हमारे आसपास डॉग लवर्स की कमी नहीं है. लोग शौकिया अपने घरों में कुत्ते पालते हैं, वहीं कुछ लोग सड़कों पर पलने वाले कुत्तों को भी खाना खिलाते हैं. वहीं बड़ी संख्या में ऐसे लोग भी हैं जो कुत्तों से खौफ खाते हैं. उन्हें कुत्तों का इस कदर खौफ होता है कि वो सड़क पर कुत्ता देखकर कांप जाते हैं. यही नहीं वो अपने उन तमाम दोस्तों या रिश्तेदारों के घर जाने से बचते हैं, जिनके यहां कुत्ता पला है. आइए जानते हैं क्या होता है साइनोफोबिया, इसकी पहचान कैसे होती है, और क्या होता है इसका इलाज.
डॉक्टर्स कहते हैं कि जिस तरह आजकल डॉग बाइट के मामले बढ़ रहे हैं, साइनोफोबिया के मामले भी साथ-साथ बढ़ रहे हैं. नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार 100 वयस्कों और 30 बच्चों में कुत्तों से भय की वजह जानने के लिए प्रश्नावली पर जवाब मांगे गए. कुत्ते से भयभीत होने वाले वयस्कों से उनका डर कब और कैसे पैदा हुआ, उस उत्पत्ति को याद करने के लिए कहा गया. इन्होंने जो कंडीशन बताई वो कुल मिलाकर भयभीत और गैर-भयभीत ग्रुप द्वारा रिपोर्ट किए गए हमलों की आवृत्ति में कोई अंतर नहीं पाया गया. हां इन डरने वाले वयस्कों और बच्चों या उनके परिचितों के साथ ऐसी घटनाएं हुईं थीं जिसमें कुत्ते का एक या इससे अधिक बार हमला शामिल था. जो लोग नहीं डरते थे, उनमें से ज्यादातर ने कोई ऐसा हमला फेस नहीं किया था जब उनके मन के कोने में कोई खौफ घर कर गया हो.
क्यों होता है साइनोफोबिया
जाने माने न्यूरो साइकेट्रिस्ट डॉ सत्यकांत त्रिवेदी कहते हैं कि कई बार जानवरों के हिंसक व्यवहार का लोगों के मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है. ऐसे लोगों में न सिर्फ साइनो फोबिया के लक्षण उभरते हैं बल्कि उन्हें एंजाइटी और पोस्ट ट्रॉमैटिक डिसऑर्डर भी हो सकता है. मेरे सामने ऐसे कई केस आए हैं जिसमें अभिभावकों ने कहा है कि उनका बच्चा घर से अकेले नहीं निकलना चाहता. वो स्कूल जाने के नाम पर बेचैन हो जाता है, उसके शरीर में कंपकपी होती है, वो कुत्ते की आवाज दूर से सुनकर भी डरता है. यही नहीं कई वयस्क भी इस तरह के फोबिया को रिपोर्ट करा चुके हैं.
ये होते हैं लक्षण
डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि साइनोफोबिया एक ऐसा डर है जो अक्सर बचपन में दिमाग में घर कर लेता है. ऐसे लोगों ने जीवन में कभी न कभी ऐसी अप्रिय घटना का सामना किया होता है जो उनके जेहन में बुरी याद के तौर पर है. ऐसे में उन्हें कुत्ता सामने दिखते ही पैनिक अटैक होने लगता है. उन्हें बेचैनी, हार्ट बीट बढ़ जाना, कंपकपी लगना, पसीने आना जैसे कई लक्षण आने लगते हैं. उन्हें यह पता होता है कुत्ता नहीं काटेगा, फिर भी डर के प्रेशर से बच नहीं पाते.
क्या होता है इसका इलाज
डॉ त्रिवेदी कहते हैं कि इस फोबिया के इलाज में दो थेरेपी सबसे कारणगर साबित होती हैं. पहली है कॉग्निटिव बिहैवियर थेरेपी जिसके जरिये व्यक्ति के मन से कुत्ते का भय हटाने के लिए उनकी काउंसिलिंग की जाती है, वहीं दूसरी है एक्सपोजर थेरेपी जिसमें व्यक्ति को कुत्ते या किसी भी पालतू जीव के छोटे से बच्चे के साथ रखने की कोशिश की जाती है. यदि वो तैयार हो जाता है तो वो उसके साथ रहकर मन में पशुओं के प्रति पनपे हिंसात्मक और हमलावर होने की भावना को धीरे धीरे कम कर सकता है.