दिये जलाना, घरों पर रंगबिरंगी झालरें लगाना और पटाखे जलाना दिवाली के त्योहार का अहम हिस्सा है. ज्यादातर लोग दिवाली में पटाखे जलाकर खुशी मनाते हैं. लेकिन जिस तरह प्रदूषण का खतरा बढ़ता जा रहा है, उससे सरकारें अलर्ट हैं और लोग जागरूक हो रहे हैं. प्रदूषण के खतरे को देखते हुए कहीं पटाखों पर पूरी तरह बैन है तो कुछ राज्यों में सिर्फ ग्रीन पटाखे जलाने की अनुमति है. दिल्ली में पटाखों को जलाने, बेचने या रखने पर पूरी तरह बैन है. वहीं, पंजाब में ग्रीन पटाखे फोड़ने की अनुमति दी है. यह निर्देश राज्य के पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने जारी किया है. ग्रीन क्रैकर्स या हरे पटाखे कम प्रदूषण फैलाते हैं. इन पटाखों में ऐसे कच्चे माल का उपयोग होता है जो प्रदूषण कम फैलाने में मदद करते हैं. आइए जानते हैं क्यों और कैसे अलग होते हैं ग्रीन पटाखे.
क्या होते है ग्रीन पटाखे?
दरअसल, ग्रीन पटाखों को बनाने में फ्लावर पॉट्स, पेंसिल, स्पार्कल्स और चक्कर का इस्तेमाल किया जाता है. यही वजह है कि ये पटाखे वायु को कम प्रदूषित करते हैं. ग्रीन पटाखे ना सिर्फ आकार में छोटे होते हैं, बल्कि इन्हें बनाने में रॉ मैटीरियल (कच्चा माल) का भी कम इस्तेमाल होता है. इन पटाखों में पार्टिक्यूलेट मैटर (PM) का विशेष ख्याल रखा जाता है ताकि धमाके के बाद कम से कम प्रदूषण फैले.
कैसे करें ग्रीन पटाखों की पहचान?
ग्रीन क्रैकर्स से करीब 20 प्रतिशत पार्टिक्यूलेट मैटर निकलता है जबकि 10 प्रतिशत गैसें उत्सर्जित होती है. ये गैस पटाखों की संरचना पर आधारित होती हैं. ग्रीन पटाखों के बॉक्स पर बने क्यूआर कोड को NEERI नाम के एप से स्कैन करके इनकी पहचान की जा सकती है.
नॉर्मल पटाखों से कैसे अलग होते हैं ग्रीन पटाखे?
नॉर्मल पटाखों में बारूद और अन्य ज्वलनशील रसायन होते हैं जो जलाने पर फट जाते हैं और भारी मात्रा में प्रदूषण फैलाते हैं. वहीं ग्रीन पटाखों में हानिकारक केमिकल नहीं होते हैं और वायु प्रदूषण कम होता है. पारंपरिक पटाखों की तुलना में ग्रीन पटाखे कम हानिकारक होते हैं और वायु प्रदूषण को कम करते हैं. ग्रीन पटाखों में आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले प्रदूषणकारी केमिकल जैसे एल्यूमीनियम, बेरियम, पोटेशियम नाइट्रेट और कार्बन को या तो हटा दिया गया है या उत्सर्जन को 15 से 30% तक कम कर दिया जाता है.