जब भी कोई अपनी बात से पलट जाता है या किसी को देखकर बात से मुकर जाता है तो अक्सर हम ये कह देते हैं कि देखो कैसे गिररिट की तरह रंग बदल लिया. यूं तो ये एक मुहावरा है लेकिन गिरगिट असल में माहौल के अनुसार अपनी त्वचा का रंग बदल लेता है. ये बात भी सभी जानते होंगे लेकिन ऐसा कैसे होता है. आइये जानते हैं इसके पीछे की वजह.
ट्रांसपेरेंट होती है गिरगिट की स्किन
दरअसल गिरगिट की स्किन ट्रांसपेरेंट यानी पारदर्शी होती है और इसके नीचे रंग वाले कोश होते हैं. यही कोश गिरगिट का रंग बदल देते हैं, लेकिन कैसे? गिरगिट की पारदर्शी स्किन के नीचे पीले, काले और लाल रंग के पिगमेंट होते हैं. ये पिगमेंट दानेदार होते हैं. ये शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं. जब गिरगिट की कोशिकाएं सिकुड़ती हैं तो ये दाने एक जगह पर इकट्ठा हो जाते हैं. जिससे इसकी त्वचा का रंग काला हो जाता है और जब ये तितर-बितर हो जाते हैं तो रंग बदल जाता है. इन दाने, पिगमेंट या कोशिका से ही गिरगिट का रंग बदलता है. अब सवाल उठता है कि ऐसा कब होता है?
आवेग, प्रकाश और तापमान की वजह से बदलता है रंग
जब गिरगिट को गुस्सा आता है या डर लगता है तो उसका नर्वस सिस्टम इन कोशिकाओं को संदेश भेजता है और इससे गिरगिट का रंग काला हो जाता है. उत्तेजना और भय से त्वचा पर पीले धब्बे दिखाई देने लगते हैं. इसके अलावा तापमान से भी गिरगिट का रंग बदलता है. सूरज की गर्म रोशनी से गिरगिट काले रंग का हो जाता है लेकिन अंधेरे में गर्मी से ये हरे रंग का हो जाता है.
वहीं, कम तापमान और अंधेरे में इसकी त्वचा का रंग पीला हो जाता है. हम ये कह सकते हैं कि आवेग, प्रकाश और तापमान की वजह से ये कोशिकाएं सिकुड़ती और फैलती हैं, जिससे गिरगिट का रंग बदलता है.