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क्‍या आप जानते हैं जादुई नंबर 6174 की पहेली? इस भारतीय गणितज्ञ ने की खोज

D R Kaprekar: कोई 4 अंकों की संख्‍या लीजिये जिसके सभी अंक अलग-अलग हों. अब इसके अंकों को बढ़ते से घटते और घटते से बढ़ते क्रम में लगाइये. इन दोनो संख्‍याओं का अंतर निकालिए. इसी प्रक्रिया को दोहराइये. आपका जवाब आएगा 6174.

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D R Kaprekar
D R Kaprekar

D R Kaprekar: दत्तात्रेय रामचंद्र कापरेकर, जिन्हें डी आर कापरेकर के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय गणितज्ञ थे. उन्हें विभाजन संख्याओं (partitioning numbers) के नंबर सिस्‍टम और कापरेकर कॉन्‍स्‍टैंट और कापरेकर संख्याओं पर उनके काम के लिए जाना जाता है.

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कौन थे डी आर कापरेकर?
डी आर कापरेकर का जन्म 17 जनवरी, 1905 को दहानू, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्हें छोटी उम्र से ही गणित में रुचि थी. वे मुंबई विश्वविद्यालय में पढ़ाई के लिए गए. अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने एक शिक्षक के रूप में और बाद में भारत सरकार में एक सिविल सर्वेंन्‍ट के रूप में काम किया.

पार्टीशनिंग नंबर्स पर किया काम
1930 के दशक में, कापरेकर ने विभाजन संख्याओं के नंबर सिस्‍टम पर काम करना शुरू किया. यह सिस्‍टम उन तरीकों से संबंधित है जिनमें संख्याओं को छोटे भागों में विभाजित किया जा सकता है. उन्होंने कापरेकर कॉन्‍स्‍टैंट की भी खोज की. कापरेकर कॉन्‍स्‍टैंट एक ऐसी संख्या है, जो किसी संख्या को बार-बार विभाजित करने और जोड़ने पर स्थिर रहती है. यह कॉन्‍स्‍टैंट 6174 है, और इसे कापरेकर कॉन्‍स्‍टैंट के रूप में जाना जाता है.

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क्‍यों खास है कापरेकर कॉन्‍स्‍टैंट 6174?
कोई 4 अंकों की संख्‍या लीजिये जिसके सभी अंक अलग-अलग हों (जैसे 1984). अब इसके अंकों को बढ़ते से घटते और घटते से बढ़ते क्रम में लगाइये (9841 और 1489). इन दोनों संख्‍याओं का अंतर निकालिए (8352). इसी प्रक्रिया को दोहराइये (8532 - 2358). आपका जवाब आएगा 6174. ऐसा आप किसी भी संख्‍या का उदाहरण लेकर कर सकते हैं.

दशकों तक किया गणितज्ञों को प्रेरित
उन्‍होंने कापरेकर संख्याओं की भी खोज की. यह ऐसी संख्याएं हैं जिन्हें बार-बार विभाजित किया जा सकता है और कापरेकर कॉन्‍स्‍टैंट तक पहुंचने के लिए जोड़ा जा सकता है. इन संख्याओं में 495 और 6174 शामिल हैं. उन्‍होंने रीक्रिएशनल मैथ्‍मेटिक्‍स के क्षेत्र में भी योगदान दिया है, और उनका काम आज भी गणितज्ञों को प्रेरित करता है. उन्होंने कई मैग्‍जीन में अपने रीसर्च पेपर्स भी प्रकाशित किए. 17 जून 1986 को उनका निधन हो गया, लेकिन गणित में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा. 

 

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