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Today In History: सुप्रीम कोर्ट का वो ऐतिहासिक फैसला, जिससे खत्‍म हुआ 150 साल पुराना टैबू

Today In History 06 September: भारतीय दंड संहिता में ब्रिटिश काल से ही सेक्‍शन 377 के अंतर्गत समलैंगिक संबंध अपराध था. वर्ष 1862 से लागू इस फैसले के खिलाफ LGBTQ समुदाय ने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया. 18 वर्ष के लंबे संघर्ष के बाद आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने सहमति से समलैंगिक यौन संबंधों को कानूनी मान्‍यता दी.

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Section 377 Abolished (Representational Image)
Section 377 Abolished (Representational Image)

06 September History: होमोसेक्‍सुएलिटी को लेकर देश में फैले वर्षों पुराने टैबू को आज ही दिन सुप्रीम कोर्ट ने खत्‍म किया था. 06 सितंबर 2018 को एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट (SC) ने कहा था कि सहमति से वयस्क समलैंगिक संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा. कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकता स्वाभाविक है और लोगों का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है. देश की शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के इस फैसले ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की ब्रिटिश काल की धारा 377 को खत्‍म किया. इससे पहले तक समलैंगिक यौन संबंधों को दंडनीय अपराध माना जाता था. 

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150 वर्षों से पुराना था नियम
भारतीय दंड संहिता में ब्रिटिश काल से ही सेक्‍शन 377 के अंतर्गत समलैंगिक संबंध अपराध था. वर्ष 1862 से लागू इस फैसले के खिलाफ LGBTQ (लेस्बियन, गे, बाईसेक्‍शुअल, ट्रांस्‍जेंडर, क्‍वीर) समुदाय ने कानूनी लड़ाई लड़ने का फैसला किया और आखिरकार जीत मिली. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद से अब सहमति से समलैंगिक यौन संबंध बनाना धारा 377 के तहत अपराध नहीं है. कोर्ट का यह फैसला व्यक्तिगत स्वतंत्रता की दिशा में एक नई सुबह की शुरुआत है. इस फैसले से LGBTQ समुदाय की लंबी लड़ाई खत्‍म हुई और उन्‍हें समाज में आम लोगों जैसे अधिकार मिले. 

कोर्ट ने माना था संवैधानिक अधिकारों का हनन
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था, "बदलते समय की आवश्यकता के अनुसार, कानून की व्याख्या की जानी चाहिए. एक निजी स्थान में वयस्कों के बीच सहमति से संबंध, जो महिलाओं या बच्चों के लिए हानिकारक नहीं है, उसे अपराध नहीं माना जा सकता, क्योंकि यह व्यक्तिगत पसंद का मामला है. धारा 377 के तहत लोगों से भेदभाव होता है और यह संवैधानिक सिद्धांतों का उल्लंघन है."

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लंबी लड़ी गई कानूनी लड़ाई
धारा 377 का मुद्दा पहली बार एक गैर सरकारी संगठन, नाज़ फाउंडेशन द्वारा उठाया गया था. संस्‍था ने 2001 में दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसने सेक्‍शन 377 के दंडात्मक प्रावधान को 'अवैध' मानते हुए समलैंगिकवयस्कों के बीच यौन संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था. कुछ धार्मिक संगठनों की आपत्ति के बाद उच्च न्यायालय के 2009 के इस फैसले को 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया और मामले को संसद में विचार के लिए छोड़ दिया. जुलाई 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए एक बेंच गठित की और आखिरकार, 06 सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर अंतिम फैसला सुनाया था.

 

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