
दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में भारी मात्रा में नगदी बरामद होने के बाद सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनका ट्रांसफर उनके मूल हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट में करने की सिफारिश की है. इस घटना के बाद सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों वाले कॉलेजियम के कुछ सदस्यों का मानना है कि इस तरह की घटना गंभीर और न्यायपालिका की छवि को धूमिल करने वाली है, सिर्फ ट्रांसफर काफी नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के कुछ सदस्यों का कहना कि जस्टिस यशवंत वर्मा को इस्तीफा देने के लिए कहा जाना चाहिए, अगर वे मना करते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) द्वारा इन-हाउस जांच शुरू की जानी चाहिए. ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि क्या हाईकोर्ट के जज को उनके पद से हटाया जा सकता है? या हाईकोर्ट के जज को हटाने की प्रक्रिया क्या है? आइए जानते हैं.
हाईकोर्ट के जज को हटाने का कारण
गुरुगोबिंद सिंह इंद्रप्रस्थ यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर अजय त्यागी ने द लल्लनटॉप को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि हाईकोर्ट के किसी जज को केवल दो वजहों से हटाया जा सकता है. पहला अगर जज ने अपने पद का दुरुपयोग किया हो या भ्रष्टाचार में लिप्त हो. दूसरा अगर जज मानसिक या शारीरिक रूप से अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में असमर्थ हो. संविधान में हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है कि इसलिए हटाने के लिए भी राष्ट्रपति की मंजूरी चाहिए होती है.
दरअसल, भारत में हाईकोर्ट के किसी जज की नियुक्ति, पद की शर्तें और हटाने की प्रक्रिया भारतीय संविधान के अनुच्छेद 217(1)(b) और अनुच्छेद 124(4) में दी गई है. इस प्रक्रिया को महाभियोग (Impeachment) कहा जाता है, जो बहुत जटिल है. वहीं हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए जांच प्रक्रिया Judges (Inquiry) Act, 1968 में दी गई है.
होईकोर्ट के जज को हटाने की प्रकिया
पहला चरण: लोकसभा और राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर
किसी भी हाईकोर्ट के जज को हटाने के लिए राष्ट्रपति को एक प्रस्ताव (Motion for Removal) भेजा जाता है जिस पर मंजूरी मिलने के बाद जज को उनके पद से हटाया जा सकता है. हालांकि प्रस्ताव पेश होने से लेकर राष्ट्रपति की मंजूरी तक के बीच एक लंबी और जटिल प्रक्रिया है. इसे सबसे पहले संसद में पेश करना पड़ता है. यह प्रस्ताव लोकसभा में पेश किए जाने पर कम से कम 100 लोकसभा सांसदों और राज्यसभा में पेश किए जाने पर कम से कम 50 राज्यसभा सांसदों के हस्ताक्षर के साथ प्रस्तुत किया जाता है.
दूसरा चरण: जांच समिति का गठन
किसी जज को हटाने का प्रस्ताव जब संसद में स्वीकार कर लिया जाता है, तो भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI), एक हाईकोर्ट चीफ जस्टिस और एक सीनियर प्रतिष्ठित जज की तीन सदस्यीय जांच समिति का गठन किया जाता है. यह समिति जज के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती है.
तीसरा चरण: संसद में मतदान
अगर समिति आरोपों को सही पाती है, तो प्रस्ताव को पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में बहस और मतदान के लिए रखा जाता है. जज को हटाने के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई (2/3) बहुमत से प्रस्ताव पास होना जरूरी होता है.
आखिरी चरण: राष्ट्रपति की मंजूरी
संसद में प्रस्ताव पास होने के बाद इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति इसे मंजूरी देते ही जज को उनके पद से हटा दिया जाता है. अब तक कई बार जजों के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिश हुई, लेकिन आज तक किसी भी हाईकोर्ट जज को महाभियोग द्वारा नहीं हटाया गया है, क्योंकि यह प्रक्रिया बहुत कठिन और लंबी होती है. हालांकि, कुछ जजों पर आरोप लगने के बाद उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दे दिया.