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जब जमीन को काटकर जोड़े गए थे दो सागर, आज के दिन ही खुली थी स्वेज नहर

आज के दिन ऐसा कमाल हुआ था, जिसे अमल करना काफी मुश्किल रहा था. आज ही दो महादेशों को जोड़ने वाली और दो सागरों को विभाजित करने वाली विशाल भूमि को काटकर तैयार किए गए मानव निर्मित समुद्री मार्ग को खोला गया था. सभी लोग इसे स्वेज नहर के रूप में जानते हैं.

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स्वेज नहर (Reuters)
स्वेज नहर (Reuters)

17 नवंबर 1869 को ही पहली बार नहर खुली थी. इस नहर ने अफ्रीका और एशिया को विभाजित कर दिया. वहीं नहर के निर्माण से भूमध्य सागर और लाल सागर आपस में जुड़ गए. इसके बाद से पूरी दुनिया का समुद्री यातायात ही बदल गया.

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स्वेज नहर से पहले यूरोपीय देशों को एशियाई देशों जैसे भारत, चीन और अन्य तटों पर जाने के लिए पूरे अटलांटिक महासागर का चक्कर लगाकर अफ्रीका के अंतिम छोर कैप ऑफ गुड होप से होते हुए हिंद महासागर और अरब सागर जाना होता था. इसमें 6000 मील का अतिरिक्त चक्कर लगाना पड़ता था. 

एशिया और पूर्वी अफ्रीका का खुल गया सीधा मार्ग
स्वेज  नहर के कारण यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका का सरल और सीधा मार्ग खुल गया और इससे लगभग 6,000 मील की दूरी की बचत हो गई. इससे अनेक देशों, पूर्वी अफ्रीका, ईरान, अरब, भारत, पाकिस्तान, सुदूर पूर्व एशिया के देशों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के साथ व्यापार में बड़ी सुविधा हो गई है और व्यापार बहुत बढ़ गया.

भव्य समारोह में हुआ उद्घाटन
भूमध्य सागर और लाल सागर को जोड़ने वाली स्वेज नहर का उद्घाटन भव्य समारोह में किया गया, जिसमें नेपोलियन तृतीय की पत्नी फ्रांसीसी महारानी यूजनी भी उपस्थित थीं. 1854 में, काहिरा में पूर्व फ्रांसीसी वाणिज्यदूत फर्डिनेंड डी लेसेप्स ने मिस्र के ओटोमन गवर्नर के साथ स्वेज के इस्तमुस के पार 100 मील लंबी नहर बनाने के लिए समझौता किया.

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शुरुआत में सिर्फ फावड़े से मजदूरों ने शुरू की थी खुदाई
इंजीनियरों की अंतरराष्ट्रीय टीम ने निर्माण योजना तैयार की और 1856 में स्वेज नहर कंपनी का गठन किया गया और काम पूरा होने के बाद 99 साल तक नहर के संचालन का अधिकार दिया गया.निर्माण अप्रैल 1859 में शुरू हुआ. पहले खुदाई हाथ से की गई, जिसमें मजदूरों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कुदालियां और फावड़े थे. बाद में ड्रेजर और स्टीम फावड़े के साथ यूरोपीय श्रमिक आए.

पहले सिर्फ 25 फीट गहरी थी स्वेज नहर
श्रमिक विवादों और हैजा महामारी ने निर्माण कार्य बीच में धीमा हो गया. फिर भी 17 नवंबर, 1869 को स्वेज नहर को नौवहन के लिए खोल दिया गया. जब इसे खोला गया, तब स्वेज नहर केवल 25 फीट गहरी, तल पर 72 फीट चौड़ी और सतह पर 200 से 300 फीट चौड़ी थी.

शुरुआत में नहर बनाने वाली कंपनी के पास था इसके संचालन का अधिकार
नतीजतन, संचालन के अपने पहले पूरे वर्ष में 500 से भी कम जहाजों इधर से गुजर पाए. फिर 1876 में बड़े सुधार शुरू हुए और नहर जल्द ही दुनिया की सबसे अधिक यात्रा की जाने वाली शिपिंग लेन में से एक बन गई. 1875 में, ग्रेट ब्रिटेन स्वेज नहर कंपनी का सबसे बड़ा शेयरधारक बन गया, जब उसने मिस्र के नए ओटोमन गवर्नर के शेयर खरीदे.

