Jamsetjee Jeejeebhoy Story: 15 जुलाई 1783, एक गरीब पारसी परिवार में जमशेदजी जीजीभॉय का जन्म हुआ था. लेकिन उनकी जिंदगी किसी हिंदी फिल्म से कम नहीं थी. कौन जानता था कि एक लोअर मिडिल क्लास फैमिली का लड़का एक दिन भारत के अमीर लोगों की गिनती शामिल होगा. जी हां, जमशेदजी जीजीभॉय वह शख्स है जिसने 18वीं-19वीं सदी में न सिर्फ खूब दौलत कमाई बल्कि बॉम्बे (मुंबई) को भी बसाया.
कम उम्र में माता-पिता को खोया
अगर आप कभी मुंबई गए हैं या उसके बार में थोड़ा बहुत जानते हैं तो आपने जेजे रोड, जेजे हॉस्पिटल, जेजे स्कूल, जेजे कॉलेज, जेजे धर्मशाला और ऐसे बहुत सी चीजें जिन पर जेजे नाम पढ़ा या सुना होगा. आज हम उसी शख्स के बारे में बता रहें. जेजे का पूरा नाम जमशेदजी जीजीभॉय था. महज 16 साल की उम्र में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था.
कपास के व्यापार के लिए की चीन की यात्रा
सन 1799 में माता-पिता की मौत के जमशेदजी जीजीभॉय अपने अंकल फ्रामजी नासरवानजी बाटलीवाला के पास बॉम्बे आ गए और उन्हीं काम में लग गए. एक रिपोर्ट के मुताबिक उन्होंने सन 1803 में अपने अंकल की बेटी अवाबाई से शादी की और मुंबई में बस गए. यही वह समय था जब उन्होंने अपना नाम 'जमशेद' से बदलकर 'जमशेदजी' रख लिया. कपास के व्यापार के लिए पहले कलकत्ता और फिर चीन गए. अपनी चौथी यात्रा के समय के समय वे एक प्रतिष्ठित बिजनेसमैन बन चुके थे.
फ्रांस और ब्रिटेन की जंग में बुरे फंसे जमशेदजी
जीजीभॉय ने अपनी दूसरी चीन की यात्रा ईस्ट इंडिया कंपनी के एक जहाज में की थी. यह वह दौर (1803-1815) था जब ब्रिटेन और फ्रांस आमने सामने थे, दोनों के बीच जंग जारी थी. जमेशदजी ने तीन बार अपनी यात्रा बच-बचाकर की लेकिन चौथी बार में उन्हें फ्रांसीसी ने पकड़ा और साउथ अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप रूप में बंधक बना लिया गया.
टर्निंग पॉइंट, एक कैद ने बदली जिंदगी
करीब 4 महीने तक वे साउथ अफ्रीका की जेल में बंद थे, जहां उनकी मुलाकात ईस्ट इंडिया कंपनी नवल शिप के डॉक्टर विलियम जार्डिन से हुई. यही उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट था, जहां से उन्हें अमीर बनने का रास्ता मिला. जार्डिन, कुछ ही दिनों में रिटायर होने वाले थे और हॉन्ग कॉन्ग में अपना नया बिजनेस शुरू करने वाला था. उन्होंने जमेशदजी के सामने उनके बिजनेस से जुड़ने का प्रस्ताव रखा. इतिहासकार जेसी एस. पलसेटिया ने अपनी पुस्तक बॉम्बे के जमशेदजी जीजीभॉय में लिखा, एक दोस्ती में 'जो पुरुषों के जीवन को बदल देगी और इतिहास के पाठ्यक्रम को प्रभावित करेगी.' जमशेदजी और जार्डिन ने मिलकर चीन मे अफीम का कारोबार किया और खूब पैसा कमाया.
बॉम्बे बसाकर कमाया नाम
कुछ ही सालों में जमशेदजी जीजीभॉय ने कथित तौर पर 1820 के दशक में जब उनकी उम्र 40 वर्ष थी, उन्होंने 2 करोड़ रुपये से अधिक की कमाई कर ली थी. वह भारत के सबसे अमीर लोगों की लिस्ट में थे. पैसा कमाने के बाद वे अब नाम कमाना चाहते थे. उन्होंने भारत में अंग्रेजी सरकार के साथ मिलकर स्कूल, कॉलेज, हॉस्पिटल, चैरिटी हाउस और पेंशन फंड समेत कई परोपकोर के काम किए. उन्होंने कई सार्वजनिक कार्यों जैसे कुओं, जलाशयों, पुलों का निर्माण कराया. उनकी परोपकारिता से अंग्रेजों के बीच जीजीभॉय की प्रतिष्ठा बढ़ती जा रही थी. 1834 में, वह शांति के न्यायधीश के रूप में नियुक्त पहले भारतीयों में से एक बन गए, जो कि वास्तविक नगरपालिका प्राधिकरण, पेटी सेशंस के न्यायालय में एक पद था. 1842 में, वह शूरवीर होने वाले पहले भारतीय बने, आधिकारिक तौर पर उनके नाम के साथ एक SIR जोड़ा गया. यहां तक कि सर जमशेदजी जीजीभॉय की मृत्यु के बाद मुंबई में उनकी प्रतिमा भी लगाई गई.