Independence Day 2022 Women Freedom Fighters: देश आजादी के 75 साल के जश्न में डूबा है. यह उन वीर सपूतों और वीरांगनाओं को याद करने का समय है जिन्होंने आजादी के लिए एक पल भी अपनी जान की परवाह नहीं की. ऐसे कई देशभक्त रहे जिन्होंने न सिर्फ भारत की आजादी के लिए निडर होकर ब्रिटिश शासकों का सामना किया बल्कि उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया था. आज हम उन महिला फ्रीडम फाइटर्स के बारे में बता रहे हैं जिनकी देशभक्ति को हर कोई सलाम करता है. आजादी में इनका योगदान कभी नहीं भूला जा सकता है.
> कित्तूर की रानी चेनम्मा (जन्म-1778, मृत्यु-1929)
कित्तूर की रानी चेनम्मा ने रानी लक्ष्मी बाई से भी पहले अंग्रेजों का डटकर सामना किया था. उन्होंने कर्नाटक के कित्तूर में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई की पहल की थी.
> रानी लक्ष्मी बाई (जन्म 19 नवंबर 1828 - मृत्यु 18 जून 1858)
रानी लक्ष्मी बाई का नाम कौन नहीं जानता है, ऐसे न जाने कितनी और लड़कियां रही होंगी जो रानी लक्ष्मी बाई से प्रेरणा लेकर आजादी की लड़ाई में शामिल हुई होंगी. भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम (1857) में रानी लक्ष्मी बाई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाने थी. अंग्रेंज एक ही समय में उनके अप्रतिम शौर्य का गान और उन्हें रोके जाने पर विचार करते थे. वह अपनी वीरता के किस्सों को लेकर किंवदंती बन चुकी हैं.
> झलकारी देवी (जन्म-अज्ञात, मृत्यु-1857)
झांसी की एक और वीरांगना झलकारी देवी, जो रानी लक्ष्मी बाई के वेश में लड़ते हुए युद्ध भूमि में शहीद हुई थीं. वह झांसी राज्य के एक किसान सदोवा सिंह की बेटी थी. उनका जन्म रानी लक्ष्मी बाई से दो साल पहले (सन 1830) हुआ था. उनका अधिकांश जीवन जंगलों में बीता था.
> ऊषा मेहता (जन्म 25 मार्च 1920 - मृत्यु 11 अगस्त 2000)
सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन एक वीरांगना थी ऊषा मेहता, जिन्होंने आंदोलन के शुरुआती महीनों में कांग्रेस रेडियो के जरिए लोगों को बढ़-चढ़कर अंदोलन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया था. इन्हें 'सीक्रेट कांग्रेस रेडियो' के नाम से भी जाना जाता है. कुछ वक्त में वे अंग्रेजों की निगाह में आ गई थीं. इस रडियो के कारण ही उन्हें पुणे की येरवाड़ा जेल में रहना पड़ा था.
> सावित्रीबाई फुले (जन्म 3 जनवरी 1831 - मृत्यु 10 मार्च 1897)
सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली शिक्षिका भी कहा जाता है. देश के लिए उनका योगदान सहारनीय है. उन्होंने न सिर्फ लड़कों को पढ़ाने पर जोर दिया बल्कि बाल विवाह, छुआ-छूत, सती प्रथा जैसी कई कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी.
> कस्तूरबा गांधी (जन्म 11 अप्रैल 1869 - मृत्यु 22 फरवरी 1944)
महात्मा गांधी की आजीवन संगिनी कस्तूीरबा ने आजादी की लड़ाई में हर कदम पर अपने पति का साथ दिया था. वह कई बार स्वतंत्र रूप से और गांधीजी के मना करने के बावजूद संघर्ष किया और जेल भी गईं. वह एक दृढ़ आत्मशक्ति वाली महिला थीं.
> कमला नेहरू (जन्म 1 अगस्त 1899- मृत्यु 28 फरवरी 1936)
कमला नेहरू, पंडित जवाहर लाल नेहरू की पत्नी थीं. कम उम्र से ही वे स्वतंत्रता की लड़ाई में बढ़-चढ़कर शामिल होती थीं. ब्रिटिश सरकार का सामना करने के लिए धरने, जुलूस और भूख हड़ताल उनके हथियार थे. इन वजहों से वे कई बार जेल भी गईं. असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन में उन्होंने आगे बढ़कर शिरकत की थी.