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International Tiger Day 2022: शेर को पछाड़कर टाइगर कैसे बना राष्ट्रीय पशु, जानिए इसकी खास वजह

International Tiger Day: साल 1973 में शेर के स्थान पर राष्ट्रीय पशु के तौर पर अपनी जगह बनाने वाले टाइगर प्रजाति दुनिया में सबसे घातक, चालबाज और श‍िकारी माने जाते हैं. बता दें कि साल 1969 में वन्यजीव बोर्ड ने शेर को देश का राष्ट्रीय पशु घोषित किया. लेकिन फिर आख‍िर क्यों शेर की जगह बाघ को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया गया.

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बंगाल टाइगर
बंगाल टाइगर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • इंटरनेशनल टाइगर डे आज, जानिए- क्या हैं टाइगर की खासियतें
  • शेर की जगह राष्ट्रीय पशु घोष‍ित किए जाने की ये है कहानी

International Tiger Day 2022: आज इंटरनेशनल टाइगर डे है. अपने खास गुणों के चलते जंगल के बादशाह कहे जाने वाले टाइगर बिल्‍ली की करीब 36 से ज्‍यादा प्रजातियों में सबसे बडी बिल्‍ली होते हैं. साल 1973 में शेर के स्थान पर राष्ट्रीय पशु के तौर पर अपनी जगह बनाने वाले टाइगर प्रजाति दुनिया में सबसे घातक, चालबाज और श‍िकारी माने जाते हैं.

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बता दें कि साल 1969 में वन्यजीव बोर्ड ने शेर को देश का राष्ट्रीय पशु घोषित किया. लेकिन फिर आख‍िर क्यों शेर की जगह बाघ को राष्ट्रीय पशु का दर्जा दिया गया. किसी पशु को राष्ट्रीय पशु घोष‍ित करने के पीछे क्या पैरामीटर होते हैं. आइए जानें- क्या थी इसके पीछे की वजह.

शेर के लिए दिया था प्रस्ताव 

1972 में भारत के उस दौर के राष्ट्रीय पशु सिंह यानी शेर की जगह रॉयल बंगाल टाइगर ने ले ली थी. लेकिन साल 1972 तक शेर ही भारत देश का राष्ट्रीय पशु हुआ करता था. तब से राष्ट्रीय पशु बाघ है, लेकिन साल 2015 में झारखंड के राज्यसभा सांसद परिमाल नाथवानी ने नेशनल बोर्ड फॉर वाइल्ड लाइफ को प्रस्ताव देकर एक बाद बाघ की बजाय शेर को राष्ट्रीय पशु बनाने की राय दी थी, हालांकि ये प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाया. 

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शेर क्यों था राष्ट्रीय पशु 

वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ फैजाज़ खुद्सर ने aajtak.in से बातचीत में कहा कि कभी एश‍ियाई शेर या लायन भारत की खास पहचान के रूप में रहे हैं. खासकर अशोक के समय में एतिहासिक एंबलेम के तौर पर ये नजर आते रहे हैं. एक वक्त था जब ये मध्यप्रदेश, झारखंड, दिल्ली, हरियाणा और गुजरात में थे. फिर धीरे धीरे विभ‍िन्न कारणों से  इनका पर्यावास सिमटता गया. आज सिर्फ गुजरात के गिरवन में ही शेर पाए जाते हैं. 

वहीं भारतीय टाइगर या रॉयल बंगाल टाइगर को देखें तो आज विश्व में ये महत्वपूर्ण है क्योंकि अंतिम कड़ी है शेरों को बचाने की. भारतीय टाइगर का डिस्ट्रीब्यूशन देखें तो इनकी आज देश के 16 राज्यों में इनकी उपस्थ‍ित‍ि है जो कभी खत्म होती नजर आ रही थी. आज एक बार फिर मध्यप्रदेश टाइगर स्टेट बन गया. नेशनल वाइल्डलाइफ बोर्ड ने 1972 को टाइगर को राष्ट्रीय पशु के तौर पर घोष‍ित किया गया. 1972 में ही प्रोजेक्ट टाइगर  की शुरुआत की गई जो किसी बड़े जानवर को बचाने की महती परियोजना थी. 

जंगल कथा और चीता: भारतीय जंगलों का गुम शहजादा जैसी किताबें लिखने वाले कबीर संजय बताते हैं कि‍ भारत और एश‍िया में बंगाल टाइगर ही पाए जाते हैं. वो कहते हैं कि‍ बिल्‍ली की करीब 36 से ज्‍यादा प्रजाति होती हैं. इनमें सबसे बडी बिल्‍ली टाइगर है. भारत में बंगाल टाइगर, शेर से ज्‍यादा बडे आकर के होते हैं और वो अपने खास गुणों के चलते जंगल के बादशाह कहलाते हैं.

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दहाड़ है पहचान 

बंगाल टाइगर जंगलों में अपनी दहाड़ के लिए जाने जाते हैं. विशेषज्ञ बड़ी बिल्‍ल‍ियों में उन चार जानवरों को शामिल करते हैं जो दहाड़ सकते हैं. इनमें शेर, बाघ, जगुआर और तेंदुआ जाते हैं. बंगाल टाइगर की बात करें तो इनके गले से निकलने वाली गूंजती हुई आवाज किसी के भी खून को जमा देने और रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफी है. जंगल में जब इनकी दहाड गूंजती है तो पूरा इलाका जाग जाता है, वाइल्‍ड लाइफ की दुनिया में इसे कॉलिंग कहते हैं. 

बंगाल टाइगर शेर की तरह झुंड में न रहकर अकेला रहना पसंद करता है. यह हमेशा स्‍वतंत्र विचरण करके अपना श‍िकार करता है. इनके आगमन का खौफ इस कदर होता है कि वहां चिड़ियां की चहचहाने लगती है और बंदर चिल्‍लाने लगते  हैं. ऐसा लगता है वो पूरे जंगल को इस बात के लिए खबरदार कर रहे हों क‍ि एक महान श‍िकारी हमारे आसपास से गुजर रहा है, बच सकते हो तो बचो, अपना द‍िल मजबूत करके रखो.

ये मुहिम थी वजह 

बता दें कि भारत में एक वो दौर था जब राजा लोग टाइगर का श‍िकार बढ़ चढ़कर करते थे, ये उनकी शानोशौकत का हिस्सा था. इसका रिजल्ट ये हुआ कि भारत में बाघों की संख्या में गिरावट आने लगी थी. उसके बाद भारत में बाघों को बचाने और उनके संरक्षण के लिए ‘बाघ परियोजना’ यानी टाइगर प्रोजेक्ट शुरू हुआ था. इसे राष्ट्रीय पशु घोषित करने के साथ ही इनकी प्रजाति की बड़ी बिल्ल‍ियों जिसमें शेर भी शामिल था उनके संरक्षण की मुहिम चल पड़ी. 

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