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फिर ब्रिटेन ने जमा लिया कब्जा
सात साल बाद, 1882 में, ब्रिटेन ने मिस्र पर आक्रमण किया. इससे देश पर लंबे समय तक कब्ज़ा रहा. 1936 की एंग्लो-मिस्र संधि ने मिस्र को लगभग स्वतंत्र बना दिया, लेकिन ब्रिटेन ने नहर की सुरक्षा के अधिकार सुरक्षित रखे. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद , मिस्र ने स्वेज नहर क्षेत्र से ब्रिटिश सैनिकों को निकालने के लिए दबाव डाला और जुलाई 1956 में मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर ने नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया.

दूसरे विश्व युद्ध के बाद मिस्र कब्जे में आया स्वेज नहर
इससे उम्मीद थी कि नील नदी पर एक विशाल बांध के निर्माण के लिए टोल वसूला जा सकेगा. जवाब में अक्टूबर के अंत में इजरायल ने आक्रमण किया और नवंबर की शुरुआत में ब्रिटिश और फ्रांसीसी सैनिकों ने नहर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया. संयुक्त राष्ट्र के दबाव में, दिसंबर में ब्रिटेन और फ्रांस वापस चले गए और मार्च 1957 में इज़राइली सेनाएं भी चली गईं. उस महीने, मिस्र ने नहर पर फिर नियंत्रण कर लिया और इसे वाणिज्यिक शिपिंग के लिए फिर से खोल दिया.

8 सालों तक बंद रही स्वेज नहर
दस साल बाद, छह दिवसीय युद्ध और सिनाई प्रायद्वीप पर इजरायल के कब्जे के बाद मिस्र ने फिर से नहर बंद कर दी. अगले आठ वर्षों तक, स्वेज नहर, जो सिनाई को मिस्र के बाकी हिस्सों से अलग करती है, यहां मिस्र और इजरायली सेनाओं के बीच संघर्ष होता रहा. 1975 में, मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अल-सादात ने इजरायल के साथ बातचीत के बाद शांति के संकेत के रूप में स्वेज नहर को फिर से खोल दिया. आज दर्जनों जहाज प्रतिदिन नहर से गुजरते हैं, जो सालाना 300 मिलियन टन से अधिक माल ले जाते हैं.

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शुरुआती दिनों में सिर्फ दिन में ही होता था जहाजों का आवागमन
यह नहर आज 168 किमी लंबी, 60 मी चौड़ी और औसत गहरी 16.5 मी है. दस वर्षों में बनकर यह तैयार हो गई थी. पहले केवल दिन में ही जहाज नहर को पार करते थे पर 1887 ई. से रात में भी पार होने लगे. 1866 ई. में इस नहर के पार होने में 36 घंटे लगते थे पर आज 18 घंटे से कम समय ही लगता है. यह वर्तमान में मिस्र देश के नियंत्रण में है.

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प्रमुख घटनाएं 

17 नवंबर 1932 में तीसरे गोलमेज़ सम्मेलन की शुरुआत हुई थी. 

17 नवंबर 1966 में भारत की रीता फ़ारिया ने मिस वर्ल्ड का खिताब जीता था. वह मिस वर्ल्ड बनने वाली पहली एशियाई महिला थीं. 

17 नवंबर  1933 - अमेरिका ने सोवियत संघ को मान्यता देते हुए व्यापार के लिए सहमति दी।

17 नवंबर  1966 में सोवियत संघ ने अपना एक मानवरहित सुदूर नियंत्रित यान चंद्रमा की सतह पर उतारा था. 

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17 नवंबर  1989 में चेकोस्लोवाकिया में सरकार विरोधी प्रदर्शनों को पुलिस ने बेदर्दी से कुचला था.

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