कोलकाता रेप और मर्डर केस में आरोपी संजय रॉय का आज पॉलीग्राफी टेस्ट होना है. कोर्ट से इजाजत मिलने के बाद अब सीबीआई ये टेस्ट करेगा और लाई डिटेक्टर मशीन के जरिए पता चल सकेगा कि आखिरी आरोपी कितनी झूठ और कितनी सच बोल रहा है. ऐसे में सवाल है कि आखिर ये पॉलीग्राफी टेस्ट क्या होता है और किस तरह इसकी मशीन ये पता कर लेती है कि इंसान झूठ बोल रहा है या नहीं. साथ ही जानते हैं कि आखिर मशीन को लेकर क्या सवाल भी उठते रहते हैं. तो जानते हैं इस मशीन से जुड़ी हर एक बात...
क्या होता है पॉलीग्राफ टेस्ट?
कई बार आरोपी से सच उगलवाने के लिए पुलिस पॉलीग्राफ टेस्ट करवाती है, जिसमें लाई डिटेक्टर मशीन (झूठ पकड़ने वाली मशीन) के जरिए झूठ पकड़ने की कोशिश की जाती है. इसमें आरोपी के जवाब के दौरान शरीर में होने वाले बदलाव के जरिए ये पता लगाया जाता है कि आरोपी सवाल का सही जवाब दे रहा है या नहीं. इस टेस्ट में आरोपी की शारीरिक गतिविधियों को अच्छे से रीड किया जाता है और उनके रिएक्शन के हिसाब से तय होता है कि जवाब सच है या गलत.
कैसे काम करती है ये मशीन?
ये एक मशीन होती है, जिसके कई हिस्से होते हैं. इसमें कुछ यूनिट्स को आरोपी की बॉडी से अटैच किया जाता है. जैसे उंगलियों, सिर, मुंह पर मशीन की यूनिट्स लगाई जाती है और जब आरोपी जवाब देता है तो इन यूनिट से डेटा मिलता है, वो एक मेन मशीन में जाकर झूठ या सच का पता लगाता है. शरीर पर कनेक्ट की जाने वाली यूनिट्स में न्यूमोग्राफ, कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर और गैल्वेनोमीटर होता है. साथ ही पल्स कफ हाथ पर बांधे जाते हैं और उंगलियों पर लोमब्रोसो ग्लव्स बांधे जाते हैं. इसके साथ ही मशीन से ब्लड प्रेशर, पल्स रेट आदि को भी मॉनिटर किया जाता है.
शरीर पर लगाई जाने वाली डिवाइस में न्यूमोग्राफ के जरिए प्लस रेट और सांस आदि को मॉनिटर किया जाता है. जवाब के दौरान सांस के जरिए झूठ, सच का अंदाजा लगाया जाता है. इसकी एक ट्यूब होती है, जिसे सीने के चारों तरफ बांधा जाता है. कार्डियोवास्कुलर रिकॉर्डर से दिल की धड़कन और ब्लडप्रेशर को मॉनिटर किया जाता है, क्योंकि झूठ बोलने पर इसमें असामान्य बदलाव होता है, जिससे सच का पता किया जा सकता है. साथ ही गैल्वेनोमीटर के जरिए व्यक्ति की स्किन की इलेक्ट्रिक कंडक्टिविटी को चेक किया जाता है. फिर एक रिकॉर्डिंग डिवाइस के जरिए इन डेटा को कलेक्ट किया जाता है.
कैसे चलता है सच का पता?
पहले आरोपी से नॉर्मल सवाल पूछे जाते हैं, जिनका केस से लेना देना नहीं होता है. फिर अधिकतर सवाल हां या ना के फॉरमेट में पूछे जाते हैं और इसके एक्सपर्ट उन मशीन के डेटा से सच पता लगाते हैं. इसमें पल्स रेट, ब्लड प्रेशर, सांस, स्किन पर होने वाले बदलाव, शारीरिक सेंस के डेटा के हिसाब से नतीजा निकाला जाता है. झूठ बोलने वाले के दिमाग से निकलता है अलग सिग्नल जो इंसान किसी सवाल का झूठा जवाब देता है, तब उसके दिमाग से एक P300 (P3) सिग्नल निकलता है. ऐसे में उसका हार्ट रेट और ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है.
क्या कोई भी करवा सकता है टेस्ट?
पॉलीग्राफ टेस्ट करवाने के लिए पहले कोर्ट से इजाजत लेनी होती है और कोर्ट मामले में पॉलीग्राफ टेस्ट की जरुरत को देखते हुए ये टेस्ट करवाने की इजाजत देता है.
हमेशा सटीक होता है रिजल्ट?
लेकिन, ध्यान रखने वाली बात ये है कि पॉलीग्राफ टेस्ट हमेशा सटीक नहीं होता है. टेस्ट कभी-कभी दिखा सकता है कि कोई व्यक्ति झूठ बोल रहा है जबकि वे वास्तव में सच कह रहा होता है. दरअसल, मशीन बॉडी के रिएक्शन पर सच पता लगाती है, लेकिन कई बार आरोपी की मानसिक स्थिति की वजह से रिजल्ट गलत भी हो सकती है. सीधे शब्दों में कहें तो पॉलीग्राफ परीक्षा झूठ का पता नहीं लगाती , यह भावनाओं के संकेतों का पता लगाती है.
नार्को और पॉलीग्राफ में क्या फर्क है?
पॉलीग्राफ टेस्ट में मशीनों के जरिए पल्स रेट, सांस, ब्लड प्रेशर, पसीने, स्किन में बदलाव आदि के डेटा के आधार पर सच या झूठ का मता लगाया जाता है. इसमें आरोपी पूरे सेंस में रहता है, लेकिन नार्को टेस्ट अलग है. नार्को टेस्ट के जरिए भी सच और झूठ का ही पता लगाया जाता है, लेकिन इसमें व्यक्ति को सोडियम पेंटोथल नाम की दवा का इंजेक्शन दिया जाता है. फिर वो आधा बेहोश हो जाता है और झूठ नहीं बोल पाता. ऐसे में आरोपी से सच या झूठ का पता लगाया जाता है.