय जन संघ (BJS) के सह-संस्थापक और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के विचारक थे.
क्या है अंत्योदय दिवस?
अंत्योदय शब्द का मतलब उत्थान है, जो समाज में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों के उत्थान को समर्पित है. इस दिन का उद्देश्य भारत के गरीब और पिछड़े लोगों के विकास की ओर ध्यान खींचना है. साथ ही इस दिन समाज और राजनीति में उपाध्याय के योगदान के लिए याद करने के लिए भी मनाया जाता है.
कैसे शुरू हुआ अंत्योदय दिवस?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर 2014 को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 98वीं जयंती के अवसर पर 'अंत्योदय दिवस' की घोषणा की गई थी, जिसे 25 सितंबर 2015 से आधिकारिक तौर पर हर साल मनाया जा रहा है. बता दें कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने ही सबसे पहले अंत्योदय का नारा दिया था.
पंडित दीनदयाल उपाध्याय से जुड़ी जरूरी बातें-
1. पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को, मथुरा जिले के फराह शहर के पास चंद्रभान गांव में हुआ था, जिसे अब दीनदयाल धाम के नाम से जाना जाता है.
2. उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद था, जो एक ज्योतिषी थे जबकि माता का नाम रामप्यारी था.
3. जब दीनदयाल उपाध्याय 8 साल के थे तब उनके माता-पिता दोनों की मृत्यु हो गई और उसका पालन-पोषण उसके मामा ने किया.
4. दीनदयाल उपध्याय ने राजस्थान के हाई स्कूल मैट्रिक किया, 1939 में पिलानी के बिड़ला कॉलेज से बी.ए., सनातन धर्म कॉलेज, कानपुर से अपनी इंटर की पढ़ाई की. आगे आगरा के सेंट जॉन्स कॉलेज में मास्टर डिग्री के लिए दाखिला लिया लेकिन पूरी नहीं कर पाए.
5. 1940 के दशक में उन्होंने हिंदुत्व राष्ट्रवाद की विचारधारा के प्रसार के लिए लखनऊ से मासिक राष्ट्रीय धर्म की शुरुआत की.
6. उन्होंने पांचजन्य और दैनिक स्वदेश भी शुरू किया था.
7.1942 में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्णकालिक कार्यकर्ता के रूप में शामिल हो गए, जिन्हें प्रचारक के नाम से जाना जाता है.
8. 1951 में जब भारतीय जनसंघ की स्थापना हुई, तब वह उत्तर प्रदेश की भारतीय जनसंघ शाखा (BJS) के पहले महासचिव बने.
9. अपनी सभी संगठनात्मक क्षमताओं के अलावा वे अपने दार्शनिक और साहित्यिक कार्यों के लिए भी जाने जाते थे.
10. 11 फरवरी 1968 की रात पंडित दीनदयाल उपाध्याय का आकस्मिक निधन हो गया था.