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महात्मा गांधी ने क्यों कर दिया था साबरमती आश्रम का त्याग? जानें- इस घर का इतिहास

गुजरात के अहमदाबाद में स्थित साबरमती आश्रम भारत की स्वतंत्रता के आंदोलन के मुख्य केंद्रों में से एक था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 12 मार्च 2024 को 1200 करोड़ रुपये की लागत से राज्य और केंद्र सरकारों द्वारा संयुक्त रूप से कार्यान्वित साबरमती आश्रम की विकास परियोजना की आधारशिला रखेंगे. आइए- इस आश्रम से जुड़ी खास बातें जानते हैं.

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Sabarmati Ashram History
Sabarmati Ashram History

Sabarmati Ashram Gujrat: गुजरात में साबरमती नदी के पास बना साबरमती आश्रम भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का घर कहलाता है. 12 मार्च 2024 को पीएम मोदी इसकी विकास परियोजना की आधारशिला रखेंगे. वर्षों बाद आजादी के लड़ाई में मुख्य हिस्सा रहे इस आश्रम के विकास का काम होगा. साबरमती आश्रम भारत में गुजरात के प्रशासनिक केंद्र अहमदाबाद के पास साबरमती नदी के किनारे बना हुआ है. इस आश्रम का इतिहास हर उस कदम की याद दिलाता है जो गांधी जी ने देश की आजादी के लिये उठाए हैं. आइए- जानते हैं इस आश्रम का इतिहास...

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कब और क्यों रखी गई थी साबरमती आश्रम की नींव

गांधीजी ने साल 1914 में दक्षिण अफ्रीका में आजादी का आंदोलन किया था. इसके बाद वे भारत लौटे और 25 मई, 1915 को अहमदाबाद के कोचरब क्षेत्र में उनका पहला आश्रम बनाया गया था. इस आश्रम का निर्माण साबरमती नदी के किनारे खुली और बंजर जमीन पर किया गया था. इस आश्रम को गांधी जी का घर कहा जाता है, यहां वे रहते थे, इसके आस-पास खेती-बाढ़ी, पशु-पालन आदी चीजें किया करते थे. साल 1930 तक गांधी जी का घर यही था, इसी आश्रम से स्वतंत्रता की लड़ाई शुरू हुई थी. साबरमती नदी के पास होने के कारण इस आश्रम का नाम बाद में साबरमती आश्रम कर दिया गया था.

साबरमती आश्रम से शुरू हुई थी सत्यागृह की शुरूआत

गांधी जी ने साबरमती आश्रम में ही सत्यागृह आंदोलन की शुरूआत की थी. इसका निर्माण एक ऐसे संस्थान के रूप में करवाया गया था जो सत्य की खोज जारी रखे और अहिंसक कार्यकर्ताओं को इकट्ठा करे, जो भारत को आजादी दिलाने में एक साथ सामने आ सकें. गांधी आश्रम साबरमती की ऑफिशियल वेबसाइट के अनुसार आश्रम में रहते समय गांधीजी ने एक ऐसी पाठशाला बनाई थी जहां लोगों को काम करने, खेती-बाढ़ी करने और आत्मनिर्भर बनाने की ट्रेनिंग दी जाती थी.

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साबरमती आश्रम से निकली थी दांडी मार्च

साबरमती आश्रम से ही दांडी मार्च की शुरूआत हुई थी. 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने साबरमती आश्रम से 241 मील लम्बी दांडी यात्रा 78 साथियों के साथ शुरू की थी ताकी ब्रिटिश के नमक कानून को तोड़ा जा सके. यह एक हिंसात्मक आंदोलन और पद यात्रा थी जो साबरमती आश्रम से शुरू होकर समुद्र किनारे बसे दांडी तक चली थी. दरसअल, अंग्रेजों के राज में भारतीय के नमक इकट्ठा करने और बेचने की मनाही थी. इसके अलावा भरतीयों से ही नमक लेने पर भारी टैक्स वसूला जाता था. यही कारण था कि गांधी जी से अंग्रेजों के खिलाफ नमक सत्याग्रह रैली निकाली थी.

कभी वापस नहीं लौटे गांधी जी

इसके बाद अंग्रेजों ने सभी सत्यागृही को जेल में डालकर उनकी संपत्ति जप्त कर ली थी, इसके बाद गांधी जी ने कहा कि साबरमती आश्रम भी जप्त कर लिया जाये लेकिन अंग्रेजों ने ऐसा नहीं किया. गांधी जी ने फिर यह शपत ली थी कि जब देश आजाद हो जायेगा उसके बाद ही वे इस आश्रम में कदम रखेंगे. 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ था इसके कुछ महीनों बाद 30 जनवरी 1948 को गांधी जी की हत्या कर दी गई थी और गांधी जी फिर कभी साबरमती आश्रम वापस नहीं आए.

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