Bhikaiji Cama 161th Birth Anniversary: भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़ी उन चुनिंदा शख्सियतों में से एक भीकाजी कामा की आज, 24 सितंबर 2022 को 161वीं जयंती (Bhikaiji Cama Birth Anniversary) है. उनका जन्म 24 सितंबर 1861 को गुजरात के नवसारी में रहने वाले एक पारसी परिवार में हुआ था. मैडम कामा के पिता प्रसिद्ध व्यापारी थे. उनकी पढ़ाई इंग्लिश मीडियम से हुई थी. मैडम भीकाजी कामा के जीवन की कहानी बेहद ही दिलचस्प है. उन्होंने आज से 115 साल पहले विदेश में भारत का पहला झंडा फहराया था.
दरअसल, 7 अगस्त 1906 को पहली बार भारत का गैर आधिकारिक राष्ट्रीय ध्वज पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) कलकत्ता (अब कोलकाता) में फहराया गया था, लेकिन इसके ठीक एक साल बाद 22 अगस्त 1907 को भीकाजी कामा ने विदेश में भारत का झंडा फहराया दिया था. जर्मनी के स्टुटगार्ट शहर में इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस का आयोजन किया जा रहा था. इस आयोजन कई देशों के लोग शामिल हुए थे, सभी ने अपने देश का झंडा लगाया लेकिन भारत के झंडे के स्थान पर ब्रिटिश झंडा लगा था.
विदेश में झंडा फहराकर दिया जोरदार भाषण
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, भीकाजी कामा को भारत के झंडे के स्थान ब्रिटिश झंडा स्वीकार नहीं हुआ. उन्होंने तुरंत भारत का एक नया झंडा बनाया और सभा में फहराया. झंडा फहराते हुए भीकाजी कामा ने कहा कि ये भारत का झंडा है जो भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है. झंडा फरहाने के बाद उन्होंने एक शानदार भाषण दिया जिसमें कहा था - "ऐ संसार के कॉमरेड्स, देखो ये भारत का झंडा है, यही भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है, इसे सलाम करो.
कैसा था भीकाजी कामा द्वारा बनाया झंडा
भीकाजी कामा द्वारा फहराया गया भारत का झंडा आज के तिरंगे झंडे से बिल्कुल अलग था. उनके झंडे में हरे, पीले और लाल रंग की तीन पट्टियां थीं. सबसे उपर हरे रंग की पट्टी में आठ कमल के फूल बने थे जो भारत के आठ प्रांतों को दर्शाते थे. बीच में पीले रंग की पट्टी थी जिस पर वंदे मातरम लिखा था और सबसे नीचे लाल रंग की पट्टी थी जिस पर सूरज और चांद बने हुए थे. अब ये झंडा पुणे की केसरी मराठा लाइब्रेरी में संरक्षित करके रखा गया है.
भारत की स्वतंत्रता के लिए विदेशों में चलाया अभियान
भीकाजी कामा की शादी साल 1885 में एक वकील रुस्तम के. आर. कामा से हुई थी. उन्होंने लंदन, जर्मनी, अमेरिका समेत कई देशों में घूम-घूमकर भारत की स्वतंत्रता के लिए अभियान चलाया. उन्होंने न सिर्फ भारत में ब्रिटिश राज के बारे में को बताया बल्कि देश से बाहर रहकर भी भारतीय क्रांतिकारियों की पूरी मदद की. उनके लेख और भाषण ने क्रांतिकारियों को प्रेरणा दी.
... और 'वंदे मातरम' कहकर दुनिया से विदा हो गईं मैडम कामा
साल 1935 में भीकाजी कामा भारत लौटीं. उनकी तबियत ठीक नहीं थी लेकिन उस वक्त भी देश प्रेम और स्वतंत्रता हासिल करने का जोश कम नहीं था. अपने आखिरी समय में भी देश को याद किया है. बताया जाता है कि उनके आखिरी शब्द 'वंदे मातरम' थे. 13 अगस्त 1936 को मुंबई के पारसी जनरल अस्पताल में मैडम कामा का निधन हो गया.